अब सूडान से संवाद
क्या अमेरिका अपनी पुरानी विदेश नीति को बदलने की कवायद में है, खासकर उन देशों से जुड़ी नीतियों को बदलने को लेकर, जिन्हें वह दहशतगर्दी का प्रायोजक देश बताता रहा? ईरान के साथ परमाणु करार और पुराने...
क्या अमेरिका अपनी पुरानी विदेश नीति को बदलने की कवायद में है, खासकर उन देशों से जुड़ी नीतियों को बदलने को लेकर, जिन्हें वह दहशतगर्दी का प्रायोजक देश बताता रहा? ईरान के साथ परमाणु करार और पुराने प्रतिद्वंद्वी क्यूबा से रिश्तों की पुनर्बहाली के बाद वाशिंगटन ने अब सूडान की तरफ रुख किया है।
सूडान और साउथ सूडान के लिए अमेरिका के विशेष दूत डोनाल्ड बूथ ने खार्टोअम की यात्रा की, ताकि उनके साथ द्विपक्षीय रिश्ते कायम किए जा सकें। सितंबर 2013 के बाद से बूथ की यह पहली यात्रा है। दरअसल, सूडान उनकी यात्रा को तभी से रोकता आ रहा था। अमेरिकी सूची में सूडान आतंकवाद के निर्यातक देश के रूप में दर्ज है और 1997 से ही उसके साथ किसी तरह के व्यापार पर रोक लगी हुई है।
अमेरिका ने लातिन अमेरिका में वामपंथी चरमपंथियों की हिमायत करने का आरोप लगाते हुए 1982 में क्यूबा को इस सूची में डाल दिया था, पर मई महीने में उसे इस सूची से आधिकारिक रूप से बाहर कर दिया, ताकि दोनों देशों के दरमियान कूटनीतिक रिश्ते कायम करने की एक बाधा दूर की जा सके। इसी महीने हवाना में 54 वर्षों में पहली बार अमेरिकी दूतावास के ऊपर उसका झंडा लहराया। सीरिया दुनिया का पहला मुल्क है, जिसे अमेरिका ने अपनी इस सूची में शामिल किया, उसके बाद 1982 में क्यूबा, 1984 में ईरान और 1993 में सूडान को इसमें दर्ज किया गया। फिर इराक, लीबिया, नॉर्थ कोरिया और पूर्व साउथ यमन का नंबर आया, लेकिन फिर एक के बाद एक कई नाम बाहर भी कर दिए गए।
लेकिन तीन मध्य-पूर्वी देश ईरान, सूडान और सीरिया इस सूची में बने रहे। उमर हसन बशीर की हूकूमत की शिकायत यह थी कि अमेरिका ने द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने के वादे को लगातार तोड़ा, जबकि उसने वादे के मुताबिक साउथ सूडान में शांतिपूर्ण जनमत-संग्रह कराया, जिसके नतीजतन साल 2011 में एक नया मुल्क साउथ सूडान वजूद में आया।... लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में अमेरिका ने यह महसूस किया है कि अंतरराष्ट्रीय व राजनयिक रिश्तों में बातचीत एक महत्वपूर्ण रास्ता है। इसकी सराहना की जानी चाहिए।
द पेनिन्सुला, कतर