फोटो गैलरी

Hindi Newsशांति का नोबेल

शांति का नोबेल

इस साल शांति का नोबेल सम्मान वाकई सराहना का अधिकारी है। मजदूर संगठनों, कारोबारियों व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का ट्यूनीशियाई संगठन इस पुरस्कार के लायक था, क्योंकि उसने 'जैस्मीन रिवॉल्यूशन' को...

शांति का नोबेल
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 11 Oct 2015 09:27 PM
ऐप पर पढ़ें

इस साल शांति का नोबेल सम्मान वाकई सराहना का अधिकारी है। मजदूर संगठनों, कारोबारियों व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का ट्यूनीशियाई संगठन इस पुरस्कार के लायक था, क्योंकि उसने 'जैस्मीन रिवॉल्यूशन' को गृह-युद्ध में तब्दील होने से बचाया और इस उम्मीद को जिंदा रखा कि देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम रहेगी। उस ट्यूनीशियाई क्रांति को सम्मानित करने के बावजूद, जिसने साल 2011 में एक मजबूत तानाशाह की सत्ता को उखाड़ फेंका और इससे अरब क्रांति का आरंभ हुआ, नॉर्वे की नोबेल समिति ने जोर देकर कहा कि दूसरे अरब देशों में हुए विद्रोह विफल रहे हैं। 

 
समिति यह जताना चाह रही थी कि नागरिक समूहों द्वारा किया गया राष्ट्रीय संवाद एक देश में सुखद बदलाव का गवाह बना, जबकि तख्ता पलट ने मिस्र की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को ही कुचलने का काम किया या नागरिक विद्रोह से लीबिया, सीरिया और यमन में अराजकता व हिंसा फैली। कुछ समय के लिए लगा कि ट्यूनीशिया की किस्मत में भी यही है। 
 
राष्ट्रपति जेन अल-अबीदीन बेन अली के बेदखल होने के बाद एक इस्लामी सरकार आई और सड़कों पर हिंसा शुरू हो गई। 2013 की गरमियों में चार संगठनों ने मिलकर नेशनल डायलॉग क्वॉर्टेट का गठन किया। ये हैं: ट्यूनीशियन जनरल लेबर यूनियन, ट्यूनीशियन कन्फेडरेशन ऑफ इंडस्ट्री, ट्यूनीशियन जनरल ट्रेड ऐंड हैंडीक्राफ्ट्स, ट्यूनीशियन ह्यूमन राइट्स लीग व ट्यूनीशियन ऑर्डर ऑफ लॉयर्स। इसने एक अंतरिम सरकार के गठन का रास्ता बनाया। जो सफलता मिली, वह वास्तव में सराहनीय है। हालांकि, यह एक दूसरा प्रश्न है कि क्या ट्यूनीशियाई उदाहरण उन देशों के लिए प्रासंगिक है, जहां क्रांतियां काफी दुखद मोड़ पर पहुंच चुकी हैं। यह कल्पना ही कठिन है कि आज वहां संवाद संभव है, जैसे सीरिया व लीबिया में तमाम धड़े एक-दूसरे का हिंसक तरीके से विरोध कर रहे हैं। वैसे संस्थानों, शख्सियतों या समूहों को पुरस्कार देने की लंबी परंपरा नोबेल समिति की रही है, जहां उनके प्रतिनिधि कार्यों की महानता को अधिक वरीयता दी जाती है, बजाय प्रतिनिधि कामों के प्रभाव को।    
द न्यूयॉर्क टाइम्स, अमेरिका
हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें