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कितना भरोसेमंद रेल का खाना

लंबे सफर में यात्री की एक बड़ी जरूरत होती है भोजन। लेकिन अगर आप भारतीय रेलवे से यात्रा कर रहे हैं तो आपको इसके बहुत ज्यादा विकल्प नहीं मिलेंगे। अगर कहीं एक-दो तरह की खाने की चीजें मिल भी जाएं तो भी...

कितना भरोसेमंद रेल का खाना
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 08 Jul 2015 11:28 PM
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लंबे सफर में यात्री की एक बड़ी जरूरत होती है भोजन। लेकिन अगर आप भारतीय रेलवे से यात्रा कर रहे हैं तो आपको इसके बहुत ज्यादा विकल्प नहीं मिलेंगे। अगर कहीं एक-दो तरह की खाने की चीजें मिल भी जाएं तो भी उनकी गुणवत्ता को लेकर आप आश्वस्त नहीं हो सकते। जहां जो है, जैसा है, उसी से काम चलाना होगा। रेलवे की नागरिक सुविधाओं की दूसरी कड़ी में पेश है ‘खान-पान का हाल’। आकलन कर रहे हैं अरविंद सिंह

चाय अगर खराब बनी हो तो कुछ लोग कह उठते हैं कि यह रेलवे स्टेशन वाली चाय है। रेलवे प्लेटफार्म या ट्रेन में मिलने वाले खान-पान की देश में यही छवि है। हालांकि आप यह उम्मीद तो नहीं कर सकते कि स्टेशन पर आपको घर जैसा स्वादिष्ट और ताजा खाना मिलेगा, लेकिन दिक्कत यह है कि रेलवे में मिलने वाले खाने की गुणवत्ता लगातार खराब होती जा रही है। अक्सर इसे सुधारने की बहुत सारी योजनाएं सुनने में आती हैं, लेकिन हकीकत में इनका असर अभी तक नजर नहीं आया। हर रोज तकरीबन 12 लाख लोग रेलवे स्टेशनों, प्लेटफार्मों और गाड़ियों में खरीद कर खाना खाते हैं। यह बहुत बड़ी संख्या है, पर इसके लिए जिस पेशेवर व्यवस्था की जरूरत थी, उसे रेलवे विभाग कभी तैयार नहीं कर सका।

डेढ़ दशक पहले इंडियन रेलवे केटरिंग एंड टूरिज्म कार्पोरेशन (आईआरसीटीसी) का गठन किया गया तो रेलवे की इस सार्वजनिक इकाई को सौंपे गए काम में, एक काम केटरिंग सेवा भी था। तब यह तर्क दिया गया था कि रेलवे का मुख्य काम ट्रेन चलाना है, खान-पान सेवा दूसरे विभाग को सौंप देनी चाहिए। इसके बाद रेल यात्रियों को सस्ता, ताजा और स्वादिष्ट खाना उपलब्ध कराने का काम आईआरसीटीसी के हवाले कर दिया गया, लेकिन कम से कम केटरिंग के मामले में आईआरसीटीसी कामयाब नहीं हो सका। फिर रेलवे ने 2010 में नई खान-पान नीति बनाई और यह काम फिर से रेलवे के हवाले कर दिया गया। इसके बाद रेलवे ने अपनी व्यवस्था बनाने की कोशिश भले ही शुरू की हो, लेकिन उसके पास केटरिंग विशेषज्ञ, मेगा किचन, किचन, प्रशिक्षित स्टाफ, खान-पान सेवा के लिए बुनियादी ढांचा तक नहीं है। केटरिंग माफिया रेलवे की दूसरी सबसे बड़ी समस्या है। हर रोज चलने वाली 600 से अधिक ट्रेनों में खान-पान सेवा की व्यवस्था है। इसमें अधिकांश चुनिंदा ट्रेनें मुख्यत: एक ही ठेकेदार के पास हैं। पूर्व रेल मंत्रियों ने इस कॉकस को तोड़ने का प्रयास किया, लेकिन यह संभव नहीं हो सका। यह भी सोचा गया था कि खान-पान सेवा में नए प्लेयर्स को मौका दिया जाएगा और आपसी स्पर्धा होने से यात्रियों को अच्छा खाना मिलेगा, लेकिन नई नीति बनाने और उसे लागू करने में रेलवे को दो साल से अधिक समय लग गया। उसके बाद भी ऐसी शर्तें बनाई गईं कि नए खिलाड़ी टेंडर हासिल करने की दौड़ से बाहर हो गए। और नए प्लेयर्स के नाम पर जो आए भी, वे भी पहले से जमे ठेकेदार के परिवार वालों की ही कंपनियां थीं।

दिक्कत सिर्फ इतनी ही नहीं है। खान-पान नीति के तहत रेलवे केटरिंग ठेकेदारों से राजधानी-शताब्दी जैसी एक ट्रेन का 15-20 करोड़ रुपये लाइसेंस फीस के रूप में लेती है। फिर स्वयं किसी ट्रेन की खाना आपूर्ति की लागत का आकलन करती है और 32-42 फीसदी कम कीमत पर टेंडर दिए जाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ऊंची लाइसेंस फीस व 32 फीसदी लो रेट पर टेंडर लेने वाले केटरिंग ठेकेदार यात्रियों को ताजा, सस्ता व स्वादिष्ट भोजन भला कहां से देंगे! इसके अलावा रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों, सांसद, राजनेताओं और उनके रिश्तेदारों का ट्रेनों में खाने से लेकर अनगिनत पानी की बोतलें देने का दबाव रहता है। खराब खाने की शिकायत होने पर यही लोग ठेकेदार के पक्ष में खड़े होते हैं, जिससे वह ब्लैक लिस्ट होने अथवा जुर्माना लगने से बच जाता है।

यही वजह है कि वीआईपी मानी जाने वाली ट्रेनों तक में खराब खाने की शिकायतें बढ़ती जा रही हैं। रेल मंत्रालय ने घटिया खाने, वेंडर के बुरे व्यवहार, अधिक कीमत लेने आदि की शिकायत करने के लिए जनवरी 2013 में टोल फ्री नंबर 1800111321 की शुरुआत की थी। इसके अलावा यात्री वेबसाइट, एसएमएस से अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। प्रावधान यह है कि रेलवे मंत्रालय की निगरानी टीम यात्रियों की शिकायत का तत्काल निवारण करेगी और खान-पान ठेकेदार व पैंट्री मैनेजर के खिलाफ जुर्माना व कार्रवाई की जाएगी। हर साल 1800 से 2000 शिकायतें आती भी हैं, लेकिन इसके आगे कुछ ज्यादा नहीं होता। कई बार फूड पॉयजनिंग के मामले भी सामने आए हैं। दो साल पहले झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसद कामेश्वर बैठा रांची से कहीं जा रहे थे। सफर के दौरान खाना खाने के बाद उनकी तबीयत खराब हो गई। उनके साथ जा रहे अन्य लोगों की भी तबीयत बिगड़ने लगी, पर रेलवे की ओर से कोई चिकित्सीय सहायता उपलब्ध नहीं करायी गई। मामला संसद तक में उठा। बाद में रेलवे ने ठेकेदार पर ढाई लाख रुपये का जुर्माना लगाया। लेकिन यह वीआईपी मामला था, अन्य मामलों में अक्सर ऐसा नहीं हो पाता। जब भी रेलवे के खान-पान का मुद्दा उठता है, बात राजधानी, शताब्दी और वीआईपी ट्रेनों से आगे नहीं बढ़ पाती। जबकि आम यात्री पूड़ी और सब्जी के जो पैकेट खरीदते हैं या दूसरी ट्रेनों में खाने की जो थाली उपलब्ध कराई जाती है, उसकी गुणवत्ता तो और भी खराब होती है। इसके अलावा छोटे-छोटे स्टेशनों पर वेंडर जो खाना बेचते हैं, उसकी गुणवत्ता पर किसी का भी कोई नियंत्रण नहीं होता।

प्यासे रह जाते हैं लाखों यात्री...

हर रोज 2.4 करोड़ यात्रियों को पानी उपलब्ध कराना रेलवे की सबसे बड़ी चुनौती है। पानी उपलब्ध कराने के लिए तकरीबन हर स्टेशन पर अलग तरह से इंतजाम करना पड़ता है। रेलवे के देशभर में लगभग 8,000 स्टेशन हैं। इनमें सिर्फ ए, बी व सी श्रेणी के 933 रेलवे स्टेशनों पर ही पीने के पानी का समुचित इंतजाम है। ज्यादातर में स्थानीय निकाय से पानी की सप्लाई होती है। इसके अलावा आपातकालीन स्थिति के लिए अंडरग्राउंड वॉटर टैंक व ओवरहेड टैंक बने हुए हैं।

लेकिन डी, ई व एफ श्रेणी के 7,000 से अधिक रेलवे स्टेशनों पर यात्रियों के लिए प्लेटफॉर्म पर नल नहीं है। ऐसे बहुत से स्टेशनों के प्लेटफॉर्म पर यात्रियों के लिए हैंडपंप लगे हैं। साथ ही यह भी जरूरी नहीं कि वह ठीक से काम भी करते हों और यात्री अपनी प्यास बुझा सकें। दरअसल रेलवे स्टेशन से होने वाली आमदनी के आधार पर यात्रियों को सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं, जबकि सबसे अधिक जरूरत इन 7,000 स्टेशनों पर पीने के पानी की है। राजधानी, शताब्दी, दुरंतो, मेल-एक्सप्रेस ट्रेनों को पास देने के लिए पैसेंजर-लोकल ट्रेनों को डी, ई, एफ श्रेणी के स्टेशनों पर खड़ा कर दिया जाता है, जहां यात्रियों को पीने का पानी तक नहीं मिल पाता। लंबी दूरी की 4,000 ट्रेनों के मुसाफिरों को हर रोज 25 लाख बोतलबंद पानी की जरूरत पड़ती है, लेकिन रेलवे हर रोज सिर्फ 6.14 लाख बोतलबंद पानी की आपूर्ति कर पा रहा है यानी रेलवे में हर रोज मांग के मुकाबले सिर्फ 25 फीसदी आपूर्ति हो रही है। आईआरसीटीसी के सीएमडी अरुण कुमार मनोचा स्वीकार करते हैं कि रेलवे में पानी की मांग काफी अधिक और आपूर्ति बहुत कम है। लेकिन यात्रियों को पर्याप्त मात्रा में पानी मुहैया कराने का प्रयास चल रहा है।
आईआरसीटीसी इस नवंबर तक निजी क्षेत्र के सहयोग से पीपीपी मोड में बिलासपुर और त्रिवेंद्रम में रेल नीर प्लांट बनाने की मंजूरी देगा, जबकि कोलकाता में भी प्लांट बनाने की योजना है।

यहां से आता है रेल नीर
रेल नीर के लिए अभी तक देश भर में पांच प्लांट लगाए गए हैं, जिनसे पूरे देश में आपूर्ति की जाती है। ये प्लांट हैं- 
दिल्ली- नांगलोई रेल नीर प्लांट, उत्पादन क्षमता 1.3 लाख बोतल प्रतिदिन
बिहार-दानापुर रेल नीर प्लांट,
उत्पादन क्षमता 1.03 लाख बोतल रोज
तमिलनाडु - पालुर रेल नीर प्लांट, उत्पादन क्षमता 1.80 लाख बोतल प्रतिदिन
महाराष्ट्र - अम्बेरनाथ रेल नीर प्लांट, उत्पादन क्षमता 2.0 लाख बोतल प्रतिदिन
यूपी - अमेठी रेल नीर प्लांट (पीपीपी), उत्पादन क्षमता 72,000 बोतल
प्रतिदिन

भविष्य की योजनाएं

ई-केटरिंग
रेल मंत्रालय ने अगस्त 2014 से इस सेवा की शुरूआत की है। यात्री सफर में खाने का ऑर्डर दे सकते हैं। एक घंटे पहले फोन, एसएमएस के जरिए बुकिंग होगी। अगले स्टेशन पर खाना पहुंचेगा।

मिनी पेंट्री एरिया
कोच में मिनी पेंट्री एरिया बनाने का निर्देश दिया गया है। यहां डीप फ्रीजर व हॉट बॉयलर लगे होने चाहिए, जिससे खाने की चीजों को गरम अथवा ठंडा किया जा सके। यात्री की मांग पर वेंडर को खाद्य वस्तु गरम अथवा ठंडी करके देनी होगी।

रेलवे की हसीन योजनाएं
यात्रियों का शाही अंदाज में वेल्कम ड्रिंक से स्वागत, पूरे सफर के दौरान चाय-कॉफी व ड्रिंक और बे्रकफास्ट, लंच व डिनर में लजीज व्यंजन होंगे। रेलवे के पास भविष्य की ऐसी बहुत-सी योजनाएं हैं, जो कम से कम सुनने में तो बहुत अच्छी लगती हैं।

नई कटलरी
एसी-1 के यात्रियों को बोन चाइना क्रॉकरी में खाना परोसना जरूरी होगा। पुरानी क्रॉकरी हटाने के निर्देश दिए गए हैं। प्लास्टिक के गिलास पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। लंच-डिनर के समय से पहले यानी कम दूरी के यात्रियों को रेल नीर की एक बोतल व चाय या कॉफी फ्री देना अनिवार्य होगा।

ट्रेन में हवाई जहाज का मजा
रेल मंत्रालय ने हवाई जहाज की तर्ज पर ट्रॉली में रख कर खाना परोसने का निर्देश दिया है। हालांकि योजना को लागू होने में अभी कुछ समय लगेगा। इसके मुताबिक एसी-1, 2 व 3 श्रेणी में वेंडर-वेटर ट्रॉली से खाना सर्व करेंगे। वेंडर वर्दी में होंगे और उनके कोट पर नाम लगा होगा। उनके पास नया मेन्यू कार्ड होना जरूरी होगा। वेंडर-वेटर के पास मेडिकल फिटनेस प्रमाण-पत्र होगा। ट्रे मैट पर नया मेन्यू कार्ड प्रिंट होना अनिवार्य होगा। निर्धारित समय से ट्रेन के दो घंटे से अधिक देर होने पर ठेकेदार को यात्रियों को ब्रेकफास्ट, लंच या डिनर देना होगा। इसके पैसे बाद में रेलवे देगा।

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