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ईसा एक ‘जीवन-शैली’ का नाम है

एक दिसंबर से लेकर 24 दिनों की मानसिक तैयारी कर ईसाई लोग अपनी निजी जिंदगी, परिवार, समुदाय, देश और समाज में ईसा और उनके मूल्यों का एक बार फिर स्वागत करते हैं और नए साल के साथ एक नई जिंदगी शुरू करने की...

ईसा एक ‘जीवन-शैली’ का नाम है
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 22 Dec 2014 09:15 PM
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एक दिसंबर से लेकर 24 दिनों की मानसिक तैयारी कर ईसाई लोग अपनी निजी जिंदगी, परिवार, समुदाय, देश और समाज में ईसा और उनके मूल्यों का एक बार फिर स्वागत करते हैं और नए साल के साथ एक नई जिंदगी शुरू करने की कामना करते हैं। वे समूचे ईसाई समुदाय के लिए ही नहीं, सारे समाज के लिए दुआएं मांगते हैं। इस विचार से ईसा-जयंती ईसाइयों का यानी ईसा को ‘कुछ खास’ मानने वाले सब लोगों का महापर्व है। ईसा-जयंती असल में ‘सर्व धर्म मिलन भाव’ का पर्व है। इस अवसर पर दूसरे धर्म-समुदायों के लोग, खासतौर पर युवा लोग, वह भी लाखों की तादाद में, ईसा की झांकियां देखने के लिए गिरजाघर आते हैं और बालक ईसा का आशीष पाते दिखाई देते हैं।

‘ईसा’ नाम में एक सार्वभौम अर्थ छिपा हुआ है। ‘ईसा’ शब्द ‘येहोशुआ’ या ‘जोशुआ’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है- ‘ईश्वर खयाल करता है’ या ‘ईश्वर मुक्ति देता है।’ ‘ईसा’ शब्द का एक दूसरा स्रोत ‘इम्मानुएल’ है, जिसका मतलब है ‘ईश्वर हमारे साथ है।’ ईसा के समय में ईश्वर को दूरदराज की कोई निराकार सत्ता के रूप में मानने की परंपरा चल रही थी, लेकिन ईसा ने ईश्वर को इंसान के ‘बेहद करीब’ ही नहीं, उसके भीतर मौजूद सबसे ‘घनिष्ठ साथी’ के रूप में घटित किया। और तो और, वह खुदा ‘पिता’ सरीखा है, जिसके साथ ‘बेटा-बेटी’ जैसा रिश्ता कायम किया जा सकता है। मतलब है, खुदा से डरने की कोई जरूरत नहीं है। उसके साथ औलाद की हैसियत से सहज रूप से जुड़ने की ‘आजादी और नजदीकी’ का भाव है। ईसा का करिश्मा यह रहा कि उन्होंने इंसान को ‘खुदा कौन है’, इस राज का एहसास कराया, जो किसी भी परंपरा की हद में कैद नहीं हो सकता। ईसा-जयंती इस हकीकत का यादगार समारोह है।

ईसा का रिश्ता हर इनसान और जीव से था, है और रहेगा। ईसा अन्य पैगंबरों, नबियों तथा देवदूतों की तरह ‘इंसानी समाज की साझी धरोहर’ हैं। ईसा से अपनी इस आजादी को छीन कर उन्हें एक संप्रदाय में कैद करना ईसा के साथ ही नहीं, मानव समाज के साथ भी नाइंसाफी है। सच तो यह है कि जीने का उनका अंदाज मानववादी और रूहानी था। ईसा अपने आप में इंसानी जिंदगी का एक ‘नया नजरिया, विचारधारा, परंपरा और जीवन-शैली’ हैं। उनकी तालीम सब सीमाओं से परे हर इंसान के लिए एक ‘रूहानी रोशनी है, ऊर्जा है, प्रेरणा है, ताकत’ है, जो जिंदगी के सफर को सुचारू रूप से तय करने के लिए पाथेय है।

ईसा एक ‘खुशखबरी’ हैं, जो हर इनसान को कुछ न कुछ दे जाने की क्षमता रखती है। वे बीमारों के लिए चंगाई हैं, कैदियों के लिए रिहाई हैं और खोए हुओं के खोजकर्ता हैं। वे भूखों का खाना हैं, प्यासों का पानी हैं और पनाहहीनों की रिहाइश हैं। वे अधूरों की पूर्णिमा हैं, बिखरे हुओं के संयोजक हैं और राहगीरों के संकेत-चिह्न हैं। वे हताशों के लिए उम्मीद हैं, गुनहगारों के लिए आईना हैं और नासमझों के लिए ज्ञान हैं। ईसा कमजोरों के लिए ताकत हैं और आवाजहीनों के लिए आवाज हैं। वे पद-दलितों की उठान हैं, दर्द भोगने वालों के लिए सांत्वना हैं। वे सब के लिए सब कुछ हैं और जिसको जो चाहिए, वह देने वाले हैं। फकत ईसा में मौजूद ‘मसीहा’ को पहचानने की समझ की जरूरत है, उन्हें परखने के विवेक की जरूरत है और उनके पदचिह्नों पर चल कर अपने जीवन को धन्य बनाने की जरूरत है।

ईसा जयंती का अहम पैगाम है- प्यार, सेवा, माफी, भाईचारा, तालमेल और शांति। ये बातें ईसा द्वारा जिए और दिए हुए इंसानियत के मूल्य हैं।
डॉ. एम. डी. थॉमस
(लेखक भाषा, साहित्य, शिक्षा, धर्म, संस्कृति आदि के समीक्षक हैं)

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