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कोई नहीं पूछने वाला, सब कुछ डूब गया

यूपी-झारखंड में जहां बेमौसमी बारिश ने किसानों की कमर तोड़ी, वहीं दक्षिण बिहार में गेहूं के महीन और सिकुड़े दानों ने उन्हें सदमे की स्थिति में पहुंचा दिया है। सैकड़ों एकड़ में गेहूं की लगाई गई फसल...

कोई नहीं पूछने वाला,  सब कुछ डूब गया
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 13 Apr 2015 12:14 PM
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यूपी-झारखंड में जहां बेमौसमी बारिश ने किसानों की कमर तोड़ी, वहीं दक्षिण बिहार में गेहूं के महीन और सिकुड़े दानों ने उन्हें सदमे की स्थिति में पहुंचा दिया है। सैकड़ों एकड़ में गेहूं की लगाई गई फसल बरबाद हो गई। साल-दर-साल की बाढ़ से तो वे पहले ही बेहाल थे, अब यह नया संकट उनके सामने है। ऐसे में उनके पास सिर्फ पलायन का रास्ता बचा है। ‘हिन्दुस्तान’ की पड़ताल में पेश है दक्षिण बिहार के किसानों का दर्द

जिला जहानाबाद। मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर जा रहे हैं। जर्जर सड़क है। भवानीपुर पंचायत का परशुरामपुर गांव। चौराहे पर खेती के बारे में पूछते हैं। लोगों को लगता है हम सरकारी अफसर हैं। आए हैं तो कुछ मिलेगा। धीरे-धीरे लोग बढ़ते जाते हैं। कंधे पर अंगोछा रखे और लुंगी पहने अरुण महतो की तरफ वे इशारा करते हैं। इनसे पूछिए, विपत्ति का हाल। अरुण कहते हैं, प्रकृति ने सब उजाड़ दिया। अपने सवा बीघा खेत और पांच बीघा पट्टा (भाड़े पर दूसरे की जमीन)  पर गेहूं बोया और टमाटर उगाया था। अरुण हाथ पकड़ के खेत में ले जाते हैं। पीछे और लोग आते हैं। अरुण अपनी पीड़ा सुनाते हैं। सरकार से इंदिरा आवास का रुपया मिला था। वह भी इसी खेती में लगा दिया था। सोचा था कि ज्यादा पैदावार होगी। करम फूटे थे। गेहूं की बाली मसलते हुए दिखाते हैं। देखिए न, इसमें क्या है? छोटे और सिकुड़े हुए महीन चावल जैसे दाने।

सोचा था कि बेटी के हाथ पीले हो जाएंगे। पटना सिटी में शादी तय भी हो गई थी। डेढ़ लाख दहेज में। अब क्या होगा? छोटकी कैसे अगले साल मैट्रिक की परीक्षा देगी? कैसे घर चलेगा? जिसकी जमीन ली थी और महाजन से सूद पर जो पैसे लिए थे, दोनों को रुपये कहां से देंगे? हम बरबाद हो गेलिओ, कोई न हो पूछेवाला, सब कुछ डूब गेलो।
अरुण से बातचीत के क्रम में आस-पास के सारे किसान जमा हो गए। सबने एक स्वर से एक जैसी पीड़ा बताई। कहा- भूखे पेट गृहस्थी की गाड़ी भी नहीं खिंच रही। खेत के भरोसे तो अब सिर्फ भूख है। सैकड़ों एकड़ में गेहूं की फसल है, पर किसी में दाना नहीं। स्थिति यह है कि कोई मुफ्त में भी इन्हें काटने वाला नहीं मिल रहा। काटने वाला कहता है कि 12 बोझा काटेंगे तो दिन भर में एक बोझा मुझे मिलेगा। अब जब दाना नहीं है तो उसे लेकर क्या करूंगा। इससे अच्छा है कि पटना जाकर मजदूरी करूं।

कुछ ऐसी ही हालत बख्तियारपुर के सनोज कुमार की है। सनोज बताते हैं कि अच्छा घर था। 35 बीघा उपजाऊ जमीन थी। अचानक पिता रामदिल प्रसाद बीमार हो गए। दिल्ली जाकर इलाज कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं। 1989 में ही पिता गुजर गए। इलाज के दौरान कुछ कर्ज हो गया। उसी वर्ष धोबा और पंचाने नदी ने भी गांव पर अपना कहर बरपाया। बाढ़ आई और धान की फसल बरबाद हो गई। 25 वर्ष बीत गए,  लेकिन परिवार कर्ज से उबर नहीं पाया। अब मात्र सात बीघा जमीन बची है। सिर पर महाजन और बैंक का क्रमश: तीन-तीन लाख कर्ज दो वर्षों से है। महाजन को पांच प्रतिशत प्रति माह सूद देना पड़ता है। बेमौसम बारिश ने रबी की उपज आधी से भी कम कर दी।

पूरे दक्षिण बिहार की स्थिति ऐसी ही
गया के बरेब गांव के चंद्रदेव साव भी कुछ इसी अंदाज में पीड़ा बताते हैं। अरवल, बाढ़, बड़हिया, मोकामा टाल, औरंगाबाद, नवादा, बिहारशरीफ आदि के किसानों का भी यही हाल है। हर साल की बाढ़-सूखे ने पहले ही स्थिति खराब कर रखी थी और अब बेमौसम की बारिश ने कमर तोड़ दी। घोसी के कोर्रा और मायाबिगहा में तो बिजली के 11 हजार वोल्ट के तार ने सब जला डाला। यही हाल पूर्व सीएम जीतनराम मांझी के विधानसभा क्षेत्र के नंदनपुरा गांव का है, जहां अगलगी से किसान परेशान हैं।

सैकड़ों किसान कर चुके हैं पलायन
बख्तियारपुर के 4,444  बीघा रकबा के इस मीसी गांव में कभी 1400 घर किसान थे। इनमें से तीन सौ से अधिक किसान खेती छोड़ कर गांव से पलायन कर चुके हैं। किसी ने बख्तियारपुर, फतुहां और हरनौत में छोटी-मोटी दुकानें खोल ली है तो कई रोजगार की खोज में दिल्ली-मुंबई चले गए। अब स्थिति ऐसी हो गई है कि न रहने के लिए घर है और खाने को अनाज। घर का चूल्हा जलाने के लिए भी महाजन से कर्ज लेना पड़ रहा है।

- 62 लाख किसान हैं चार प्रमंडलों में
- 19 जिले हैं दक्षिण बिहार के चार प्रमंडलों में

- प्रमंडल की संख्या- 04
- जिले- पटना, भोजपुर, भभुआ, रोहतास, बक्सर, नालंदा, गया, जहानाबाद, अरवल, औरंगाबाद, नवादा, भागलपुर, बांका, मुंगेर, बेगूसराय, खगड़िया, लखीसराय, शेखपुरा और जमुई।

खेती-किसानी:  एक नजर
- लाख हेक्टेयर चार प्रमंडलों में खेती योग्य जमीन
- सिंचित जमीन- 77%
- असिंचित जमीन- 23%
- 47.20 करोड़ का कर्ज सिर्फ गया प्रमंडल में केसीसी से है।

- दक्षिण बिहार की मुख्य फसलें
- धान, मसूर, चना, मक्का, खेसारी, मटर, गेहूं, तिलहन

- कर्ज
65%   किसानों पर किसी न किसी तरह का कर्ज।
- 47.20 करोड़ का कर्ज सिर्फ गया प्रमंडल में केसीसी से है।


दक्षिण बिहार: बिजली तक का इंतजाम नहीं
पांच दुश्वारियां

1. सिंचाई का नियमित साधन नहीं है यहां।

2. धोबा, पंचाने और कई अन्य छोटी-छोटी नदियों से हर साल बाढ़ आती है। कई बार सूखा भी मारता है।
3. आवागमन का कोई निश्चित और पर्याप्त साधन नहीं है।
4. बिजली तक का उचित प्रबंध नहीं है।
5. फसलों के लिए बाजार नहीं, समय पर नहीं मिलता फसल का दाम।


ताजा स्थिति
- ज्यादातर किसान फसल बीमा का नाम नहीं जानते हैं।
- बेमौसम बारिश और बाढ़ से धान की 25 फीसदी।
- फसल बरबाद
- बिचौलियों के कारण धान क्रय केंद्रों पर ज्यादातर किसान धान नहीं बेच पाते हैं।
- बेमौसम बारिश के कारण 20 फीसदी रबी की फसल बरबाद हो गई है।
- तेज हवा के साथ हुई बारिश के कारण इस वर्ष गेहूं की फसल को 50 फीसदी नुकसान हुआ है।


धान: प्रति बीघे का गणित
- 4,000 रुपये प्रति बीघा औसत आमदनी धान की खेती से प्रति वर्ष
- 6,000 रुपये प्रति बीघा औसत लागत धान की खेती पर
- 16 कुंतल धान की औसत पैदावार प्रति बीघा
- 10,000 रुपये प्रति बीघा औसत बिक्री धान की खेती पर
कुल बचत 3,000 रुपये प्रति बीघा


क्षेत्र का सालाना औसत
दलहन पैदावार

- 04 कुंतल प्रति बीघा
- 03 हजार रुपये प्रति बीघा लागत
- 9,000  रुपये प्रति बीघा बचत

धान पैदावार
- 16 कुंतल प्रति बीघा
- 06 हजार रुपये प्रति बीघा लागत
- 4,000  रुपये प्रति बीघा बचत



बिहार में प्राकृतिक आपदाओं से किसानों को परेशानी होती है। मैं हमेशा किसानों के साथ हूं। उनकी परेशानियों को दूर करने की कोशिश भी जारी है। आपदाओं से प्रभावित सभी किसानों को सरकारी राहत तो जल्द से जल्द मिलनी
ही चाहिए।
शत्रुघ्न सिन्हा,  सांसद


किसान तबाह हो गए हैं। पैदावार कम होने से उनकी परेशानी और बढ़ेगी। जिला प्रशासन से प्रभावित किसानों के लिए राहत व मुआवजे के लिए जांच टीम गठित करने को कहा है। उन्हें हम अपने स्तर से दूर करने की कोशिश करेंगे।
अनिरुद्ध कुमार, विधायक, बख्तियारपुर


दक्षिण बिहार में ऐसे लो लैंड, जहां हर साल बाढ़ आती है। ऐसे इलाकों में कृषि राहत देने का प्रावधान नहीं है। जब प्राकृतिक प्रकोप होता है तो किसानों को सरकारी राहत दी जाती है। उनकी मदद की पूरी कोशिश की जाती है।
वेंकटेशन नारायण सिंह, संयुक्त कृषि निदेशक, पटना प्रमंडल

साथ में बख्तियारपुर से राकेशधारी और गया से मनोरंजन कुमार

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