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इंटरनेट पर अधिकारों के मामले में भारतीय काफी पिछड़े

अमेरिका और यूरोप में तो नेट निरपेक्षता को पिछले एक साल में कानूनी शक्ल दे दी गई। लेकिन भारत में अभी भी कुछ इंटरनेट कंपनियां स्वस्थ प्रतिस्पर्धा से खिलवाड़ कर वेब यूजरों के साथ भेदभाव कर रही हैं।...

इंटरनेट पर अधिकारों के मामले में भारतीय काफी पिछड़े
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 18 Apr 2015 05:31 PM
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अमेरिका और यूरोप में तो नेट निरपेक्षता को पिछले एक साल में कानूनी शक्ल दे दी गई। लेकिन भारत में अभी भी कुछ इंटरनेट कंपनियां स्वस्थ प्रतिस्पर्धा से खिलवाड़ कर वेब यूजरों के साथ भेदभाव कर रही हैं। हालांकि आईटी विशेषज्ञों का कहना है कि सिर्फ नेट निरपेक्षता से ही भारत में इंटरनेट यूजरों के अधिकारों की सुरक्षा नहीं होगी। निजता का अधिकार जैसे बिल लंबे समय से संसद की मंजूरी की बाट जोह रहे हैं। सर्वर देश में न होने से विदेशी इंटरनेट कंपनियां भारतीय डाटा का इस्तेमाल कर अरबों का कारोबार कर रही हैं और हम जासूसी की जद में भी हैं।

आईटी विशेषज्ञ पवन दुग्गल का कहना है कि अमेरिका और यूरोपीय देशों की तुलना में जागरूकता न होने से भारतीय इंटरनेट यूजर ज्यादा भेदभाव के शिकार हैं। नेट निरपेक्षता का अभाव, इंटरनेट के जरिये किसी उत्पाद या सेवा के चयन के उपभोक्ताओं के विकल्पों को तो सीमित करता ही है। यह मुक्त बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की परंपरा को भी चोट पहुंचाता है।

लेकिन आईटी कानून और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम भी इंटरनेट पर हमारे अधिकारों और शिकायतों के निवारण का कोई कवच मुहैया नहीं कराते। मसलन, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम या भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग इंटरनेट कंपनियों के एकाधिकार और मनमाने रवैये के खिलाफ शिकायतों को लेकर गंभीर नहीं हैं। हमारे डाटा को इंटरनेट कंपनियां दूसरों से साझा कर, बेच कर करोड़ों का मुनाफा कमा रही हैं, यह हमारी निजी सूचनाओं की गोपनीयता को तो भंग करता ही है, साथ ही साइबर अपराधों को भी बढ़ावा देता है।

इंटरनेट पर ऐसे अनुचित कारोबार पर अंकुश या निगरानी का कोई तंत्र नहीं है। गूगल, फेसबुक जैसी कंपनियां भारत में सर्वर नहीं लगातीं और इस लिहाज से खुद को भारतीय आईटी कानूनों के प्रति जवाबदेह नहीं मानतीं। अमेरिकी आनलाइन जासूसी कार्यक्रम प्रिज्म के तहत इन इंटरनेट कंपनियों से भारत का 5.1 अरब बाइट डाटा खुफिया एजेंसियों से साझा किया लेकिन हम चाहकर भी उन्हें कानूनी दायरे में नहीं ला सकते।

दुग्गल ने कहा कि इंटरनेट पर किसी उपभोक्ता के डाटा की गोपनीयता, उसके लीक होने पर कार्रवाई को लेकर कोई स्पष्ट गाइडलाइंस भी सरकार ने तैयार नहीं की है। नेट निरपेक्षता पर नियमों के बनाए जाते वक्त इस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

इसका ताजा उदाहरण यूरोप में गूगल पर अपने उत्पादों को इंटरनेट पर प्राथमिकता देने और प्रतिद्वंद्वी कंपनियों जैसे फ्रूगल की सेवाओं को सर्च इंजन में पीछे धकेलने का आरोप लगा है, उस पर छह अरब डॉलर से ज्यादा का जुर्माना लग सकता है।
अमेरिकी फेडरल कम्यूनिकेशन कमीशन ने इंटरनेट को टेलीकम्युनिकेशन के दायरे में लाकर इसे एक सार्वजनिक उत्पाद घोषित किया है ताकि इंटरनेट पूरी तरह तटस्थ रहे और किसी से भेदभाव न हो। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भी इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को आईटी एक्ट की धारा 66ए को रद्द करते समय महत्ता दी है। जरूरत है कि इंटरनेट और उससे जुड़े नागरिकों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के अधीन एक अंतरराष्ट्रीय चार्टर बने ताकि बहुराष्ट्रीय कंपनियां नागरिकों के अधिकारों को लेकर दूसरे देशों की कमजोरियां का फायदा न उठा सकें।

कहां कमजोर हैं हम------------
1. राइट टू प्राइवेसी बिल अटका
सरकार या निजी एजेंसियों द्वारा इंटरनेट डाटा के दुरुपयोग को रोकने के लिए यूपीए के दौरान तैयार हुए राइट टू प्राइवेसी बिल यानी निजता के अधिकार का कानून अभी तक पारित नहीं हो सका है। इसके तहत निजता के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा माना गया है। खुफिया एजेंसियों को इसके दायरे से बाहर रखते हुए डाटा शेयरिंग या बेचने पर दस लाख से दो करोड़ रुपये तक जुर्माने का प्रावधान है।
2. राइट टू बी फारगाटेन---
यूरोप, अर्जेन्टीना समेत कई देशों में नागिरकों को राइट टू बी फारगाटेन का अधिकार दिया गया है। इसके तहत कोई भी शख्स गूगल, फेसबुक या किसी अन्य इंटरनेट कंपनी के पास मौजूद अपने निजी डाटा को हमेशा के लिए डिलीट करने का अधिकार रखता है। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसलों में इसे मान्यता दी है और सरकार इस पर गंभीरता से विचार कर रही है।
3. भारत में सर्वर न होना
इंटरनेट कंपनियों ने भारत में अपने सर्वर स्थापित नहीं किए हैं। इसी आधार पर ये कंपनियां डाटा के इस्तेमाल संबंधी किसी भारतीय कानून के दायरे में खुद को नहीं मानतीं। अमेरिकी ऑनलाइन जासूसी के मामले प्रिज्म के जरिये 5.1 अरब बाइट भारतीय डाटा बाहर ले जाया गया, इसमें काफी संवेदनशील जानकारी भी थी लेकिन कंपनियां कार्रवाई से बच गईं।
4. कमजोर नियामक संस्थाएं
आईटी एक्ट की अस्पष्ट धाराओं की वजह से ट्राई, भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के तहत ऑनलाइन गतिविधियों में गड़बड़ी की शिकायतों का निवारण नहीं हो पाता। उपभोक्ता संरक्षण कानून भी इंटरनेट से जुड़े मामलों में उदासीन है। सरकार को इस संबंध में एक व्यापक गाइडलाइन तैयार करनी चाहिए।
5. प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसी रेगुलेशन बिल भी लंबित
वर्ष 2007 से लटके इस बिल के तहत निजी जासूसी एजेंसियों को नियंत्रण में लाना है। लाइसेंस के तहत किसी शख्स की निजी जानकारी से छेड़छाड़ या साझा करने के मामले में दोषी को जुर्माने और सजा का प्रावधान है। चिंता की बात है कि व्हिसिल ब्लोअर एक्ट में बदलाव कर राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए खुफिया और प्रवर्तन एजेंसियों को इसके दायरे से बाहर लाया जा रहा है।

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