इतिहास का सबसे गर्म साल बनने के करीब 2015
साल 2015 इतिहास का सबसे गर्म साल बनने के करीब है। अमेरिका के नेशनल ओशनिक एंड एटमॉसफियरिक एडमिनिस्ट्रेशन की मानें तो जनवरी से अप्रैल 2015 वैश्विक स्तर पर किसी भी साल के सबसे गर्म शुरुआती महीने रहे।...
साल 2015 इतिहास का सबसे गर्म साल बनने के करीब है। अमेरिका के नेशनल ओशनिक एंड एटमॉसफियरिक एडमिनिस्ट्रेशन की मानें तो जनवरी से अप्रैल 2015 वैश्विक स्तर पर किसी भी साल के सबसे गर्म शुरुआती महीने रहे। एंटार्कटिका, घाना, वेनेजुएला, लाओस समेत कई क्षेत्रों में तापमान ने 1880 के बाद के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। ग्लोबल वॉर्मिंग और प्रशांत महासागर में जोर पकड़ते अल-नीनो की वजह से आने वाले दिनों में पारे के नई बुलंदियां छूने के आसार जताए जा रहे हैं।
गर्मी का रिकॉर्ड
विश्व: 56.7 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज हुआ था कैलिफोर्निया के फर्नेस क्रीक रैंच में 10 जुलाई 1913 को
एशिया: 53.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था पारा पाकिस्तान के मोहनजोदड़ों में 26 मई 2010 को
भारत: 50.6 डिग्री सेल्सियस अधिकतम तापमान पाया गया था राजस्थान के अलवर में 10 मई 1956 को
दिल्ली: 47.8 डिग्री सेल्सियस का आंकड़ा छुआ था पारे ने 8 जून 2014 को 62 साल का रिकॉर्ड तोड़ते हुए
खतरे की घंटी
0.80 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया वैश्विक तापमान 2015 में 20वीं सदी के औसत तापमान से
0.64 डिग्री सेल्सियस बढ़ोतरी का अनुमान लगाया था मौसम विज्ञानियों ने बढ़ते ग्लोबल वॉर्मिंग के मद्देनजर
धुव्रीय इलाके भी तपे
एंटार्कटिका में इतिहास का सबसे गर्म दिन इस साल 14 मार्च को दर्ज किया गया, 17.4 डिग्री सेल्सियस था तापमान
आर्कटिक क्षेत्र में फरवरी 2015 में समुद्री बर्फ पिघलकर 4.25 लाख वर्ग मील के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गई
क्या हैं कारण
ग्लोबल वॉर्मिग: पिछले 18 साल से वैश्विक तापमान के स्थिर होने से ग्लोबल वॉर्मिंग पर लगी लगाम हटती नजर आ रही है। मार्च 2015 में वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के पहली बार 400 पीपीएम का आंकड़ा लांघना और समुद्रों द्वारा अतिरिक्त ऊष्मा सोखने की गति में कमी आना इसकी मुख्य वजह बताई जा रही है।
अल नीनो: प्रशांत महासागर में अल नीनो के गति पकड़ने से समुद्र में ‘अपवेलिंग’ यानी ठंडे पानी के ऊपर उठने और गर्म पानी के सतह की ओर जाने की प्रक्रिया धीमी पड़ती है। पर्यावरण में मौजूद ऊष्मा को सोखने के लिए ‘अपवेलिंग’ बेहद अहम मानी जाती है। इसके कमजोर पड़ने से वैश्विक तापमान में वृद्धि होने लगती है।
भारत में सूखे के आसार
आमतौर पर प्रशांत महासागर के ऊपर तेज गति से चलने वाली हवाएं समुद्र के ऊपरी हिस्से में मौजूद गर्म पानी को दक्षिण अमेरिकी तट से ऑस्ट्रेलिया और फिलीपींस की ओर धकेलते हुए पूरब की ओर बहती जाती हैं। लेकिन अल नीनो की सूरत में ये काफी शांत होती हैं। इससे गर्म हवा दक्षिणी अमेरिकी तट पर जमने लगती हैं। पूरब की ओर से इनका बहाव रुक जाता है। इससे अमेरिका में भारी बारिश और बाढ़, जबकि भारत व अफ्रीकी देशों में सूखे की आशंका बढ़ जाती है।
वृद्धि से बढ़ेगी महंगाई
भारत समेत कई एशियाई देशों और अफ्रीका में सामान्य से कम बारिश और सूखे की आशंका से बढ़ेगी खाद्य महंगाई
अमेरिका सहित कई पश्चिमी देशों में भारी बारिश और बाढ़ की आशंका, चक्रवाती तूफानों का खतरा भी बढ़ने के आसार
पोषक तत्वों से लैस समुद्र के ठंडे पानी के ऊपर उठने की प्रक्रिया प्रभावित होगी, जल-जीवों के अस्तित्व पर बढ़ेगा संकट