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सरकार के 3 साल: संजीदगी से आत्मसात किए सियासी सबक

हावत है कि सियासत में सफल वही होता है, जो वक्त से सबक सीखे और वक्त के मुताबिक हालात को समझ कर फैसले ले। बीते तीन सालों में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की ओर से समय-समय पर...

सरकार के 3 साल: संजीदगी से आत्मसात किए सियासी सबक
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2015 11:41 AM
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हावत है कि सियासत में सफल वही होता है, जो वक्त से सबक सीखे और वक्त के मुताबिक हालात को समझ कर फैसले ले। बीते तीन सालों में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की ओर से समय-समय पर दिए कुछ ऐसे ही सियासी सबकों को संजीदगी से आत्मसात किया। यही वजह रही कि लोकसभा चुनावों के बाद कुछ अलग से तेवर में दिखाई दिए। कमोबेश सियासत और सत्ता की कदमचाल पर नज़्‍ार रखने वाले तो ऐसा ही मानते हैं।

कामकाज पर मुलायम की नजर: युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने 15 मार्च 2012 को सत्ता जरूर सौंपी लेकिन एक मंझे हुए पुरोधा की तरह सत्ता के हर कदम पर नज़र भी बनाए रखीं। वक्त पड़ा जब मंत्री या फिर अफसरशाही बेलाग या यूं कहें बेपरवाह सी दिखी तो दोनों के पेंच कसने में उन्होंने जरा भी गुरेज नहीं किया। अपनी ही सरकार की खामियां गिनाते वक्त सियासी दलों की उन्होंने परवाह नहीं की और सरकार की प्रशासनिक क्षमता में सुधार और आम जनता की बेहतरी के लिए बेबाक सुझाव देते रहे।

कभी सीएम को आगाह करके तो कभी अफसरशाही के रवैये पर सख्त लहजे में टिप्पणी करके। यकीनन काबिले तारिफ है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सियासी सबकों को वक्त-वक्त पर अपनाने में जरा भी हिचक नहीं दिखाई।

सबक का असर फैसलों पर: समय के साथ ‘नेताजी’ के सियासी सबकों के प्रतिबिंब सरकारी फैसलों में नज़्‍ार भी आए। मौके-बे-मौके मुख्यमंत्री ने इसका खुलकर इज़हार भी किया। कभी मीडिया पर बरसे तो कभी अपने ही अफसरों की लगाम कसी।

कभी हर छोटी-बड़ी घटना पर सियासत करने वाले विपक्षी दलों को आड़े हाथ भी लेते रहे। हर बार विरोधियों को उन्होंने दो कदम पीछे हटने पर मजबूर किया। शायद यही वजह रही कि जब बदायूं रेप कांड पर सीबीआई की रिपोर्ट आई तो तथ्यों के आधार पर वह विरोधियों को जमकर आड़े हाथ लेते दिखे।

चाहे प्रमुख सचिव गृह पर रहे दीपक सिंघल की रवानगी हो या फिर डीजीपी के पद पर नई तैनातियां हर बार मुख्यमंत्री के फैसलों में एक संदेश रहा।

सख्त फैसलों की दरकार: कुछ ऐसा ही संदेश उनके प्रमुख सचिव रहे राकेश बहादुर की पंचम तल से रवानगी तो आरोपों में घिरने पर मंत्रिमंडल के सदस्यों विनोद कुमार सिंह उर्फ पंडित सिंह की सीएमओ अपहरण में फंसने और राजा भैया की सीओ हत्याकांड से बच निकलने पर पुन: मंत्रिमंडल में वापसी कर दिया। अगले दो सालों में अखिलेश द्वारा सख्त सियासी फैसलों के बलबूते सियासी रण की बिसात बिछाई जाए तो हैरत नहीं।

कब-कब क्या कहा मुलायम ने
- मंत्रियों को जनता के काम करने चाहिए। जनता को महसूस हो कि मंत्री उसके लिए काम कर रहे हैं। ज्यादातर मंत्रियों की छवि ठीक नहीं है। वे जनता और पार्टी की कसौटी पर खरे नहीं उतर रहे हैं। मुलायम सिंह यादव (सरकार के छह महीने पूरे होने पर विधायकों की बैठक में)
-मुख्यमंत्री या सरकार से जनता को निराश नहीं होना चाहिए। जनता की निराशा बहुत गलत होती है। मुख्यमंत्री की छवि तो ठीक है लेकिन मंत्रियों और विधायकों की छवि भी ठीक होनी चाहिए। वरना गलत संदेश जाता है। मुलायम सिंह यादव (सरकार बनने के एक साल बाद एक कार्यक्रम में)

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