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मुंबई के बाद सबसे ज्यादा स्लम फरीदाबाद में

फरीदाबाद मुख्य संवाददाता। दुर्गा बिल्डर में अवैध निर्माण की तोड़फोड़ के लिए पहुंची पुलिस के बाद खड़ा हुआ हंगाम इस शहर के लिए कोई नई बात नहीं है। यहां आए दिन इस तरह की कार्रवाई लंबे अर्से से चली आ रही...

मुंबई के बाद सबसे ज्यादा स्लम फरीदाबाद में
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 22 Jul 2014 01:16 AM
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फरीदाबाद मुख्य संवाददाता। दुर्गा बिल्डर में अवैध निर्माण की तोड़फोड़ के लिए पहुंची पुलिस के बाद खड़ा हुआ हंगाम इस शहर के लिए कोई नई बात नहीं है। यहां आए दिन इस तरह की कार्रवाई लंबे अर्से से चली आ रही है।

इसे प्रशासन की नोटंकी ही कहेंगे, क्योंकि अगर अवैध निर्माण को लेकर प्रशासन गंभीर होता तो फिर एक के बाद एक अनियमित काॠलोनी और सलम कभी इस शहर में वजूद में नहीं आता। एक रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई के बाद देश का सबसे बड़ा स्लम फरीदाबाद में है। जहां करीब 66 स्लम बस्तियों में लाखों लोग रहते हैं। उनको हटाना प्रशासन के लिए टेढी खीर है। जब भी कोई इस तरह का एक्शन होता है तो वो सिरे नहीं चढ़ पाता है।

छोटी मोटी तोड़फोड़ करके प्रशासन अपनी ड्यूटी पूरी कर देता है। इसका असर शहर के विकास पर खासतौर से पड़ता है। विकास की योजनाओं के लिए ऐसे स्लम या अवैध निर्माण फिर बाधक बनते हैं। अनियिमत काॠलोनियों की वजह से मास्टर प्लान पूरी तरह से लागू नहीं हो पाता है और सरकारी जमीन पर बसी स्लम की वजह से नई योजनाएं भी सिरे नहीं चढ़ पाती हैं।

तीन सौ एकड़ पर बसी हैं 66 स्लम बस्तियां औद्योगिक नगरी एक वजह है कि लोग यहां लंबे अर्से से रोजीरोटी की तलाश में आते हैं।  मजबूर तबका की तादाद इसमें ज्यादा है। जो दूसरे राज्यों से यहां आते हैं, लेकिन उनके रहने के लिए प्रशासन आशियाने का बंदोबस्त नहीं कर पाता है।

ऐसे में वो फिर सरकारी जमीन पर ही झुग्गी डालकर रहने लगते हैं। धीरे-धीरे ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जाती है। निगम प्रशाासन की रिपोर्ट के मुताबिक करीब तीन सौ एकड़ से ज्यादा सरकारी जमीन पर आज लाखों लोग झुग्गी बनाकर रह रहे हैं। उनको हटाने की जब-जब कोशिश की गई वो सिरे नहीं चढ़ी।

राजनीति दखल कहें या फिर प्रशासन की नियत। झुग्गियों को हटाने की कामयाबी नहीं मिली, बल्कि स्लम की संख्या निरंतर बढ़ती चली गई। आज नौबत यह है कि चाहकर भी लाखों लोगों को हटाने की हिम्मत प्रशासन नहीं कर पाता है।

सिरे नहीं चढ़ पा रही स्लम फ्री योजना शहर को स्लम फ्री करने के लिए केंद्र सरकार की जवाहर लाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्यूवल मिशन हो या फिर राजीव गांधी आवासीय योजना। कोई भी अपेक्षित रूप से काममयाब नहीं हो पा रही है।

इसे सरकार की दूरगामी सोच का अभाव ही कहेंगे कि करोड़ों रुपये की लागत से तैयार किए गए करीब तीन हजार फ्लैट आज खाली हैं। स्लम के लोग उसमें जाने को तैयार नहीं हैं। सभी के अपने तर्क हैं। शुरूआत दौर में दो सौ परिवार जो इन फ्लैटस में स्थानांतरित किए गए, वो आज भी मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे हैं। इसके अलावा खासतौर से नगर निगम इस बात की पहचान नहीं कर पाया है कि फ्लैट के लिए योग्य कौन है? कई बार बायोमेट्रिक सर्वे करवाया गया।

मगर कामयाबी नहीं मिली। आज भी लोग सूची में नाम दर्ज करवाने को भटक रहे हैं। सभी लोगों को फ्लैट नहीं मिलने की आशंका के तहत लोग फिर सरकारी जमीन छोड़ने को तैयार नहीं हैं। उनका आरोप है कि निगम प्रशासन उनके साथ इंसाफ नहीं कर पा रहा है।

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