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दंगे हो जाते हैं आंख के एक इशारे में

मुरादाबाद। विकास शर्मा मंदिर में, मस्जिद में या रहता गुरुद्वारे में मेरा बच्चा पूछ रहा है आज खुदा के बारे में। प्यार के बंधन में बंधने में तो लग जाती हैं सदियां लेकिन दंगे हो जाते हैं आंख के एक इशारे...

दंगे हो जाते हैं आंख के एक इशारे में
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 31 Jul 2014 09:32 PM
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मुरादाबाद। विकास शर्मा मंदिर में, मस्जिद में या रहता गुरुद्वारे में मेरा बच्चा पूछ रहा है आज खुदा के बारे में। प्यार के बंधन में बंधने में तो लग जाती हैं सदियां लेकिन दंगे हो जाते हैं आंख के एक इशारे में।

आंख के इसी एक इशारे पर पिछले चौदह सालों में 446 बार जिले की हवाओं में नफरत का जहर घुला। कभी जुम्मन का घर जला तो कभी जगदीश का। मजहब के नाम पर हुए इन दंगों में हर बार सियासी आकाओं ने अपनी रोटियां सेंकी। दंगों में उजड़े इन परिवारों की किसी को कोई फिक्र नहीं। मैनाठेर में हुए दंगे की गूंज तो शासन तक पहुंची थी। तत्कालीन डीआईजी को दंगाइयों ने मरा समझकर छोड़ा था। दंगों के लिहाज से ठाकुरद्वारा सर्वाधिक संवेदनशील की श्रेणी में शामिल है।

पिछले चौदह वर्षों में यहां 78 बार अमन को पलीता लगा। दूसरे नंबर पर डिलारी है। क्षेत्रवासी 57 बार एक-दूसरे के खून के प्यासे हुए। बिलारी में भी 52 बार दोनों पक्षों के लोग आमने-सामने आए। खास बात यह कि सभी मामले जुलाई-अगस्त में ही हुए। दंगों की यह हकीकत पवन अग्रवाल की आरटीआई से सामने आई। इस आरटीआई के तहत मिली सूचना के मुताबिक सपा सरकार आने के बाद तो जिले में बवाल की झड़ी लग गई। 2012 के बाद से अमन के दुश्मनों ने 17 बार डिलारी को आग में झोंकने का प्रयास किया।

काफी हद तक वह सफल भी हुए। बवाल में लोगों के घर के घर उजड़ गए। बड़ी संख्या में लोग घायल भी हुए। इसी प्रकार ठाकुरद्वारा में भी सपा सरकार आने के बाद दस बार लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हुए। सदैव शांत रहने वाला छजलैट भी सपा शासन में गर्मा गया। यहां भी दस बार राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए नेताओं ने स्थानीय लोगों के जेहन में जहर घोला। पुलिस व प्रशासन के अधिकारियों ने स्थानीय लोगों को शांत किया तो खद्दरधारियों ने हालात सामान्य नहीं होने दिए।

किसी का घर जले या फिर किसी के घर का चिराग बुझे,  इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। वह तो चुनाव में सिर्फ चंद वोट पाने के लिए ऐसा करते हैं। कांठ का ही उदाहरण ले लें। अकबरपुर चैदरी गांव लगभग शांत है। कांठ क्षेत्र के लोगों को भी अब समझ में आ गया है। दोनों संप्रदाय के लोग एक दूसरे के सुख-दुख में शामिल हो रहे हैं। इसके बाद भी सपा और भाजपा एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए कांठ क्षेत्र को आग में झोंकने की कोशिश में जी जान से लगे हुए हैं।

लोगों को चाहिए कि वह इन खद्दरधारियों की बातों को नजरंदाज करके स्वयं निर्णय लें। उनके हाथों की कठपुतली न बनें। तभी जिले में अमन-चैन कायम रह सकेगा। वरना इसी प्रकार जिला दंगों के दंश से यूं ही कराहता रहेगा।

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