बीमा विधेयक पर शिवसेना के सुर विपक्ष के साथ
संसद में सरकार के आर्थिक सुधारों का एजेंडा संकट में घिरता नजर आ रहा है। उसकी सबसे बड़ी सहयोगी शिवसेना बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) सीमा को 26 से बढ़ाकर 49 प्रतिशत करने संबंधी विधेयक...
संसद में सरकार के आर्थिक सुधारों का एजेंडा संकट में घिरता नजर आ रहा है। उसकी सबसे बड़ी सहयोगी शिवसेना बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) सीमा को 26 से बढ़ाकर 49 प्रतिशत करने संबंधी विधेयक के रास्ते में बाधा खड़ी करने वाले कुछ विपक्षी राजनीतिक दलों के सुर में सुर मिलाती दिखी है।
हालांकि, बसपा ने संकेत दिया है कि वह अनावश्यक रूप से संसद में इस महतवपूर्ण विधेयक का विरोध नहीं करेगी जहां शीतकालीन सत्र के कामकाज का कल पहला दिन होने की संभावना है। शिवसेना के प्रवक्ता और लोकसभा के सांसद अरविन्द सावंत ने बताया कि अगर सरकार सामान्य तौर पर आम जनता और विशेष तौर पर कर्मचारियों और किसानों की मदद के लिए उपयुक्त संशोधन लाने में विफल रहती है तो हम बीमा विधेयक का विरोध करेंगे।
विधेयक के बारे में शिवसेना का यह रुख कांग्रेस, जद यू और तृणमूल कांग्रेस जैसे कुछ विपक्षी दलों की संसद में इस मुद्दे पर एकजुटता कायम करने की पहल के बीच सामने आया है।
सावंत ने कहा कि ऐसे कानून की कहां आवश्यकता है और क्यों विदेशी पूंजी को ऐसे क्षेत्र में लाया जा रहा है जिस क्षेत्र को एक समय लोगों की मदद करने के लिए राष्ट्रीयकत किया गया था। शिवसेना केन्द्र में राजग सरकार में शामिल है।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि निजी बीमा कंपनियां केवल मुनाफे पर ध्यान देती हैं जबकि सरकारी क्षेत्र की बीमा कंपनियों को आम जनता के हितों को देखना होता है। उन्होंने आश्चर्य जताया कि क्या बीमा क्षेत्र में 49 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ाना कहीं से लाभप्रद होगा।
अपनी सोच को रेखांकित करने के लिए उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पसंदीदा जन धन योजना को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा लागू किया जा रहा है न कि निजी क्षेत्र के बैंकों द्वारा। शिवसेना का इस विधेयक को लेकर किया जाने वाला विरोध सरकार के लिए गंभीर धक्का होगा क्योंकि शिवसेना के लोकसभा में 18 सांसद है और राज्यसभा में इस पार्टी के तीन सांसद हैं।
हालांकि, निचले सदन में भाजपा को बहुमत है लेकिन उसके बड़े सहयोगी का विरोध विपक्षी दलों के हौसले बुलंद करेगा तथा अगर इस विधेयक को पारित करने के लिए सरकार संयुक्त सत्र बुलाने का विकल्प अपनाती है जो सरकार की ताकत को कम करेगा।