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सही ढ़ंग से नहीं पो पाया अनुसंधान, बच गए सूत्रधारः सदानंद

कांग्रेस ने इतने दिनों के बाद कोर्ट का फैसला आने पर अफसोस जताया है। उसने यह भी कहा है कि केस का सही ढंग से जांच नहीं हो पाई और असली गुनाहगार पकड़ में नहीं आ पाए। कांग्रेस विधायक दल के नेता और कहलगांव...

सही ढ़ंग से नहीं पो पाया अनुसंधान, बच गए सूत्रधारः सदानंद
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 08 Dec 2014 07:15 PM
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कांग्रेस ने इतने दिनों के बाद कोर्ट का फैसला आने पर अफसोस जताया है। उसने यह भी कहा है कि केस का सही ढंग से जांच नहीं हो पाई और असली गुनाहगार पकड़ में नहीं आ पाए। कांग्रेस विधायक दल के नेता और कहलगांव के विधायक सदानंद सिंह ने कहा कि ललित बाबू जैसी हस्ती के केस का जिस से अनुसंधान होना चाहिए था, नहीं हो पाया।

हत्या के सभी सूत्रधार पकड़ में नहीं आ पाए। उन्होंने कहा कि इस केस का फैसला आने में जितना वक्त लगा चह हैरान करने वाला है। कोर्ट के फैसले पर वह कमेंट नहीं कर सकते हैं लेकिन कोर्ट में न्याय की प्रक्रिया में जो देरी हो रही है, छोटे मामले के फैसले में जितना समय लग रहा है वह चिंताजनक है। लोग न्याय के लिए परेशान हो रहे है। यह माननीय उच्चतम न्यायाल भी महसूस कर रहा है। तभी तो लोक अदालत का आयोजन किया जा रहा है ताकि लोगों को राहत मिले।

घायल ललित बाबू बोले थे-सदानंद..जो जगन्नाथ केअ देखं

2 जनवरी 1975 को समस्तीपुर में रेल परियोजना के जिस उद्घाटन सभा में ललित बाबू की हत्या हुई थी उसमें पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और कहलगांव के विधायक सदानंद सिंह भी शामिल हुए थे। उस वक्त वह बिहार के सिंचाई राज्यमंत्री थे। उस मनहूस दिन को याद कर वह आज भी भावुक हो जाते हैं।

उन्होंने बताया कि दानापुर में जब ट्रेन से उतरकर अस्पताल जाते समय वह उन्हें कंधे का सहारा देने गए लेकिन ललित बाबू ने कहा- सदानंद हमरा छोड़.. जो जगन्नाथ केअ देखं..। शायद उस वक्त तक उन्हें अपनी गंभीर स्थिति का अहसास हो चुका था और उस स्थिति में भी वह अपने छोटे भाई जगन्नाथ मिश्र की चिंता कर रहे थे जो उनके साथ ही उस बम विस्फोट में घायल हुए थे।

सदानंद बताते हैं कि समस्तीपुर के उस कार्यक्रम में उनके साथ शिक्षा मंत्री रामराजा बाबू भी कार्यक्रम में गए थे। सभा खत्म होने के 10 मिनट पहले दोनों मंच से उतरकर निकल गए थे। क्योंकि दोनों को कार से पटना वापस होना था। जबकि ललित बाबू को ट्रेन से लौटना था। विस्फोट कार्यक्रम की समाप्ति के दौरान हुआ था। उस वक्त मोबाइल की सुविधा नहीं थी। इसलिए घटन की सूचना नहीं मिल सकी।

वह बताते हैं कि मोकामा पहुंचने पर रिडक्शन जूता चप्पल के दुकान के पास वेलोग अपनी गाड़ी खड़ी कर कुछ खरीद रहे थे कि रेडियो पर यह समाचार सुनने को मिला। इसके पास पांव तले जमीन खिसक गई। वेलोग जल्दबाजी में पटना पहुंचे। सूचना मिली कि ललित बाबू को दानापुर रेलवे अस्पताल ले जाया जाएगा। 12 बजे रात को जब दानापुर में उनकी ट्रेन पहुंची तो खून से लथपथ ललित बाबू को कंधे का सहारा देते हुए अस्पताल ले जाने लगे।

ललित बाबू ने धीरे से कान में कहा- सदानंद हमरा छोड़.. जो जगन्नाथ केअ देखें..। अस्पताल पहुंचने के कुछ देर बाद ही उनकी मृत्यु हो गई। श्री सिंह बताते हैं 1970 से ललित बाबू के साथ थे और वह बहुत चाहते थे। उन्होंने बताया कि 1973 में उन्होंने ही उन्हें राज्य में राज्यमंत्री बनवाया था। पहली बार सदानंद सिंह उसी समय मंत्री बने थे।

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