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भाजपा-कांग्रेस के पास दिल्ली में नेतृत्व चेहरा नहीं

प्रमुख राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस दिल्ली विधानसभा चुनाव में पूरी दमखम से उतरने का भले ही दावा कर रहे हों लेकिन दोनों के पास कमान संभालने वाला नेता नहीं हैं। दिल्ली की सत्ता पर...

भाजपा-कांग्रेस के पास दिल्ली में नेतृत्व चेहरा नहीं
एजेंसीSun, 21 Sep 2014 01:06 PM
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प्रमुख राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस दिल्ली विधानसभा चुनाव में पूरी दमखम से उतरने का भले ही दावा कर रहे हों लेकिन दोनों के पास कमान संभालने वाला नेता नहीं हैं। दिल्ली की सत्ता पर 15 साल तक एकछत्र राज्य करने वाली शीला दीक्षित चुनावों में बुरी तरह हार कर राजधानी की राजनीति से लगभग दूर हो गई हैं। वहीं, भाजपा की अगुवाई करने वाले हर्षवर्धन केन्द्र में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री बनकर फिलहाल दिल्ली की राजनीति से छिटके से नजर आ रहे हैं।
 
इस मामले में आम आदमी पार्टी (आप) बेहतर स्थिति में है। अरविंद केजरीवाल उसकी अगुवाई कर रहे हैं तथा उन्हें लेकर कोई विवाद भी नहीं है। आप ने पिछले चुनाव में अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में करिश्मा कर पहली बार चुनाव मैदान में उतरते हुए 70 में से 28 सीटें जीतकर न केवल कांग्रेस को बेदखल किया था बल्कि भाजपा के 15 साल बाद दिल्ली की सत्ता पर आसीन होने के सपने को चकनाचूर कर दिया था।
 
कांग्रेस की बात की जाए तो पंद्रह वर्ष तक राजधानी में पार्टी का चेहरा रहीं दीक्षित को दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार के बाद केरल का राज्यपाल नियुक्त किया गया लेकिन केन्द्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार आने के उपरांत हाल में उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया और उनकी राष्ट्रीय राजधानी की राजनीति में फिर से सक्रिय होने की अटकलें लगाई जाने लगी थीं। बाद में दीक्षित ने स्वयं ही स्पष्ट कर दिया कि राष्ट्रीय राजधानी की राजनीति में अब उनकी कोई भूमिका नहीं है। 

पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष रहे जयप्रकाश अग्रवाल लोकसभा का चुनाव भी हार चुके हैं और फिलहाल शांत हैं। पूर्वी दिल्ली से दो बार सांसद रहे दीक्षित के पुत्र संदीप दीक्षित भी इस बार चुनाव हारने के बाद हाशिये पर हैं। दीक्षित ने अपने कार्यकाल के दौरान किसी और नेता को ऊबरने नहीं दिया जिससे साफ सुथरी छवि वाले अशोक कुमार वालिया और दस बार चुनाव जीतने का रिकार्ड बनाने वाले पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेम सिंह का भी कांग्रेस में कोई नामलेवा नजर नहीं आ रहा।
 
इस समय दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली हैं। हालांकि वह कई वर्षों तक दिल्ली सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में मंत्री रहे लेकिन उनकी पहचान ऐसी नहीं है जिसके करिश्माई नेतृत्व से चुनाव में कांग्रेस को लाभ मिल सके।
 
भाजपा का हाल भी कुछ ऐसा ही है। डा हर्षवर्धन के केन्द्र में मंत्री बनने और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद से हटने के बाद पार्टी की स्थानीय इकाई में भी ऐसे चेहरे की कमी नजर आ रही है जिसको सामने रखकर पार्टी चुनाव में दमदार तरीके से उतर सके। डा हर्षवर्धन के चांदनी चौक से सांसद चुने जाने और विधानसभा विपक्ष नेता पद से इस्तीफा देने के बाद भाजपा अभी तक विधायक दल का नेता नहीं चुन पाई है। भाजपा में जगदीश मुखी, साहब सिंह चौहान और रमेश विधूडी समेत कई ऐसे विधायक हैं जो चार-पांच बार अपने इलाके से तो जीते हैं लेकिन वे एक सर्वमान्य नेता के रूप में अपनी पहचान नहीं बना पाए हैं।
 

 

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