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जरा कान की भी सुनिए

आजकल सुनने की क्षमता में कमी की समस्या तेजी से बढ़ रही है। एक शोध कहता है कि 20 से 40 आयु वर्ग के 80 प्रतिशत लोगों में यह समस्या मोबाइल फोन के ज्यादा उपयोग के कारण बढ़ रही है। इसके अलावा भी इस समस्या...

जरा कान की भी सुनिए
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 23 Aug 2014 11:31 AM
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आजकल सुनने की क्षमता में कमी की समस्या तेजी से बढ़ रही है। एक शोध कहता है कि 20 से 40 आयु वर्ग के 80 प्रतिशत लोगों में यह समस्या मोबाइल फोन के ज्यादा उपयोग के कारण बढ़ रही है। इसके अलावा भी इस समस्या के अनेक कारण हैं, जो आपके कानों को परेशान करते हैं। आप अपने कानों का कैसे रख सकते हैं ख्याल, बता रही हैं शमीम खान

विज्ञान के विकास ने हमारी जीवनशैली को काफी बदल दिया है। मोबाइल और गाडियों के बढ़ते उपयोग से ध्वनि प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ गया है और उसी अनुपात में कानों की समस्याएं भी बढ़ी हैं। सबसे चिंताजनक बात यह है कि कानों की समस्याएं युवाओं में तेजी से बढ़ रही हैं। आंकड़ों के मुताबिक भारत के 20-22 प्रतिशत लोग कान की किसी न किसी बीमारी के शिकार हैं। इनमें कानों में दर्द होना, धीमी आवाजें सुनाई न देना, कान में किसी तरह का दबाव महसूस होना, कान में सूजन आ जाना या कान से तरल पदार्थ का बहना प्रमुख हैं। इसके अलावा कानों की एक गंभीर समस्या और है कि जब बाहर कोई आवाज नहीं है, तब भी आवाज सुनाई देना या कानों में घंटी बजना। ये समस्याएं आपके एक या दोनों कानों में हो सकती हैं।

ध्वनि प्रदूषण का स्वास्थ्य पर प्रभाव
ध्वनि प्रदूषण का सबसे अधिक जाना-पहचाना नुकसान है सुनने की क्षमता प्रभावित होना या कुछ निश्चित आवाजों को सुनने में अक्षमता, लेकिन ध्वनि प्रदूषण के कुछ दूसरे प्रभाव भी हैं।

ब्लड प्रेशर, हृदय की धड़कनें और सांस की गति बढ़ जाना
पाचन तंत्र गड़बड़ा जाना
कुछ लोगों में शोर माइग्रेन के ट्रिगर का कार्य करता है
ध्यान केंद्रन की शक्ति कमजोर होना और इम्यून तंत्र का कमजोर हो जाना
शोर घावों के भरने और स्वस्थ होने की गति को भी धीमा कर देता है
शोर तनाव के स्तर को बढ़ाता है
कभी-कभी अत्यधिक तेज ध्वनि या वायु दाब में परिवर्तन से कान का पर्दा फट जाता है
अधिक शोर वाले स्थानों में रहने वाले लोगों का व्यवहार चिड़चिड़ा हो जाता है।

ईयरफोन से दूरी जरूरी
आजकल युवाओं में ईयरफोन या हेडफोन का बड़ा क्रेज है। इनके लगातार इस्तेमाल से सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। लंबे समय तक तेज ध्वनि सुनने से कान के पर्दे की मोटाई प्रभावित होती है। इससे सुनने की क्षमता प्रभावित होती है और धीमी आवाजें सुनाई नहीं देती हैं। इसके अलावा इससे याददाश्त और बोलने की क्षमता भी प्रभावित होती है। शोधों में यह बात सामने आई है कि यदि कोई व्यक्ति रोज एक घंटे से अधिक 80 डेसीबल्स से तेज वॉल्यूम में संगीत सुनता है तो उसे अगले पांच वर्षों में सुनने में कठिनाई हो सकती है या स्थाई रूप से बहरा हो सकता है।

कान के पर्दे में छेद होना
जानलेवा घटना जैसे विस्फोट या वाहन चलाते समय कोई दुर्घटना घटित होने से कान में अचानक तेज दर्द हो तो हो सकता है कि कान के पर्दे में छेद हो गया हो। अगर दुर्घटना के समय तेज दर्द हो और फिर सुनाई पड़ना बंद हो जाए तो समझिए की कान के मध्य भाग को नुकसान पहुंचा है। अगर कान के पर्दे में छोटा छेद है तो वह खुद ही भर जाता है, लेकिन अगर बड़ा छेद हो जाए तो सर्जरी की आवश्यकता होती है।

स्विमिंग से संक्रमण
देर तक पानी में रहने से कानों में पानी चला जाता है। इससे कानों में दर्द होना या तरल पदार्थ बहने की समस्या हो सकती है। बचाव के लिए ईयर प्लग का इस्तेमाल करें।

हवाई यात्रा में बरतें सावधानी
हवाई यात्रा के दौरान अक्सर लोगों को कान में दर्द की शिकायत होती है। यह समस्या प्लेन के लैंडिंग करते समय अधिक होती है। बचाव के लिए ईयर प्लग का इस्तेमाल करें। च्यूइंगम चबा कर भी बच सकते हैं।

सावधानी से करें सफाई
कान से मैल अपने आप न निकल पाने के कारण अंदर जमा होने लगता है। इस पर तेल, धूल, धुआं, कचरा आदि लगने के कारण यह कड़ा हो जाता है, जिसे निकालना बेहद जरूरी होता है। कुछ दवाओं की मदद से मैल को मुलायम करके उसे निकाला जाता है।

शोर-शराबे से रहें दूर
मशीनों, फैक्ट्रियों और खासतौर पर ऑटोमोबाइल से निकलने वाले शोर के कारण वातावरण में ध्वनि प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। इस शोर-शराबे का हमारे स्वास्थ्य पर दो तरह से प्रभाव होता है। प्राथमिक स्तर पर इससे हमारी सुनने की क्षमता प्रभावित होती है। दूसरे स्तर पर एंग्जाइटी और अनिद्रा की समस्या होती है। 20-40 वर्ष की आयु वर्ग के 80 प्रतिशत लोगों में सुनने की समस्या अत्यधिक मोबाइल फोन का उपयोग करने से होती है। हालांकि अभी इसका कोई डॉंक्टरी आधार नहीं है, लेकिन कई शोधों में मोबाइल से निकलने वाले रेडिएशंस को इसका सबसे प्रमुख कारण माना गया है।

कानों को स्वस्थ रखने के टिप्स
अपने कानों को अत्यधिक सावधानी से साफ करें। कान में कोई नुकीली चीज न डालें। इससे ईयर कनैल या ईयरड्रम क्षतिग्रत हो सकता है।
ईयर वैक्स स्वयं ही कान की सफाई करता है। अगर यह अधिक मात्रा में एकत्र हो जाए और सुनने में दिक्कत हो तो डॉक्टर से संपर्क करें।
कान के संक्रमण से बचने के लिए गले और नाक के संक्रमण को गंभीरता से लें और तुरंत इलाज कराएं।
कई बीमारियां भी सुनने की क्षमता को प्रभावित करती हैं, इसलिए अगर कोई ऐसा लक्षण दिखाई दे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
अगर कानों से मवाद बह रहा है तो इसे गंभीरता से लें और जितनी जल्दी हो सके डॉक्टर को दिखाएं।
कई दवाएं भी सुनने की क्षमता को प्रभावित करती हैं। अगर कानों में घंटी बजे या दूसरी आवाजें आएं तो इसे गंभीरता से लें।
अत्यधिक तेज आवाज में संगीत न सुनें।
बारिश में भी कई बार नमी के कारण कान की नली में संक्रमण हो जाता है, इससे बचने के लिए कान को सूखा रखें।
कान का मैल साफ करने के लिए नुकीली चीजों या ईयर बड का उपयोग न करें।
नहाने के तुरंत बाद कानों को अच्छी  तरह साफ करके सुखाना चाहिए।
कान में कभी कोई तेल न डालें।

मिथ और तथ्य

मिथ: हियरिंग लॉस बुजुर्गों की समस्या है।
तथ्य: 65 वर्ष से अधिक आयु के केवल एक तिहाई लोगों को ही कम सुनाई देता है। बाकी बचे दो तिहाई लोग बुजुर्ग नहीं, बल्कि ये अलग-अलग आयुवर्ग के हैं।

मिथ: हियरिंग लॉस की पहचान तब तक नहीं हो सकती, जब तक कि बच्चा तीन वर्ष का न हो जाये।
तथ्य: हियरिंग लॉस की पहचान नवजात में भी हो सकती है। बच्चे के जन्म  के कुछ समय बाद ईयर स्क्रीनिंग करा लें। इससे रोग की पहचान और उपचार में सहायता मिलेगी।

मिथ: कानों को साफ करने के लिए केवल कॉटन स्वैब का ही उपयोग करें।
तथ्य: अधिकतर लोग सोचते हैं कि हमें शरीर की तरह कानों को भी साफ रखना चाहिए। लेकिन कानों के मामले में आपको चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह स्वयं अपने आपको साफ कर लेते हैं। कई बार हम कानों को साफ करने के चक्कर में उनमें कोई नुकीली चीज डाल लेते हैं, जिससे अस्थायी रूप से सुनने की क्षमता प्रभावित हो सकती है या कान का परदा फट सकता है। इसलिए अपने कानों में बिना सोचे-समझे कुछ न डालें। ईयर वैक्स अपने आप ईयर कैनल से बाहर आ जाता है। अगर ईयर वैक्स कड़ा हो गया है और ईयर कैनल को अवरुद्घ कर रहा है तो डॉक्टर से संपर्क करें।

आसन भी है उपाय
योग और आसन मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में ही नहीं, सुनने की क्षमता बरकरार रखने के लिए भी काफी लाभदायक हैं। सिंहासन, उष्ट्रासन, भुजंगासन, अनुलोम-विलोम आदि काफी प्रभावी हैं। 
(सफदरजंग हॉस्पिटल के सीनियर रेजीडेंट डॉं. सौरभ जैन से बातचीत पर आधारित)

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