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नेपाल भूकंप: जेहन में बसा वह डरावना शनिवार

नेपाल में बीते शनिवार को आए विनाशकारी भूकंप के पूरे एक सप्ताह हो चुके हैं, लेकिन सुधा उपाध्याय को उस दिन की हर बात अभी भी याद है। सुधा कहती हैं, 'ऐसा लग रहा था जैसे घर की दीवारें आपस में टकरा रही हों...

नेपाल भूकंप: जेहन में बसा वह डरावना शनिवार
एजेंसीSat, 02 May 2015 02:52 PM
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नेपाल में बीते शनिवार को आए विनाशकारी भूकंप के पूरे एक सप्ताह हो चुके हैं, लेकिन सुधा उपाध्याय को उस दिन की हर बात अभी भी याद है। सुधा कहती हैं, 'ऐसा लग रहा था जैसे घर की दीवारें आपस में टकरा रही हों और मैं उनके बीच फंस गई हूं।'

54 वर्षीय सुधा ने बताया कि 25 अप्रैल की दोपहर जब भूकंप आया तो वह टेलीविजन देख रही थीं।

सुधा ने बताया, 'अचानक टेलीविजन पर एक स्क्रोल चलने लगा कि भूकंप के आने के वास्तविक समय का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। अब मुझे ऐसा लग रहा है जैसे वह संदेश किसी चेतावनी की तरह था।'

उन्होंने बताया कि इसके कुछ ही सेकेंड बाद पूरा घर बुरी तरह हिलने लगा जैसा कि उन्होंने अब तक केवल फिल्मों में देखा था। सुधा इसकी तुलना 1974 में आई हॉलीवुड फिल्म 'अर्थक्वेक' से करती हैं।

सुधा ने 25 अप्रैल के उस दिन को 'कभी न भूलने वाले शनिवार' की संज्ञा दी और कहा, 'मैं मुश्किल से चलकर दरवाजे तक पहुंच सकी और दरवाजों को जितना कसकर हो सकता था कसकर पकड़े खड़ी रही और मंत्रों का उच्चारण करने लगी।'

नेपाल में 25 अप्रैल को आए 7.9 तीव्रता वाले विनाशकारी भूकंप में अब तक 6,000 से अधिक मौतें हो चुकी हैं, जबकि 14,000 से अधिक लोग घायल हुए हैं। भूकंप में 12,000 से अधिक घर क्षतिग्रस्त हुए हैं।

नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कोईराला ने त्रासदी में 10,000 से अधिक लोगों के मरने की आशंका व्यक्त की है। पिछले एक सप्ताह से नेपाल में लोग खुली जगहों में तंबुओं में रात गुजार रहे हैं तथा इस बीच भूकंप के बाद के कई झटके भी आ चुके हैं।

एक स्थानीय निवासी ने बताया, 'घरों में वापस जाने को लेकर अभी हमारे मन में डर बैठा हुआ है। भूकंप का झटका इतना तगड़ा था कि हमें अभी भी हर वक्त धरती हिलती-सी महसूस होती रहती है।'

सुधा राजधानी काठमांडू से सटे ज्ञानेश्वर में अपने पति और सास के साथ रहती हैं और जब भूकंप आया तब वह अपनी दो मंजिला घर के ऊपरी तल पर थीं।

सुधा की सास 81 वर्षीय दमयंती ने कहा, 'मैं सो रही थी कि अचानक बिस्तर बुरी तरह हिलने लगा। मैं किसी तरह कमरे में रखी कुर्सी तक पहुंचकर उसमें धम से बैठ गई।'

सुधा के पति पोखरा विश्वविद्यालय में प्राध्यापक फणींद्र उपाध्याय उस समय एक कार्यशाला में व्यस्त थे।

60 वर्षीय फणींद्र ने कहा, 'भूकंप आने के डेढ़ घंटे बाद मैं सुधा से बात कर सका। मैं कार्यशाला में व्यस्त था, तभी पूरी कक्षा हिलने लगी और हम कक्षा से निकलकर बाहर की ओर भागे।'

फणींद्र का परिवार कुछ उन परिवारों में से है जिसे कोई जनहानि नहीं हुई है, हालांकि मरने वाले अन्य लोगों के प्रति उन्होंने संवेदना व्यक्त की।

फणींद्र ने सड़क के दूसरी ओर एक घर की ओर इशारा करते हुए कहा, 'लेकिन उधर देखिए, एक दीवार गिर जाने से एक चालक की मौत हो गई।'

फणींद्र ने बताया, 'मेरी कार जमीन से दो फुट की ऊंचाई तक उछल रही थी। इससे पहले मैंने ऐसा कुछ नहीं देखा था।'

सुधा कहती हैं, 'उस दिन जो हुआ उसे शब्दों में नहीं बताया जा सकता। इस एक सप्ताह ने हमारी जिंदगी बदलकर रख दी है।'

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