चीजों को जबरदस्ती ठूंसने की नहीं है मेरी प्रवृत्ति: हिरानी
2009 में आई ‘3 ईडियट्स’ के बाद से फिल्म इंडस्ट्री में बहुतेरे बदलाव आए हैं। ये बात राजकुमार हिरानी भी मानते हैं। अब 100 करोड़ बटोरना कोई बड़ी बात नहीं रही। आमिर खान जैसे सितारे की फिल्मों...
2009 में आई ‘3 ईडियट्स’ के बाद से फिल्म इंडस्ट्री में बहुतेरे बदलाव आए हैं। ये बात राजकुमार हिरानी भी मानते हैं। अब 100 करोड़ बटोरना कोई बड़ी बात नहीं रही। आमिर खान जैसे सितारे की फिल्मों के कलेक्शन की शुरुआत ही यहीं से होती है। तो क्या बड़े कलेक्शन का दबाव हिरानी को भी परेशान करता है?
क्या वजह है कि आमिर खान और आपकी पिछली फिल्मों की प्रमोशन स्ट्रेटजी के मुकाबले इस बार रणनीति कम आक्रामक रही?
हर बार और हर काम में आक्रामकता अच्छी भी नहीं रहती (हंसते हुए)। मैं कहना चाहूंगा कि फिल्म की मांग के अनुसार हमने बढ़िया प्रमोशन किया और हमें लोगों का रिस्पांस भी अच्छा मिला। हम कुछ नई जगहों पर, कुछ पुरानी जगहों पर गए। कुल मिला कर हमारी रणनीति ठीक-ठाक रही। अब सब कुछ पहले जैसा करते तो शायद हम पर वही सब दोहराने का आरोप लगता।
इस फिल्म में भी आप चीजों को समझने और नजरिया बदलने पर जोर दे रहे हैं। पर लोग तो आपके पास इमोशनल एंटरटेनमेंट के लिए आते हैं?
इसमें बुराई क्या है? हल्के-फुल्के अंदाज में ही सही, अगर लोगों को इमोशंस और मनोरंजन के साथ सामाजिक चेतना और बदलाव की बातें भी एक असरकारक रूप में मिलती हैं। ये तो अच्छा ही है।
इससे पहले आपने शिक्षा के परंपरागत ढांचे पर फोकस किया। अब आप सामाजिक व्यवहार और उससे आगे की बात कर रहे हैं। क्या ये आमिर की फिल्मों की ट्रॉयलजी है?
शायद आप ‘तारे जमीन पर’, ‘3 ईडियट्स’ और ‘पीके’ को एक साथ जोड़ कर देख रहे हैं। यह संदर्भ ही बेबुनियाद है। जब ‘तारे जमीन पर’ रिलीज होने वाली थी, तब हम ‘3 ईडियट्स’ शुरू करने वाले थे, इसलिए आइडिया और सेम फॉरमेट वाली बात की तो गुंजाइश ही नहीं बनती है। और ‘3 ईडियट्स’ के बाद ‘पीके’ में जो बातें हम कह रहे हैं, वो किसी फिल्म के विस्तार से जुड़ी बिल्कुल नहीं हैं।
आप हमेशा बड़े सितारों के साथ ही काम करते हैं। नए लोगों को मौका भी आप कम ही देते हैं?
ऐसी बात नहीं है। ‘3 ईडियट्स’ में मैं नए लोगों को ही लेना चाहता था। आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि शरमन, माधवन आदि के अलावा कई लोग नए थे। आमिर के बारे में भी काफी बाद में विचार किया गया था। वो पहली चॉइस नहीं थे, लेकिन ‘पीके’ के लिए वही पहली पसंद थे। इस फिल्म में अब आप सुशांत सिंह राजपूत को देखेंगे, जिन्होंने इससे पहले दो ही फिल्मों में काम किया है। हां, विद्या बालन और ग्रेसी सिंह भी तो नई थीं, जब उन्होंने मेरी फिल्मों में काम किया था।
आपकी फिल्मों में आइटम नंबर नहीं होते। क्या इससे वाकई फर्क पड़ता है?
(हंसते हुए) ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ में आइटम नंबर था। उसके बाद जरूरत नहीं समझी। आइटम नंबर से परहेज नहीं है, लेकिन मुझे उतनी जरूरत नहीं महसूस होती। किसी चीज को जबरदस्ती ठूंसने वाली प्रवृत्ति नहीं है मेरी। और मेरे प्रोड्यूसर विधु विनोद चोपड़ा हमेशा इस बात को समझते रहे हैं, इसीलिए उनके साथ काम करने में मजा भी आता है।
बॉक्स ऑफिस का प्रेशर आपको भी परेशान करता है क्या?
मुनाफा कौन नहीं कमाना चाहता। हम भी चाहते हैं कि हमारी फिल्म कमाए, लेकिन ज्यादा पैसा कमाने के लिए हम कंटेंट के साथ समझौता नहीं करते। फिल्म की गुणवत्ता पर पूरा ध्यान देते हैं। फिर फिल्म की बढ़िया रिलीज के लिए रणनीति जरूर बनाते हैं। इतने सारे कार्यों के बाद थोड़ा बहुत सिर चकराना लाजिमी है। वैसे ये सारे काम हमारे प्रोड्यूसर साहब के जिम्मे होते हैं। मैं इनसे दूर ही रहता हूं।
‘पीके’ क्यों देखी जाए?
ये फिल्म न देखने के दो कारण आप मुझे बताएं, मैं इसे देखने की दस वजहें आपको गिना दूंगा।