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फिल्म रिव्यू: अब तक छप्पन 2 : आखिर क्यों?

जब किसी फिल्म का सीक्वल बनता है तो एक सवाल सहज ही मन में उठता है कि सीक्वल क्यों?  एक तो बड़ा साधारण-सा उत्तर है- किसी हिट फिल्म की साख को भुनाने के लिए बनते हैं सीक्वल, जैसे ‘दबंग’...

फिल्म रिव्यू:  अब तक छप्पन 2 :  आखिर क्यों?
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 27 Feb 2015 07:52 PM
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जब किसी फिल्म का सीक्वल बनता है तो एक सवाल सहज ही मन में उठता है कि सीक्वल क्यों?  एक तो बड़ा साधारण-सा उत्तर है- किसी हिट फिल्म की साख को भुनाने के लिए बनते हैं सीक्वल, जैसे ‘दबंग’ ‘कृष’, ‘धूम’ आदि। एक और तार्किक उत्तर हो सकता है कि फिल्मकार के पास कहने के लिए बहुत-सी बातें हैं, लेकिन उस कहानी के साथ न्याय करने के लिए ढाई-तीन घंटे काफी नहीं हैं, इसलिए सीक्वल, जैसे ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ आदि। एक और बात हो सकती है कि पिछली बार कहानी जहां पीछे छूटी थी,  वहां से उसे कुछ और रोचक तरीके से आगे बढ़ाया जा सकता है, जैसे ‘डेढ़ इश्किया’। और भी कुछ वजहें हो सकती हैं किसी सीक्वल के अस्तित्व में आने की। अमूमन ऐसी वजहों की मौजूदगी में सीक्वल दो, तीन या चार साल बाद देखने को मिल जाते हैं, लेकिन अगर 11 साल बाद किसी फिल्म का सीक्वल बनता है तो यह सवाल नए सिरे से सिर उठा लेता है कि एक दशक से भी ज्यादा समय बाद सीक्वल क्यों? पूरी फिल्म देख लेने के बाद भी इस सवाल का जवाब नहीं मिल पाता।

फिल्म की शुरुआत साधु अगाशे (नाना पाटेकर) की स्वीकारोक्ति से होती है, जिसमें वह परसेप्शन (धारणा), ट्रथ (सत्य) और क्लैरिटी (स्पष्टता) के बारे में दार्शनिक अंदाज में बात करता है और एनकाउंटर दस्ते के प्रमुख के रूप में किए गए अपने कामों की सफाई पेश करता है। यहां से कहानी फ्लैशबैक में चली जाती है। मुंबई में अंडरवर्ल्ड का तांडव एक बार फिर से बढ़ गया है। मुख्यमंत्री अन्ना गांधीवादी हैं,  लेकिन वह जनता के हितों के लिए हिंसा यानी गैंगस्टरों को खत्म करने की अनुमति दे देते हैं और इसकी जिम्मेदारी गृहमंत्री जागीरदार (विक्रम गोखले) को सौंपते हैं। गृहमंत्री पूर्व पुलिस कमिश्नर प्रधान (मोहन अगाशे) की सलाह पर बंद किए जा चुके एनकाउंटर विभाग को फिर से शुरू करता है और उसी की सलाह पर साधु को इसका प्रमुख बनाने का फैसला करता है। उधर साधु डेढ़ साल जेल में रहने के बाद बेल पर रिहा होकर अपने गांव में अपने बेटे के साथ रह रहा है। गृहमंत्री जागीरदार का संदेश लेकर उनका निजी सचिव साधु के पास उसके गांव जाता है,  लेकिन अपने विभाग द्वारा अपने ऊपर की गई ज्यादतियों से दुखी साधु दोबारा पुलिस फोर्स ज्वाइन करने से इनकार कर देता है। फिर उसे मनाने के लिए प्रधान उसके गांव जाता है, लेकिन वह उसकी बात मानने से भी विनम्रतापूर्वक इनकार देता है।

आखिरकार वह अपने बेटे के कहने पर मान जाता है (मानना ही था)  और फिर उसी जज्बे से अपराधियों को ठिकाने लगाने के काम में जुट जाता है। ऐसा लगता है कि पिछली फिल्म से काफी चीजें ज्यों की त्यों उठा कर रख दी गई हैं। पहले साधु से ईष्या करने वाला उसका जूनियर इम्तियाज था,  इस बार सूर्यकांत थोरा (आशुतोष राणा) है। पहले एक भ्रष्ट पुलिस कमिश्नर सूचक था,  इस बार उसकी जगह एक नेता ने ले ली है। अपराधी भी वैसे ही हैं- कोठों, डॉकयार्डों पर अड्डा जमाने वाले। पिछली फिल्म की ही तरह विदेश में रह कर मुंबई में साधु को बार-बार फोन करने वाला डॉन भी है। और भी समानताएं हैं। 11 साल पहले 2004 में शिमित अमीन ने ‘अब तक छप्पन’ जैसी शानदार फिल्म बनाई थी। तब की मुंबई और अंडरवर्ल्ड में अब काफी फर्क आ गया है, लेकिन शायद यह बात ‘अब तक छप्पन 2’ के निर्देशक एजाज गुलाब भूल गए हैं। उन्होंने बिल्कुल उसी र्ढे पर फिल्म बनाई है, लेकिन वैसी दमदार स्क्रिप्ट तैयार करने की जहमत नहीं उठाई।

फिल्म जब शुरू होती है तो लगता है कि कुछ अच्छा देखने को मिलेगा, लेकिन जैसे-जैसे वो आगे बढ़ती है, बिखरती जाती है। साधु अगाशे और जागीरदार के किरदार को छोड़ कर किसी भी किरदार को ठीक से गढ़ा नहीं गया है। आशुतोष राणा जैसे अच्छे कलाकार को गुलाब ने व्यर्थ कर दिया। गोविंद नामदेव क्यों हैं, पता ही नहीं चलता। गुल पनाग के होने या न होने से क्या फर्क पड़ता, समझ पाना मुश्किल है। फिल्म सिर्फ दो घंटे की है, फिर भी चुस्त नहीं है। फिल्म की एकमात्र बढ़िया बात हैं नाना पाटेकर। फिल्म में एक संवाद है- ‘वन्स अ कॉप ऑलवेज अ कॉप’ यानी एक सिपाही हमेशा सिपाही ही होता है। यही बात नाना के अभिनय के बारे में कही जा सकती है- ‘वन्स एन एक्टर ऑलवेज एन एक्टर’ यानी एक बेहतरीन अभिनेता हमेशा बेहतरीन होता है। लेकिन कमजोर स्क्रिप्ट उसके असर को भी कम कर देती है। वैसे विक्रम गोखले का अभिनय अच्छा है। संवाद कई जगह अच्छे हैं। फिल्म में कोई गाना नहीं है। एजाज बतौर निर्देशक अपनी पहली फिल्म से प्रभावित नहीं करते।

सीक्वल का मतलब होना चाहिए- पुरानी बोतल में नई शराब। लेकिन ‘अब तक छप्पन 2’ के बारे में तो हम इतना ही कह सकते हैं कि पुरानी बोतल में नई शराब तो छोड़िए, शराब का ही पता नहीं है। हां, नाना पाटेकर के लिए ये फिल्म एक बार देखी जा सकती है।

कलाकार: नाना पाटेकर, विक्रम गोखले, आशुतोष राणा, गुल पनाग, मोहन अगाशे, दिलीप प्रभवलकर, राज जुत्शी निर्देशक:  एजाज गुलाब
निर्माता:  राजू चड्ढा, गोपाल दलवी
लेखक:  नीलेश गिरकर
एडिटर:  विनय चौहान
सिनमेटोग्राफी:  सिद्धार्थ मोरे बैकग्राउंड
म्यूजिक:  संदीप चौटा

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