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फिल्म रिव्यूः एवेंजर्स : एज ऑफ अल्ट्रॉन

सुपर हीरो या इस तरह की अवधारणा पर बनी फिल्मों में अममून एक चीज कॉमन होती है कि दुनिया को किसी शक्ति से खतरा होता है। वह खतरा एलियन हो सकते हैं, कुछ अजीबो-गरीब जानवर हो सकते हैं, कोई बेहद शक्ति संपन्न...

फिल्म रिव्यूः एवेंजर्स : एज ऑफ अल्ट्रॉन
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 24 Apr 2015 09:41 PM
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सुपर हीरो या इस तरह की अवधारणा पर बनी फिल्मों में अममून एक चीज कॉमन होती है कि दुनिया को किसी शक्ति से खतरा होता है। वह खतरा एलियन हो सकते हैं, कुछ अजीबो-गरीब जानवर हो सकते हैं, कोई बेहद शक्ति संपन्न शैतान हो सकता है या मनुष्य द्वारा बनाया गया कोई रोबोट, जो अपने निर्माता के काबू से बाहर हो गया है, आदि। ‘एवेंजर्स: एज ऑफ अल्ट्रॉन’ भी  ऐसी ही एक फिल्म है।

मार्वल कॉमिक्स की सुपर हीरोज सीरीज पर आधारित यह फिल्म 2012 में आई ‘एवेंजर्स’ का सीक्वल है। ‘एवेंजर्स’ को पूरी दुनिया में काफी पसंद किया गया था, लिहाजा ‘एवेंजर्स : एज ऑफ अल्ट्रॉन’ को लेकर एक बड़ा सवाल था कि क्या यह भी पहली फिल्म की तरह लोगों को लुभा पाएगी। फिल्म देखने के बाद इसका जवाब हां है।

एवेंजर्स की टीम- टोनी स्टार्क (रॉबर्ट डाउने जूनियर), स्टीव रोजर्स (क्रिस इवांस), थोर (क्रिस हेम्सवर्थ), ब्रूस बैनर (मार्क रफेलो), नताशा रोमनॉफ (स्कारलेट जोहानसन) और क्लिंट बार्टन (जेरेमी रेनर) पूर्वी यूरोप के सोकोविया में एक हाइड्रा आउटपोस्ट पर धावा बोलते हैं। इस आउटपोस्ट का मुखिया बैरन स्ट्रकर पूर्व में लोकी द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले सेप्टर का इस्तेमाल करके मनुष्यों पर प्रयोग कर रहा होता है।

इस क्रम में एवेंजर्स का सामना स्ट्रकर के दो प्रयोगों- पेट्रो यानी क्विकसिल्वर (एरन टेलर-जॉनसन) और वांडा मैक्सिमॉफ यानी स्कारलेट विच (एलिजाबेथ ऑल्सन) से होता है। ये दोनों जुड़वां हैं।  पेट्रो की रफ्तार सुपर ह्यूमन जैसी है तो वांडा में मस्तिष्क को प्रभावित करने तथा एनर्जी ब्लास्ट करने की गजब की शक्ति है। स्टार्क को वहां लोकी का सेप्टर मिल जाता है। स्टार्क और बैनर को सेप्टर के जेम में एक मशीन मानव मिलता है और वे उसका इस्तेमाल ग्लोबल डिफेंस प्रोग्राम ‘अल्ट्रॉन’ को पूरा करने के लिए करते हैं।

अचानक अल्ट्रॉन को ये लगने लगता है कि दुनिया को बचाने के लिए पृथ्वी से मनुष्यों को खत्म करना जरूरी है। वह सबसे पहले एवेंजर्स पर हमला कर देता है और सेप्टर लेकर भाग जाता है। अल्ट्रॉन सोकोविया स्थित स्ट्रकर के ठिकाने पर उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल अपने अल्प- विकसित शरीर को अपग्रेड करने और रोबोट ड्रोन की सेना बनाने में करता है। और फिर शुरू होती है एवेंजर्स और अल्ट्रॉन की जंग।

ऐसी फिल्मों में कहानी या कंटेंट से ज्यादा अहम यह होता है कि पूरे घटनाक्रम को पेश किस तरह किया गया है। निस्संदेह ऐसी फिल्मों में टेक्नोलॉजी की बहुत बड़ी भूमिका होती है। ये फिल्म इस कसौटी पर पूरी तरह खरी उतरती है। पहले ही दृश्य से रोमांच का जो सफर शुरू होता है, वह फिल्म खत्म होने पर ही थमता है। यह 3डी फिल्म हर तरीके से भव्य लगती है। विजुअल इफेक्ट्स कमाल के हैं। साउंड इफेक्ट्स भी शानदार हैं।

एक्शन दृश्य चलते हैं तो ऐसा लगता है, जैसे उड़ते हुए घर, गाड़ियां, पात्रों के अस्त्र-शस्त्र अपनी ओर आ रहे हैं, लिहाजा बचने के लिए गर्दन अनायास ही दायें-बायें होने लगती है। ये दृश्य इतने फास्ट हैं कि ये तो पता चलता है कि लड़ाई हो रही है, लेकिन ये पता नहीं चलता कौन क्या कर रहा है।

फिल्म की कास्ट भी इसकी बहुत बड़ी खासियत है। हर कलाकार अपने किरदार में ऐसे फिट नजर आता है, जैसे वो खास तौर से उसी के लिए गढ़ा गया हो। अल्ट्रॉन को आवाज दी है जेम्स स्पेडर ने और वे अपनी आवाज से एक अलग ही तरह का प्रभाव पैदा करते हैं। इस फिल्म को देखना एक रोमांचक अनुभव से रूबरू होना है।       

कलाकार: रॉबर्ट डाउने जूनियर,
क्रिस हेम्सवर्थ, मार्क रफेलो, क्रिस इवांस, स्कारलेट जोहानसन, जेरेमी रेनर, डॉन शीडल, एरन टेलर-जॉनसन, एलिजाबेथ ऑल्सन, पॉल बेटानी, जेम्स स्पेडर, सैमुअल एल़ जैक्सन लेखक व निर्देशक: जॉस ह्वेडन निर्माता: केविन फीज सिनमेटोग्राफी: बेन डेविस प्रोडक्शन कंपनी: मार्वल स्टूडियोज

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