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Birthday Special : रफी को एक फकीर से मिली थी प्लेबैक सिंगिंग की प्रेरणा

आवाज की दुनिया के बेताज बादशाह मोहम्मद रफी को प्लेबैक सिंगिंग की प्रेरणा एक फकीर से मिली थी। पंजाब के कोटला सुल्तान सिंह गांव में 24 दिसंबर 1924 को एक मध्य वर्गीय मुस्लिम परिवार में जन्में रफी एक...

Birthday Special : रफी को एक फकीर से मिली थी प्लेबैक सिंगिंग की प्रेरणा
एजेंसीFri, 31 Jul 2015 04:00 PM
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आवाज की दुनिया के बेताज बादशाह मोहम्मद रफी को प्लेबैक सिंगिंग की प्रेरणा एक फकीर से मिली थी। पंजाब के कोटला सुल्तान सिंह गांव में 24 दिसंबर 1924 को एक मध्य वर्गीय मुस्लिम परिवार में जन्में रफी एक फकीर के गीतों को सुना करते थे जिससे उनके दिल में संगीत के प्रति एक अटूट लगाव पैदा हो गया।

रफी के बड़े भाई हमीद ने मोहम्मद रफी के मन मे संगीत के प्रति बढ़ते रूझान को पहचान लिया था और उन्हें इस राह पर आगे बढ़ने मे प्रेरित किया। लाहौर में रफी संगीत की शिक्षा उस्ताद अब्दुल वाहिद खान से लेने लगे और साथ हीं उन्होंने गुलाम अली खान से भारतीय शास्त्रीय संगीत भी सीखना शुरू कर दिया।
       
एक बार हमीद रफी को लेकर के.एल.सहगल संगीत के कार्यक्रम में गए। लेकिन बिजली नहीं रहने के कारण के.एल.सहगल ने गाने से इंकार कर दिया। हमीद ने कार्यक्रम के संचालक से गुजारिश की वह उनके भाई रफी को गाने का मौका दें। संचालक के राजी होने पर रफी ने पहली बार 13 वर्ष की उम्र में अपना पहला गीत स्टेज पर दर्शको के बीच पेश किया।

दर्शकों के बीच बैठे संगीतकार श्याम सुंदर को उनका गाना अच्छा लगा और उन्होंने रफी को मुंबई आने के लिए न्यौता दिया। श्याम सुदंर के संगीत निर्देशन में रफी ने अपना पहला गाना 'सोनिये नी हिरीये नी' पार्शव गायिका जीनत बेगम्म के साथ एक पंजाबी फिल्म 'गुल बलोच' के लिए गाया। वर्ष 1944 में नौशाद के संगीत निर्देशन में उन्हें अपना पहला हिन्दी गाना हिन्दुस्तान के हम है 'पहले आप' के लिए गाया।
        
वर्ष 1949 में नौशाद के संगीत निर्देशन में दुलारी फिल्म में गाये गीत 'सुहानी रात ढ़ल चुकी' के जरिये वह सफलता की ऊंचाईयों पर पहुंच गए और इसके बाद उन्होनें पीछे मुड़कर नहीं देखा। दिलीप कुमार, देवानंद, शम्मी कपूर, राजेन्द्र कुमार, शशि कपूर, रजकुमार जैसे नामचीन नायकों की आवाज कहे जाने वाले रफी ने अपने संपूर्ण सिने करियर में लगभग 700 फिल्मों के लिए 26000 से भी ज्यादा गीत गाए।
        
मोहम्द रफी ने हिन्दी फिल्मों के अलावे मराठी और तेलगू फिल्मों के लिए भी गाने गाये। मोहम्मद रफी अपने करियर में 6 बार फिल्म फेयर अवॉर्ड से सम्मानित किये गए। वर्ष 1965 में रफी पदमश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किये गए।
        
30 जुलाई 1980 को 'आस पास' फिल्म के गाने 'शाम क्यू उदास है दोस्त' गाने को पूरा करने के बाद जब रफी ने लक्ष्मीकांत प्यारेलाल से कहा 'शूड आई लीव' जिसे सुनकर लक्ष्मीकांत प्यारे लाल अचंभित हो गए क्योंकि इसके पहले रफी ने उनसे कभी इस तरह की बात नहीं की थी। अगले दिन 31 जुलाई 1980 को रफी को दिल का दौरा पड़ा और वह इस दुनिया को हीं छोड़कर चले गए।

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