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फिल्म इंडस्ट्री में बाल कलाकारों का जलवा भी कम नहीं

यूं तो हिन्दी सिनेमा युवा प्रधान है और समूचा सिने उद्योग युवा, उसकी सोच और मांग को ध्यान में रखकर फिल्मों का निर्माण करता है लेकिन बाल कलाकारों ने इस व्यवस्था को अपने दमदार अभिनय से लगातार चुनौती दी...

फिल्म इंडस्ट्री में बाल कलाकारों का जलवा भी कम नहीं
एजेंसीSat, 14 Nov 2015 05:37 PM
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यूं तो हिन्दी सिनेमा युवा प्रधान है और समूचा सिने उद्योग युवा, उसकी सोच और मांग को ध्यान में रखकर फिल्मों का निर्माण करता है लेकिन बाल कलाकारों ने इस व्यवस्था को अपने दमदार अभिनय से लगातार चुनौती दी है।
              
बाल फिल्मों की गिनीचुनी संख्या और बाल कलाकारों को मुख्यधारा के सिनेमा में कम जगह मिलने के बावजूद इन कलाकारों का इतिहास भरपूर रोशन है। इनमें बेबी तबस्सुम, मास्टर रतन, डेजी ईरानी, पल्लवी जोशी, मास्टर सचिन, नीतू सिंह, पद्मिनी कोल्हापुरे और उर्मिला मातोंडकर का नाम काफी मशहूर हुआ।
           
सत्तर के दशक में ऐसे कई बाल कलाकार भी हुए जिन्होंने बाद में बतौर अभिनेता और अभिनेत्री बनकर फिल्म इंडस्ट्री में अपनी अमिट छाप छोड़ी। ऐसे ही बाल कलाकारों में नीतू सिंह, पद्मिनी कोल्हापुरी और सचिन प्रमुख हैं।
        
सत्तर के दशक में नीतू सिंह ने कई फिल्मों में बाल कलाकार के तौर पर अभिनय किया। इनमें वर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म 'दो कलियां' में नीतू सिंह के डबल रोल को सिने प्रेमी शायद ही कभी भूल पायें। इस फिल्म में उन पर फिल्माया यह गीत ‘बच्चे मन के सच्चे’ दर्शकों के बीच आज भी लोकप्रिय है।

सत्तर के दशक में बाल कलाकार के तौर पर फिल्म इंडस्ट्री में पद्मिनी कोल्हापुरे ने भी अपनी धाक जमायी थी। बतौर बाल कलाकार उनकी महत्वपूर्ण फिल्मों में 'सत्यम शिवम सुंदरम', 'ड्रीमगर्ल', 'जिंदगी', 'सजना बिना सुहागन' आदि शामिल हैं।
            
अस्सी के दशक में बाल कलाकार अपनी भूमिका में विविधता को कुशलता पूर्वक निभाकर अपनी धाक बचाने में सफल रहे। निर्देशक शेखर कपूर ने एक ऐसा ही प्रयोग किया था। फिल्म 'मासूम' में जिसमें बाल कलाकार जुगल हंसराज ने अपने दमदार अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
        
साल 1998 में प्रदर्शित फिल्म 'कुछ कुछ होता है' फिल्म इंडस्ट्री की सर्वाधिक कामयाब फिल्मों में शुमार की जाती है। शाहरुख खान और काजोल जैसे दिग्गज कलाकारों की उपस्थिति में बाल अभिनेत्री सना सईद अपने दमदार अभिनय से दर्शकों का दिल जीतने में सफल रही।
        
हाल के दौर में बाल कलाकारों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो गई है और उनका काम दो प्रेमियों को मिलाने भर नहीं रह गया है। हाल के वर्षों में बाल कलाकार जिस तरह से अभिनय कर रहे है वह अपने आप में अद्वितीय है। इसकी शुरुआत फिल्म 'ब्लैक' से मानी जा सकती है। संजय लीला भंसाली निर्मित फिल्म में आयशा कपूर ने जिस तरह की भूमिका की उसे देखकर दर्शकों ने दातों तले उंगलियां दबा लीं।

लेखक अमोल गुप्ते ने डिसलेक्सिया से पीड़ित बच्चे की कहानी पर 'तारे जमीन पर' बनाने का निश्चय किया और अभिनेता आमिर खान से इस बारे में बातचीत की। आमिर खान को यह विषय इतना अधिक पसंद आया कि न सिर्फ उन्होंने फिल्म में अभिनय किया और साथ ही निर्देशन भी किया।
       
'तारे जमीन पर' में अपने बेहतरीन अभिनय से दर्शील सफारी ने यह साबित कर दिया कि सुपर स्टार की तुलना में बाल कलाकार भी सशक्त अभिनय कर सकते है और करोड़ों दर्शकों के बीच किसी संवेदनशील मुद्दे पर सामाजिक जागरूकता फैलाने और उस पर जरूरी कदम उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाते हैं।
        
आज के दौर में बाल कलाकारों की प्रतिभा के कायल महानायक अमिताभ बच्चन भी है। सदी के महानायक फिल्म 'ब्लैक' में काम करने वाली बाल कलाकार आयशा कपूर की तारीफ करते नहीं थकते। इसकी वजह यह है कि इन कलाकारों को अभिनय का प्रशिक्षण नहीं मिला होता और वह वास्तविकता के करीब का अभिनय करते।
        
इसी तरह फिल्म 'भूतनाथ' में अमिताभ बच्चन के साथ भूमिका करने वाले अमन सिद्दकी ने बंकू की भूमिका को सहज ढंग से निभाया। अमिताभ बच्चन के सामने किसी भी कलाकार को सहज ढंग से काम करने में दिक्कत हो सकती थी लेकिन अमन सिद्दकी को ऐसा महसूस ही नहीं हुआ कि सुपरस्टार अमिताभ बच्चन उसके साथ काम कर रहा है।

रूपहले पर्दे पर बाल कलाकारों तथा बाल गीतों ने हमेशा से सिने प्रेमियों के दिलों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है।
             
साल 1954 में प्रदर्शित फिल्म 'जागृति' संभवत: पहली फिल्म थी जिसमें बाल गीत को खूबसूरती से रूपहले परदे पर दिखाया गया था। इस फिल्म में संगीतकार हेमंत कुमार के संगीत निर्देशन में कवि प्रदीप का रचित और उनका ही गाया यह गीत 'आओ बच्चों तुम्हें दिखाये झांकी हिंदुस्तान की' बेहद लोकप्रिय हुआ था और बाल गीतों में इस गीत का विशिष्ट स्थान आज भी बरकरार है। इसके अलावा इसी फिल्म में मोहम्मद रफी की आवाज में कवि प्रदीप का ही लिखा गीत 'हम लाये है तूफान से कश्ती निकाल के' श्रोताओं के बीच आज भी अपनी अमिट छाप छोड़ता है।
            
शायद ही लोगों को मालूम होगा कि दिलीप कुमार और वैजंयती माला को लेकर बनी फिल्म 'गंगा जमुना' नाम से बनी फिल्म में आज के दौर की चरित्र अभिनेत्री अरूणा ईरानी ने बतौर बाल कलाकार काम किया था। इस फिल्म में नौशाद के संगीत निर्देशन में हेमंत कुमार की आवाज में शकील बदायूंनी का रचित यह गीत 'इंसाफ की डगर पर बच्चो दिखाओ चल के' श्रोताओं को आज भी अभिभूत कर देता है।
          
इसके बाद समय-समय पर फिल्मों में बाल गीत फिल्माये गए इनमें प्रमुख है: 'नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी मे क्या है', 'इचक दाना बिचक दाना', 'तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा', 'इंसाफ की डगर पे बच्चो दिखाओ चल के', 'नन्हा मुन्ना राही हूं', 'चक्के पे चक्का', 'बच्चे मन के सच्चे', 'चंदा है तू मेरा सूरज है तू', 'रेलगाड़ी रेलगाडी', 'रे मामा रे रामा रे', 'है न बोलो बोलो', 'चंदा मामा दूर के', 'रोना कभी नही रोना', 'एक बटा दो', 'रोते रोते हंसना सीखो', 'लकड़ी की काठी काठी पे घोड़ा', 'जिंदगी की यही रीत है' आदि ने खूब लोकप्रियता अर्जित की।

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