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दोस्त की कहानी से मिला 'कोर्ट' का आइडिया

चैतन्य ताम्हणे की पहली फिल्म 'कोर्ट' नेशनल अवॉर्ड जीत कर ऑस्कर के लिए नामांकन ले चुकी है। पिछले साल वेनिस फिल्म समारोह में इस मराठी फिल्म को दो खिताब भी मिले थे। 28 की उम्र में चैतन्य बॉलीवुड के नामी...

दोस्त की कहानी से मिला 'कोर्ट' का आइडिया
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 25 Sep 2015 07:52 PM
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चैतन्य ताम्हणे की पहली फिल्म 'कोर्ट' नेशनल अवॉर्ड जीत कर ऑस्कर के लिए नामांकन ले चुकी है। पिछले साल वेनिस फिल्म समारोह में इस मराठी फिल्म को दो खिताब भी मिले थे। 28 की उम्र में चैतन्य बॉलीवुड के नामी निर्देशकों की श्रेणी में हैं, लेकिन उनका सफर आसान नहीं था। पेश है उनसे बातचीत के कुछ अंश


- दुनिया भर से इतने अवॉर्ड जीतने के बाद भारत में भी खूब प्यार मिला है। क्या आपको उम्मीद थी कि मराठी फिल्म इतना सम्मान दिलाएगी?
जब 'कोर्ट' को बेस्ट फीचर फिल्म का नेशनल अवॉर्ड मिला तो सबसे ज्यादा खुशी हुई। उम्मीद है कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस फिल्म को देखेंगे। फिल्म अच्छी हो तो भाषा कभी रुकावट नहीं बनती।

- अपने बारे में कुछ बताएं।
मैं मुंबई में जन्मा और यहीं पला-बढ़ा हूं। मीठीभाई कॉलेज से स्नातक किया। बचपन से ही अभिनय करना चाहता था, इसलिए मराठी थियेटर किया। खूब फिल्में देखता और कहानी लिखता था। बालाजी टेलीफिल्म्स ज्वाइन किया। सीरियल 'क्या होगा निम्मो का' में सहायक लेखक के तौर पर काम करने लगा। दोस्तों के साथ मिल कर डॉक्यूमेंट्री फिल्म 'फोर स्टेप प्लान' बनाई।

- बालाजी के बाद क्या किया?
कुछ समय के लिए यूटीवी के साथ बतौर शोधकर्ता एवं विदेशी फिल्मों के प्रोग्रामर के तौर पर काम किया। 21 साल में मैंने नाटक 'ग्रे एलिफेंट्स इन डेनमार्क' लिखा और निर्देशित किया। 'कोर्ट' के नायक विवेक गोंब्रे ने नाटक में मुख्य भूमिका निभाई थी।

- संघर्ष के दिनों के बारे में कुछ बताएं।
जब मैं 23 साल का था तो उस समय मेरे पास कोई नौकरी नहीं थी। मुझ पर पैसा कमाने का दबाव था और मैं अंदर से टूट चुका था, लेकिन मैंने हार नहीं मानी।

- 'कोर्ट' बनाने का विचार कहां से आया?
मेरा एक दोस्त सामाजिक कार्यकर्ता है और झारखंड में रहता है। कुछ साल पहले उसे पुलिस ने बम विस्फोट के एक मामले में संदिग्ध के तौर पर गिरफ्तार कर लिया था, क्योंकि पुलिस असली मुजरिम को ढूंढ़ नहीं पा रही थी और मुजरिम का नाम इसके नाम से मिलता-जुलता था। उसे छूटने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी। बस यहीं से आइडिया मिला।

- फिल्म की तैयारी किस तरह से की? कैसी कठिनाइयां सामने आईं?
कई वकीलों, कार्यकर्ताओं से मिला। खूब किताबें पढ़ीं, अखबारों की कतरनें रखीं। यह सब करने और स्क्रीप्ट लिखने में एक साल का समय लग गया। इसके बाद प्री-प्रोडक्शन (ऑडीशन, कास्टिंग आदि) में एक साल लगा। हमें फिल्म के लिए पूरा सेट तैयार करना पड़ा, क्योंकि कोर्ट के भीतर शूटिंग की इजाजत नहीं दी जाती। 45 दिन में शूटिंग खत्म की। इसके बाद प्रोस्ट प्रोडक्शन का काम हुआ। चुनौती यह रही कि हमारी फिल्म में 80 प्रतिशत लोग ऐसे थे, जिन्होंने पहले कभी कैमरा फेस नहीं किया था। हमने मुंबई की रियल लोकेशंस पर शूटिंग की।

- आगे क्या कर रहे हैं?
मैं एक फिल्म की स्क्रीप्ट पर काम कर रहा हूं। 

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