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राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन

राष्ट्रमंडल समूह की क्या विशेषता है? अफसोस, यह सवाल कोई नहीं करता। तब भी, जबकि राष्ट्रमंडल देशों की कुल आबादी दो सौ करोड़ से ऊपर है। यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा समूह है। पहला बड़ा अंतरराष्ट्रीय...

राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 23 Jul 2014 10:18 PM
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राष्ट्रमंडल समूह की क्या विशेषता है? अफसोस, यह सवाल कोई नहीं करता। तब भी, जबकि राष्ट्रमंडल देशों की कुल आबादी दो सौ करोड़ से ऊपर है। यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा समूह है। पहला बड़ा अंतरराष्ट्रीय संगठन संयुक्त राष्ट्र है। ग्लासगो में राष्ट्रमंडल खेलों की शुरुआत याद दिलाती है कि यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खेल आयोजन है। पहला स्थान ओलंपिक का आता है। राष्ट्रमंडल  देशों का इतिहास, उनका कारोबार व राजनीतिक संपर्क इंग्लैंड से जुड़े हुए हैं। 1962 तक राष्ट्रमंडल के हर नागरिक को ब्रिटेन में बसने का अधिकारी समझा जाता था। पर आज त्रिनिदाद के किसी नागरिक की बजाय किसी जर्मन का इंग्लैंड में बसना आसान हो गया है। तब भी राष्ट्रमंडल समूह अपने लिए कोई दावा नहीं करता और अच्छाई पर बल देता है। हालांकि, इसके रिकॉर्ड हर मामले में बेहतर नहीं, लेकिन सदस्य देश हमेशा इंसानी हकों के समर्थन में लामबंद रहे हैं। दक्षिण अफ्रीका के रंग-भेद युग का इसने विरोध किया और इससे इस युग का खात्मा हुआ। याद कीजिए, जब दक्षिण अफ्रीकियों ने ‘पुराने राष्ट्रमंडल’ को देखकर उनके साथ रग्बी या क्रिकेट खेलने की इच्छा नहीं जताई थी। इस समूह ने उन देशों को भी अपना सदस्य बनाया, जिनका ब्रिटेन के साथ ऐतिहासिक या औपनिवेशिक जुड़ाव नहीं था। रवांडा इसका एक उदाहरण है। सांस्कृतिक और शैक्षणिक कार्यक्रम के अलावा, राष्ट्रमंडल समूह एक ऐसा मंच है, जिस पर सेंट लुसिया, कनाडा, टोंगा, माल्टा और नाइजीरिया जैसे विविध देशों के शासनाध्यक्ष इकट्ठा होते हैं और ब्रिटेन की महारानी के साथ उनकी बातचीत होती है। लेकिन इस समूह के भविष्य में हम क्या देख पाते हैं? क्या महारानी की प्रतिष्ठा और करिश्मे के बिना यह एक दिन जीवित रह पाएगा? निस्संदेह, सब कुछ ठीक रहे, तो यह भी होगा। राष्ट्रमंडल समूह को लेकर कुछ आपत्तियां बेशक हैं, और इस पर अक्सर बहस भी होती रहती है। किंतु यह बहस निर्थक न साबित हो, इसका खयाल रखा जाता है और सदस्य देशों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पद्र्धी भावना बने, इसलिए सभी को इसके विशाल खेल आयोजन पर ध्यान देना चाहिए।  

टेलीग्राफ, लंदन

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