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यात्रा से बनी उम्मीदें

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिकी कार्यक्रम को उसकी तफसील की बजाय उसके कुल जमा प्रभाव के लिए जाना जाएगा। जिन बातों में तफसील और तथ्यों का महत्व होता है, वे यूं भी मीडिया की मौजूदगी में होने वाले...

यात्रा से बनी उम्मीदें
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 29 Sep 2014 07:38 PM
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिकी कार्यक्रम को उसकी तफसील की बजाय उसके कुल जमा प्रभाव के लिए जाना जाएगा। जिन बातों में तफसील और तथ्यों का महत्व होता है, वे यूं भी मीडिया की मौजूदगी में होने वाले भव्य आयोजन नहीं होते। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ नरेंद्र मोदी की बातचीत में जरूर काफी काम की बातें होंगी। प्रमुख अमेरिकी सीईओ के साथ बातचीत का उद्देश्य भी उन्हें यह बताना है कि भारत निवेश करने के लिए एक बेहतरीन ठिकाना है। अगर भारत में उद्योग आए, तो उसके बारे में भी गंभीर बातचीत बाद में ही होगी। लेकिन माहौल का एक फायदा होता है और इससे भविष्य में होने वाले कामकाज पर भी अच्छा असर पड़ेगा। मेडिसन स्क्वॉयर में मोदी की रैली किसी रॉक स्टार के आयोजन की तरह थी और इससे अमेरिकी समाज पर यह प्रभाव तो पड़ेगा कि भारत में मोदी और उनकी सरकार को लेकर उत्साह और उम्मीद का माहौल है। आप्रवासी भारतीयों में मोदी के समर्थक बहुत हैं। अपने देश से दूर एक अजनबी संस्कृति में रहते हुए उन्हें अपने धर्म और संस्कृति का कुछ ज्यादा ही आकर्षण होता है। ऐसे में, बड़ी तादाद में आप्रवासी विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठनों से जुड़ जाते हैं, जो कि संघ परिवार के ही अंग हैं।

फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी जैसी कुछ संस्थाएं भी अमेरिका में सक्रिय हैं। पिछली सरकार के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था की हालत खराब रही, इससे भी भाजपा और नरेंद्र मोदी के प्रति समर्थन बढ़ा। चुनाव के दौरान भी आप्रवासी भारतीयों ने भाजपा को भारी समर्थन दिया। उस मायने में यह उनकी धन्यवाद ज्ञापन रैली थी। यहीं पर 2005 में मोदी की रैली की योजना बनी थी, लेकिन अमेरिकी सरकार ने उन्हें गुजरात दंगों की वजह से वीजा नहीं दिया था। उसी जगह भव्य रैली करना इस मायने में भी विजय रैली थी। नरेंद्र मोदी का भाषण भी प्रसंग के अनुकूल ही उत्सवधर्मिता लिए हुए था। उन्होंने आप्रवासी भारतीयों के प्रति उनके समर्थन के लिए आभार प्रकट किया और उन्हें कई सुविधाएं देने की घोषणा की। इनमें से कई सुविधाएं ऐसी हैं, जो तर्कपूर्ण हैं और काफी पहले मिल जानी चाहिए थीं। मोदी काफी कर्मठ हैं और यह उम्मीद की जा सकती है कि जो घोषणाएं उन्होंने न्यूयॉर्क में कीं और जो बातें उन्होंने उद्योग प्रमुखों से कीं, उन्हें वह जल्दी ही पूरा करेंगे। तब यह हो सकता है कि आप्रवासी भारतीयों को ही नहीं, अमेरिकी पर्यटकों या कामकाज के लिए भारत आने वाले अमेरिकियों को बहुत सारी लालफीताशाही और सरकारी उलझनों से छुट्टी मिल जाए। मोदी वहां जिस माहौल में थे, उसमें उन्होंने यही कहा कि उनका भारत में स्वागत है और वे भारत आएंगे, तो उन्हें काफी सारी चीजें बदली हुई मिलेंगी।

आप्रवासी भारतीयों की संख्या अमेरिका में काफी है। अमेरिकी प्रशासन और उद्यम वाणिज्य में भी वे काफी वजनदार हैसियत रखते हैं। यह सच है कि मोदी ने अमेरिका में बहुत अनुकूल माहौल पैदा कर दिया है। लेकिन यह मोदी भी जानते हैं कि असली चुनौती देश में ऐसा माहौल बनाना है कि आप्रवासी या अमेरिकी यहां आर्थिक गतिविधियां शुरू कर सकें। बुनियादी ढांचे की कमजोरियों से लेकर भ्रष्टाचार, कानून-व्यवस्था और लालफीताशाही जैसी कई समस्याएं विदेश में रहने वाले लोगों को यहां आने से रोकती हैं। भारत आज भी उद्योग-व्यापार शुरू करने और चलाने के सबसे मुश्किल ठिकानों में से है। मोदी ने इन समस्याओं के हल का वादा सभी से किया है। हम उम्मीद करें कि मोदी की अमेरिका यात्रा में बना उम्मीद का माहौल हकीकत की शक्ल अख्तियार करेगा।

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