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विवादित बयानों की राजनीति

पिछले कुछ हफ्तों से विवादास्पद बयानों का दौर जारी है। पहले गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ ने दावा किया कि युवा मुस्लिम पुरुषों ने हिंदू लड़कियों को फांसने के लिए लव जेहाद की योजना बनाई है। उन्नाव से...

विवादित बयानों की राजनीति
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 09 Jan 2015 09:47 PM
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पिछले कुछ हफ्तों से विवादास्पद बयानों का दौर जारी है। पहले गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ ने दावा किया कि युवा मुस्लिम पुरुषों ने हिंदू लड़कियों को फांसने के लिए लव जेहाद की योजना बनाई है। उन्नाव से सांसद साक्षी महाराज ने कहा कि महात्मा गांधी का हत्यारा नाथूराम गोडसे सच्चा देशभक्त था। साल बदल गया, लेकिन साक्षी महाराज के ऐसे बयानों का सिलसिला नहीं रुका। फतेहपुर से सांसद और केंद्रीय राज्यमंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने अपने एक भाषण में भाजपा से इतर दलों के लिए असंसदीय शब्द का प्रयोग कर दिया। अलीगढ़ से सांसद सतीश गौतम ने मुस्लिम और ईसाइयों को हिंदू बनाने के कार्यक्रम का समर्थन किया।

ये चारों सांसद भारतीय जनता पार्टी के हैं, जो कि अभी केंद्र में सत्ता में हैं। विपक्ष ने प्रधानमंत्री से अपने सांसदों के बयानों पर अपना रुख साफ करने को कहा। राज्यसभा में चार दिन तक लगातार काम बंद रहा। प्रधानमंत्री पहले नहीं आए और बाद में उन्होंने एक ऐसा बयान दिया, जो विपक्ष के नजरिये से सांसदों के बयानों का स्पष्ट विरोध नहीं करता था। इन विवादों पर जो भी व्यापक प्रेस कवरेज हुआ है उसमें एक तथ्य भुला दिया गया है। ये चारों भड़काऊ भाषण देने वाले भाजपा सांसद उत्तर प्रदेश से चुने गए हैं। इन चारों को उम्मीदवार भाजपा के तत्कालीन महासचिव अमित शाह ने बनाया था, जिन्हें देश के सबसे बड़े राज्य में चुनाव का प्रभारी बनाया गया था। प्रधानमंत्री को अपना रवैया साफ करने को बार-बार कहा गया, लेकिन किसी ने भी संसद में या उसके बाहर उस व्यक्ति को जिम्मेदार नहीं ठहराया, जिसने इन कट्टरपंथियों को सांसद बनाया।

अमित शाह का मुख्यधारा में स्वीकार भारतीय राजनीति का एक चिंताजनक पहलू है। हम एक ऐसे व्यक्ति की बात कर रहे हैं, जो किसी राज्य का पहला गृहमंत्री था, जिसे गिरफ्तार किया गया हो। उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने दो साल के लिए उनके अपने राज्य से बेदखल कर दिया था। आरोप है कि उन्होंने पुलिस का इतना राजनीतिकरण कर दिया कि जो उनकी बात नहीं मानता था, उसे सजा दी जाती थी। जब लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी जीती, तो अमित शाह का विवादास्पद अतीत भुला दिया गया। यह जीत काफी हद तक उत्तर प्रदेश पर आधारित थी, जहां भाजपा ने 80 में से 71 सीटें जीतीं। इस शानदार सफलता के लिए पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया। भाजपा की सफलता में अमित शाह की भूमिका की वजह से मीडिया में उन पर काफी प्रशंसा देखने में आई। विवादास्पद अतीत वाले अमित शाह को आधुनिक चाणक्य मान लिया गया।

मीडिया विशेषज्ञ अमित शाह की उम्मीदवार चुनने की क्षमता की भरपूर प्रशंसा करते हैं। जो उम्मीदवार उन्होंने चुने, उनमें योगी आदित्यनाथ, साक्षी महाराज, साध्वी निरंजन ज्योति और सतीश गौतम शामिल हैं। इसके बावजूद किसी ने भाजपा अध्यक्ष से इन सांसदों के बयानों पर स्पष्टीकरण नहीं मांगा। इस बीच संघ परिवार के अन्य सदस्यों ने अपने इरादे जाहिर कर दिए। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने घोषणा कर दी कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है और इस देश के हर नागरिक को मान लेना चाहिए कि वह हिंदू है। विश्व हिंदू परिषद ने धर्म परिवर्तन की योजना जाहिर कर दी।

नरेंद्र मोदी कई सालों तक हिंदू राष्ट्र के कट्टर समर्थक रहे हैं। मुख्यमंत्री के तौर पर अपने शुरुआती दौर में उन्होंने मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ काफी चुभती हुई टिप्पणियां की हैं, लेकिन लगभग सन 2008 से उन्होंने एक अपेक्षाकृत उदार छवि बनानी शुरू कर दी। अब वह विकास पुरुष थे, जो सारे गुजरात को समृद्धि की राह पर ले जाना चाहते थे। जब वह प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो गए, तो हालांकि उनकी राजनीति का तीखा चरित्र बरकरार रहा, लेकिन अब वह समुदायों पर नहीं, बल्कि राजनेताओं पर निशाना साधने लगे। उनकी जबरदस्त भाषण कला और इस रिब्रांडिंग का उनकी सफलता में बड़ा हिस्सा है। हालांकि, ऐसी चीजों का ठीक-ठीक आकलन करना मुश्किल है, फिर भी यह लगता है कि जिन लोगों ने भाजपा को समर्थन दिया, उनमें से बहुत सारे हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना के समर्थक नहीं हैं। उन्होंने मोदी को इसलिए वोट दिया, क्योंकि वे कांग्रेस पार्टी के भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद से आजिज आ गए थे और उन्होंने ऊर्जावान, आकर्षक और स्वावलंबी नरेंद्र मोदी में एक सार्थक विकल्प देखा।

नरेंद्र मोदी की इस आधुनिक ऊर्जावान और अच्छे प्रशासक वाली छवि को जनता ने पसंद किया। हो सकता है कि मोदी में सचमुच बदलाव आया हो, लेकिन क्या यह उनके नंबर दो नेता के बारे में भी सही है? चुनाव के दौरान चुनाव आयोग ने अमित शाह की इसलिए भर्त्सना की थी कि उन्होंने हिंदुओं से वोट के जरिये बदला लेने का बयान दिया था। और अब इन सांसदों के बयान यह बताते हैं कि उनका सरकार के घोषित उद्देश्यों में कोई विश्वास नहीं है, बल्कि अब भी वे भारत की उसी प्रतिक्रियावादी संकीर्ण छवि में विश्वास करते हैं, जो प्रधानमंत्री संभवत: पीछे छोड़ आए हैं। अमित शाह ने योगी आदित्यनाथ और साध्वी ज्योति निरंजना की साफ तौर पर आलोचना नहीं की। जब उनसे टिप्पणी के लिए कहा गया कि तब उन्होंने ऐसी गोलमोल बात कह दी कि हमारी पार्टी सामाजिक समरसता की समर्थक है।

यह खतरनाक संकेत है, क्योंकि उत्तर प्रदेश के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण में मुलायम सिंह यादव एक तरह उनकी मदद कर रहे हैं। दोनों ही पक्षों का ध्रुवीकरण में स्वार्थ है। जैसे-जैसे उत्तर प्रदेश के अगले विधानसभा चुनाव करीब आएंगे, तो मुलायम सिंह और आजम खान जैसे लोग मुसलमानों के असुरक्षा भाव को और बढ़ाएंगे, वहीं योगी आदित्यनाथ और साध्वी निरंजन ज्योति हिंदुओं में असुरक्षा की भावना फैलाएंगे। इस ध्रुवीकरण को असउद्दीन ओवैसी और उनकी मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन और भी ज्यादा बढ़ाएंगे। अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा दोहरा खेल खेल सकती है। एक तरफ प्रधानमंत्री सारे नौजवानों को नौकरियां देने और ग्रामीण घरों में 24 घंटे बिजली देने की बात करेंगे, दूसरी ओर जमीन पर कार्यकर्ता हिंदु गौरव के मुद्दे को हवा देंगे।

अमित शाह के समर्थक उन्हें सीबीआई की क्लीन चिट का बड़ा प्रचार कर रहे हैं। सीबीआई की छवि वैसे भी सत्ता के सामने झुकने की है। लेकिन यह क्लीन चिट एक बुनियादी सवाल उठाती है कि क्या संविधान के खिलाफ जाने वाले बयानों से संबंध या उनका समर्थन देश की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष पद से मेल खाता है। बतौर गुजरात के गृहमंत्री उनके कार्यकाल, उत्तर प्रदेश में आम चुनाव के दौरान प्रचार के प्रबंधन के तरीके और पार्टी अध्यक्ष की तरह आचरण को देखा जाए, तो अब तक अमित शाह का करियर यह बताता है कि उनके लिए साधन से ज्यादा महत्वपूर्ण साध्य है। इसीलिए मीडिया का एक बड़ा हिस्सा उन्हें जिस तरह के सम्मान और प्रशंसा से नवाज रहा है, वह चिंताजनक है।
      (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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