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शांति ऐसी कि नोबेल भी शरमा जाए

अर्थशास्त्र में डिमांड और सप्लाई का नियम चलता है, यानी जिस चीज की डिमांड ज्यादा होगी और सप्लाई कम होगी, उसकी कीमत बढ़ जाएगी। नोबेल पुरस्कार के साथ भी यही बात है। उसे चाहने वाले बहुत हैं, लेकिन वह...

शांति ऐसी कि नोबेल भी शरमा जाए
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 15 Oct 2014 09:29 PM
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अर्थशास्त्र में डिमांड और सप्लाई का नियम चलता है, यानी जिस चीज की डिमांड ज्यादा होगी और सप्लाई कम होगी, उसकी कीमत बढ़ जाएगी। नोबेल पुरस्कार के साथ भी यही बात है। उसे चाहने वाले बहुत हैं, लेकिन वह गिने-चुने लोगों को ही मिलता है। चाहने वाले बढ़ते ही जा रहे हैं, लेकिन सप्लाई उतनी की उतनी ही है। भारत में ही नोबेल के तलबगार बहुत सारे हैं, जो क्रिकेट के फील्डरों की तरह हाथ उठाए खड़े हैं कि न जाने कब गेंद आ गिरे। अब यह तो नाइंसाफी हुई कि कैच एक ही फील्डर के हाथ लगे। सवा सौ करोड़ न सही, पर हजार-पांच सौ नोबेल तो दिए ही जा सकते हैं। पैसे की दिक्कत हो तो वैसे बोलो, इंतजाम किया जा सकता है।

मसलन, कुछ ऐसे नामों पर गौर करें, जिन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिलना चाहिए। पहला नाम तो हमारे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का है। क्या शांति फैलाने में उनके योगदान पर किसी को एतराज हो सकता है? उनके राज में इतनी शांति  हो गई थी कि सारा देश शोले  फिल्म ए के हंगल की तरह बोल उठा- इतनी चुप्पी क्यों है भाई? लोग उस दौर में अशांति के लिए व्याकुल होने लगे थे। दूसरा नाम मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का है। उनके राज में सिर्फ एक आदमी बोलता है, बाकी सब शांत हैं। अब तो हंगल भी नहीं बोल रहे। फिर देश में ऐसे तमाम चरित्रवान नेता हैं, जो जहां से गुजरते हैं, दूर-दूर तक सन्नाटा छा जाता है, जैसे गब्बर के आने से गांवों में हो जाता था। सिर्फ  उनकी गाड़ी के सायरन की ही आवाज सुनाई देती है, बच्चों, बूढ़े, जवान, विशेषकर महिलाएं घरों में दुबक जाती हैं।

और क्या हमारे उत्तर प्रदेश के लाखों पुलिसवाले इसके हकदार नहीं, जो शांति की साक्षात प्रतिमाएं हैं। उनके सामने बड़ा से बड़ा अपराध हो जाए, वे आंख उठाकर नहीं देखते। अब ऐसे कितने उदाहरण गिनवाएं? यानी भारत में मंत्री से लेकर संतरी तक नोबेल पुरस्कार का हकदार है, और आप हमें एक में टरका रहे हो? यह अब नहीं चलेगा। हर फील्डर को कैच मिलना चाहिए। हमारी शोर मचाने की क्षमता को मत चुनौती दो। शांति से हम सबका हक हमें दे दो।

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