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कैसे सुधरेगी टीम इंडिया

भारतीय क्रिकेट टीम के प्रबंधन में छोटे-मोटे बदलाव करने से कुछ हासिल नहीं होगा, इसमें बड़े बदलाव करने होंगे। जब मैंने इसी अखबार में लॉर्डस-विजय पर भारतीय टीम की रणनीति और उसकी खूबी को दिलचस्प...

कैसे सुधरेगी टीम इंडिया
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 20 Aug 2014 10:18 PM
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भारतीय क्रिकेट टीम के प्रबंधन में छोटे-मोटे बदलाव करने से कुछ हासिल नहीं होगा, इसमें बड़े बदलाव करने होंगे।


जब मैंने इसी अखबार में लॉर्डस-विजय पर भारतीय टीम की रणनीति और उसकी खूबी को दिलचस्प तरीके से रखा था, तब यह अंदाजा एकदम नहीं था कि टीम अगले तीनों टेस्ट मुकाबलों में औंधे मुंह गिरेगी। टेस्ट मैचों में ऐसी शर्मनाक हार, वह भी लगातार, बहुत कम देखी जाती है, क्योंकि यह मानकर चला जाता है कि टेस्ट खेलने वाली कोई भी टीम या तो मैदान पर पांच दिनों तक टिक सकती है या वह वापसी कर सकती है। लेकिन भारतीय टीम इन दोनों में से एक भी नहीं कर पाई। कई बार तो ऐसा लगा कि खिलाड़ी ड्रेसिंग रूम में ही आउट हो चुके हैं और मैदान पर बस औपचारिकता निभाने उतरे हैं। उम्मीद और युवा जोश से भरी यह टीम अचानक ही बेबस नजर आई तथा आत्मविश्वास खो बैठी। फिर इसके बल्लेबाज मैदान पर पत्ताें की तरह बिखरते चले गए। आखिर क्यों?

हमारे कुछ जानकार मित्र इसके पीछे एंडरसन-जडेजा विवाद को देख सकते हैं। लेकिन मैं उनसे पूरी तरह सहमत नहीं हूं। यह एक कारण हो सकता है, लेकिन यही एक कारण हो, यह नहीं हो सकता। बड़ा कारण तो यह  है कि इंग्लैंड की टीम ने हमारी कमजोरियों पर प्रहार किया और बार-बार किया। हमारी कमजोरियां वही पुरानी हैं कि हम उछाल वाली पिचों पर बाहर जाती गेंदों के साथ छेड़खानी कर बैठते हैं, तेज शॉर्टपिच गेंदों को रक्षात्मक तरीके से खेल नहीं पाते, पिच को भांपकर बल्लेबाजी और गेंदबाजी नहीं करते हैं तथा क्षेत्ररक्षण तो खराब है ही। लॉर्डस में हमने पिच को भांपकर गेंदबाजी और बल्लेबाजी की, हमें बड़ी सफलता मिली। बहरहाल, साउथम्पटन और मैनचेस्टर टेस्ट हारने के बाद ही भारतीय टीम में बड़े बदलाव किए जाने चाहिए थे। लेकिन ऐसा लगता है कि चयनकर्ता भी ओवल की हार का इंतजार कर रहे थे। ओवल में भारतीय टीम तीसरे ही दिन सौ के अंदर सिमट गई और इसके बाद आनन-फानन में बदलाव के कदम उठाए गए। बीसीसीआई ने इंग्लैंड में एकदिनी सीरीज के लिए रवि शास्त्री को टीम का डायरेक्टर बनाया है। बॉलिग कोच जो डावेस और फील्डिंग कोच ट्रेवर पेन्नी को आराम दिया गया और उनकी जगह संजय बांगड़ और भरत अरुण को सहायक कोच और आर श्रीधर को फील्डिंग कोच बनाया गया है। मेरी समझ से ये सारे फौरी कदम हैं और टेस्ट मैचों की हार पर हुई चिंतन-बैठक भी तात्कालिक समीक्षा  है। भारतीय टीम जब इंग्लैंड से वनडे सीरीज खेलकर आएगी, तब इस करारी हार पर गहन समीक्षा होनी चाहिए।

ऐसा किया जाना टीम इंडिया के लिए महत्वपूर्ण है। इसके दो कारण हैं। पहला, टेस्ट सीरीज के बाद अक्सर वनडे सीरीज होती है और ऐसे में, टेस्ट गंवाने और वनडे में अच्छे या मिश्रित नतीजे आने के बाद टेस्ट की हार पर चर्चा नहीं की जाती है। दूसरा, भारत को इस सीरीज के बाद घर में वेस्ट इंडीज से खेलना है, फिर ऑस्ट्रेलिया दौरे पर जाना है और उसके बाद विश्व कप का आयोजन है। साफ है कि आने वाले दौरे और मुकाबले बेहद महत्वपूर्ण हैं। इसलिए भारतीय टीम के मौजूदा प्रदर्शन पर एक व्यापक समीक्षा बैठक की जानी चाहिए। इस हार को इस आधार पर देखा जाना चाहिए कि क्यों विदेशी पिचों पर हम हारते हैं (इससे पहले इंग्लैंड में 4-0 से हारे थे और फिर ऑस्ट्रेलिया में भी हार मिली थी)।

इस समीक्षा बैठक के लिए मेरे पास कुछ सुझाव हैं। पहला, हम किसी भी दौरे के लिए एक संतुलित टीम चुनें। खास तौर पर टेस्ट टीम में अनुभव को वरीयता मिले। अभी की भारतीय टेस्ट टीम को देखें, तो इसमें अनुभव का अकाल है। इसलिए खिलाड़ी एक ही तरह की गलती करते गए। व्यक्तिगत पसंद-नापसंद और क्षेत्रीय संतुलन की जगह घरेलू प्रदर्शन को तरजीह दी जाए। यह सवाल उठता रहा है कि टीम में ‘यह’ क्यों है और ‘वह’ क्यों नहीं? उमेश यादव की जगह होनी चाहिए थी और स्टुअर्ट बिन्नी को टेस्ट टीम में नहीं होना चाहिए था। पश्चिम बंगाल के मनोज तिवारी अधिक उम्मीद बंधाते हैं। दूसरा, महेंद्र सिंह धौनी एक समझदार और आक्रामक कप्तान हैं, किंतु इंग्लैंड दौरे पर वह मानसिक और शारीरिक रूप से थके नजर आए हैं, इसलिए उन्हें आराम दिया जाना चाहिए। इसके पीछे मेरा मकसद नेक है। दरअसल, टीम इंडिया को महेंद्र सिंह धौनी की जरूरत विश्व कप में है। इससे पहले एक हारे हुए खिलाड़ी के तौर पर उनका मनोबल तोड़ना और उन्हें थकाना ठीक नहीं होगा। तीसरा, टीम इंडिया को अपना क्षेत्ररक्षण सुधारने के लिए अधिक से अधिक नेट-प्रैक्टिस की जरूरत है, न कि फील्डिंग कोच की। इसलिए मैचों के आयोजन के बीच नेट-प्रैक्टिस का समय निकाला जाए। अगर यह मुमकिन नहीं है, तो टीम इंडिया की बेंच स्ट्रेंथ होनी चाहिए, ताकि कुछ खिलाड़ी आराम कर सकें और नेट-प्रैक्टिस के जरिये अपना प्रदर्शन सुधार सकें। चौथा, रही बात बॉलिंग कोच की, तो वनडे के लिए नियुक्त संजय बांगड़ और भरत अरुण अधिक उम्मीद नहीं बंधाते हैं। उनकी जगह मदनलाल और जवागल श्रीनाथ बेहतर हो सकते थे। जिम्मेदारी उन्हें दी जानी चाहिए, जो अधिक योग्य हैं और जिनका अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का तजुर्बा काफी लंबा है।

मेरा पांचवां सुझाव होगा कि कोच डंकन फ्लेचर को अब अलविदा कहना चाहिए। तो फिर उनकी जगह किसे लिया जाए? यहां मैं कहना चाहूंगा कि मुद्दा देशी या विदेशी कोच का नहीं है, बल्कि मुद्दा यह है कि तजुर्बेकार खिलाड़ी को यह जिम्मेदारी दी जाए। भारत के पास अंतरराष्ट्रीय स्तर के तजुर्बेकार क्रिकेटरों की कमी नहीं और बाहर भी ऐसे क्रिकेटर भरे पड़े हैं। छठा और अंतिम सुझाव, अलग-अलग फॉर्मेट का राग अलापना हम बंद करें, क्योंकि टेस्ट और वनडे टीम के लिए खिलाड़ियों के चयन के दौरान अक्सर पांच-छह खिलाड़ी बदल ही जाते हैं। इसकी जगह यह कोशिश होनी चाहिए कि हम विशेषज्ञ खिलाड़ी बनाएं और उन्हें टीम में जगह दें। जैसे कोई टेस्ट का विशेषज्ञ हो, तो कोई वनडे का, कोई खालिस तेज गेंदबाज हो, तो कोई विशुद्ध बल्लेबाज, उसी में से कोई स्लीप का चपल क्षेत्ररक्षक हो, तो कोई मैदान में तेज भागकर गेंद पकड़ता हो। इन सबके बीच एक-दो ऑलराउंडर को ‘पैच’ करना होगा।
खेल में हार-जीत तो लगी रहती है और क्रिकेट को तो अनिश्चितताओं का खेल कहा ही जाता है। ऐसे में, जहां तक आत्मविश्वास का सवाल है, तो वह जीतने से ही आएगा और जीत मैदान पर अच्छे प्रदर्शन से मिलती है। आगे अच्छा खेलने के लिए टीम इंडिया को यह वनडे सीरीज जीतनी होगी।
      (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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