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पाक के एटम बम से कितना डरें!

पोली देवी को जानते हैं आप? यह वही बदनसीब महिला है, जिसकी जिंदगी को गए बुधवार जम्मू में पाकिस्तान की ओर से अचानक हुई गोलाबारी लील गई। उसका परिवार इस समय गम और गुस्से के सैलाब में डूब-उतरा रहा होगा।...

पाक के एटम बम से कितना डरें!
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 18 Jul 2015 08:41 PM
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पोली देवी को जानते हैं आप? यह वही बदनसीब महिला है, जिसकी जिंदगी को गए बुधवार जम्मू में पाकिस्तान की ओर से अचानक हुई गोलाबारी लील गई। उसका परिवार इस समय गम और गुस्से के सैलाब में डूब-उतरा रहा होगा। प्रतिशोध लेकर उनके जख्मों पर राहत का मरहम लगाने वाला कोई नहीं। क्या उसे ऐसी मौत मिलनी चाहिए थी? यकीनन नहीं। कायदे से उसे सवा सौ करोड़ की आबादी वाले देश के जन बल, सत्ता बल, सैन्य बल और नैतिक बल का सहारा हासिल होना चाहिए था। ऐसा नहीं हुआ। ऐसा कभी नहीं होता। यह हश्र अकेले उसका नहीं हुआ। हजारों लोग इसी तरह एक अदना पड़ोसी के दुस्साहस के शिकार होते रहे हैं। उनके परिजनों को पर्याप्त मुआवजा नहीं मिलता। उनकी कब्रों पर चिराग नहीं जलते। उनकी राख पर समाधियां नहीं बनाई जातीं। वे बेनाम जीवन और अनाम मौत के लिए अभिशप्त हैं।

ऐसा नहीं है कि भारतीय सत्ता प्रतिष्ठान ने उनकी रक्षा की कोशिश नहीं की। कारगिल सहित चार युद्ध, शिमला-लाहौर घोषणा-पत्र और दर्जनों शिखर वार्ताएं इसका उदाहरण हैं। भारत के हर हुक्मरां ने समयानुसार नरमी-गरमी दिखाई, पर सब बेकार। इसीलिए गत 10 जुलाई को रूस के उफा शहर में नवाज शरीफ के साथ हंसते हुए फोटो खिंचा रहे नरेंद्र मोदी को देखकर मन में टीस उठी। काश, इस बार बात बन जाए। अंजाम सामने है। इसी रूस के येकातेरिनबर्ग में 16 जून, 2009 को मैंने अलग नजारा देखा था। उस वक्त मनमोहन सिंह और आसिफ अली जरदारी 'फोटो ऑप्स' के लिए मंच पर पधारे थे। आदत के विपरीत मनमोहन सिंह ने उस मौके का उपयोग जरदारी को सार्वजनिक तौर पर चेताने के लिए किया।

उन्होंने कहा- 'मैं आपसे मिलकर खुश हूं, पर मुझे जनादेश इसलिए मिला है, ताकि मैं आपको बता सकूं कि पाकिस्तानी सरजमीं का उपयोग आतंकी निर्यात के लिए न हो।' जरदारी और उनके अलमबरदार सन्न। 'फोटो ऑप्स' में महज औपचारिक मुस्कराहटों का इस्तेमाल होता है, चेतावनियों का नहीं। अफसोस! उनकी यह जुगत काम नहीं आई। आतंक का सिलसिला पहले की तरह ही जारी रहा। यह 26/11 को हुए मुंबई हमले के बाद का दौर था। कहते हैं, उन दिनों भारत ने विश्व बिरादरी को जता दिया था कि हम भविष्य में ऐसे किसी हमले को बर्दाश्त नहीं करेंगे। यह ठीक है कि पाकिस्तान में पले-पुसे खूंरेजों ने उसके बाद ऐसा दुस्साहस नहीं किया, पर हमारी सीमाओं पर तनाव के अलाव सुलगते रहे। बुधवार को दिखाया गया दुस्साहस इसकी ताजा-तरीन कड़ी है।

पिछले आम चुनाव में नरेंद्र मोदी ने देश की जनता को भरोसा दिलाया था कि वह आतंकवाद से जमकर निपटेंगे। सत्तारोहण के मौके पर पड़ोसियों को बुलाकर उन्होंने संदेश देने की कोशिश की कि अमन का रास्ता प्यार-मोहब्बत से तय करना चाहते हैं। नवाज शरीफ भी ऐसा ही जता रहे थे। हुआ क्या? वही ढाक, वही तीन पात। भारत और पाक के प्रधानमंत्री बारी-बारी से ऐसा करते रहे हैं। आंख-मिचौली का यह सिलसिला कब तक चलेगा?

दोनों तरफ कुछ भले लोग हैं। उन्होंने 'अमन की आशा' पाल रखी है। वे सरहदों पर मोमबत्तियां जलाते हैं, तकरीरें पढ़ते हैं और शांति के गीत गाते हैं। दोनों तरफ ऐसे भी लोग हैं, जिनके दिल नफरत से सुलगते रहते हैं। भारत के हिस्से में रहने वाले ऐसे लोग जंग के जरिए 'अखंड भारत' का निर्माण करना चाहते हैं। पाक में रहने वाले उनके बिरादरों का मानना है कि एक दिन उनकी फौजें हिन्दुस्तान, इजरायल और अमेरिका को औकात में ला देंगी। यकीन न हो, तो यू-ट्यूब पर आधा घंटा बिताइए। आप इतिहास की तोड़ी-मरोड़ी व्याख्याओं से दंग रह जाएंगे। इतना झूठ, इतना पाखंड, इतना बड़बोलापन! यह दुखद है कि ऐसे मदांध पाकिस्तान में भारत के मुकाबले कई गुना ज्यादा हैं और हमेशा उन्हीं की चलती है।

दुर्भाग्य! नवाज शरीफ जैसे नेता दोनों धड़ों में संतुलन बैठाते रहते हैं। इसीलिए यह शख्स जब सत्ता में आता है, तो दोस्ती के राग अलापता है, पर अंजाम हर बार पहले से अधिक बुरा होता है। एक उदाहरण। अटल बिहारी वाजपेयी नवाज शरीफ की कूटनीतिक सहमति के बाद लाहौर पहुंचे थे। उनकी बस ने जब वाघा सीमा पार की, तो लगा था कि दशकों के फासले सिमट आए हैं। लाहौर घोषणा-पत्र नेक उम्मीदों का दस्तावेज था। कुछ ही महीनों में कारगिल ने उस पर पानी फेर दिया।

सवाल उठते हैं, क्या हम हर बार शरीफ के शराफत भरे झांसे के शिकार बन जाते हैं? या, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मासूम और कमजोर हैं? वह चाहते कुछ हैं, उन्हें करना कुछ और पड़ता है? हकीकत जो हो, पर भारत और भारतीयों को समझ लेना चाहिए कि पाकिस्तान से दोस्ती आसान नहीं है। यही वजह है कि जिन जनरल मुशर्रफ ने कारगिल रचा था, उन्होंने बाद में बुझे मन से कहा कि दोनों तरफ ऐसी इंटेलीजेंस एजेंसियां और सैन्य प्रतिष्ठान हैं, जो शांति नहीं चाहते। मैंने तत्कालीन विदेश मंत्री सलमान  खुर्शीद से पूछा था कि जनरल साहब ये क्या फरमा रहे हैं? खुर्शीद का जवाब था कि रिटायर होने के बाद तानाशाह अक्सर ऐसी बातें करते हैं। सवाल पूछने से पहले ही मुझे इल्म था कि सटीक जवाब नहीं मिलने वाला। कूटनीति की दुनिया में दो और दो हमेशा चार नहीं होते। वहां एक और एक ग्यारह का समीकरण भी बनाना पड़ता है। भारत और पकिस्तान के रिश्तों को इन्हीं उलटबांसियों के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।

यहां यह भी गौरतलब है कि दिल्ली में नई सरकार आने के बाद से पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान में बेचैनी है। बहुत दिनों बाद हिन्दुस्तान में एक बहुमत संपन्न प्रधानमंत्री हैं और भाजपा की सोच के साथ नरेंद्र मोदी के इरादे स्पष्ट हैं। उनके सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की 'ऑपरेशनल' काबिलियत जगजाहिर है। इसीलिए वहां के ताकतवर लोग रह-रहकर धमकी दोहराते हैं कि हमने हाथों में चूडि़यां नहीं पहन रखीं। हमारे एटम बम भी सिर्फ संजोकर रखने के लिए नहीं बनाए गए हैं। आप कुछ अफसोस के साथ याद कर सकते हैं कि आधुनिक पाकिस्तान के निर्माताओं में से एक जुल्फिकार अली भुट्टो ने कभी कहा था कि हम एक हजार साल तक हिन्दुस्तान से लड़ेंगे। पाकिस्तान की यही युद्ध ग्रंथि उसे शांति के रास्ते पर नहीं चलने देती।

सवाल उठता है कि ऐसे में भारत क्या करे? पाकिस्तान चार बार हम पर आक्रमण कर चुका है। उसके द्वारा छेड़े गए छाया युद्ध में हमारे हजारों जवान शहीद हो चुके और तमाम बेगुनाह मारे जा चुके हैं। भारत की प्रगति के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा आतंकवाद है। हमें इससे दृढ़ता से निपटना होगा। हमें इस भ्रम से भी पार पाना होगा कि हमारा पड़ोसी एटमी ताकत है और उसके साथ जंग नहीं लड़ी जा सकती। यह सिद्धांत महज एक अर्द्धसत्य है। कारगिल में हमने उनकी सेनाओं के रुख वापस मोड़ दिए थे। वह अपने आप में भरी-पूरी लड़ाई थी। उस समय भी तो पाकिस्तान के पास एटम बम थे। कहां गए थे वे बम और वह मर्दानगी, जिनका जनरल साहेबान हवाला दिया करते हैं? मतलब साफ है। हर टकराव का अंजाम सिर्फ एटमी जंग होना अनिवार्य नहीं है। हमें हिम्मत संजोनी होगी और उचित अवसर पर सही कार्रवाई का फैसला करना होगा। 
@shekharkahin
shashi.shekhar@livehindustan.com

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