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कुछ रंग सुबह के, कुछ रंग सांझ के

इस दुनिया में जो कुछ भी स्थूल है, वह स्वाभाविक रूप से प्रकाश को परावर्तित करता है। आप जिस चीज को देख रहे हैं, यह उसका रंग नहीं है। आप महज परावर्तित प्रकाश के रंग को देख रहे हैं। हम कहते हैं कि घास...

कुछ रंग सुबह के, कुछ रंग सांझ के
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 05 Mar 2015 11:22 PM
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इस दुनिया में जो कुछ भी स्थूल है, वह स्वाभाविक रूप से प्रकाश को परावर्तित करता है। आप जिस चीज को देख रहे हैं, यह उसका रंग नहीं है। आप महज परावर्तित प्रकाश के रंग को देख रहे हैं। हम कहते हैं कि घास हरी है, लेकिन घास हरी नहीं है। यह हरे रंग के प्रकाश को लौटा रही है, परावर्तित कर रही है, इसलिए हमें हरी नजर आती है। आकाश नीला दिखता है। असल में, आकाश नीला नहीं है। उसके नीले होने की वजह बिल्कुल अलग है। नीले रंग का अपवर्तन गुण बाकी रंगों से ज्यादा प्रबल है। इसी वजह से आकाश नीला है।

शरीर के भीतर मौजूद चक्र किसी न किसी रंग से संबंधित हैं। रंगों की भूमिका इस संदर्भ में है कि जिस रंग को आप परावर्तित करते हैं, वह अपने आप ही आपके आभामंडल से जुड़ जाता है। जो लोग साधना के मार्ग पर हैं, वे कुछ भी नहीं पहनना चाहते, क्योंकि वे खुद से किसी भी नई चीज को नहीं जोड़ना चाहते। लेकिन सामाजिक परेशानी से बचने के लिए वे लंगोट पहन लेते हैं।

अलग-अलग तरह की आध्यात्मिक क्रिया-प्रक्रियाओं के लिए हम अलग-अलग तरह के रंगों का इस्तेमाल करते हैं। जो लोग आध्यात्मिक मार्ग पर चलना शुरू करते हैं, जिन्होंने साधना की अभी शुरुआत की है, जो अब भी जीवन के तमाम पहलुओं में उलझे हैं, वे सफेद पहनना पसंद करते हैं। जो लोग एक ऐसी तीव्र साधना में लगे हैं, जिसका संबंध आज्ञा-चक्र से है, वे गेरुआ रंग पहनते हैं, क्योंकि आज्ञा चक्र का रंग गेरुआ है। उनका मकसद ज्ञान और बोध के उस पहलू को उजागर करना है, जिसे तीसरी आंख कहते हैं। गेरुआ, केसरिया या नारंगी रंग इस बात का प्रतीक है कि आपके जीवन में एक नया प्रकाश आ गया है। सुबह-सुबह जब सूरज निकलता है, तो उसकी किरणों का रंग केसरिया होता है। नारंगी रंग फल के पकने या परिपक्व होने का भी सूचक है। अगर कोई इंसान परिपक्वता और समझदारी के एक खास स्तर तक पहुंच गया है, तो उसका मतलब है कि उसका रंग नारंगी हो गया। जिसने नई दृष्टि विकसित कर ली, उसके लिए भी और जो विकसित करना चाहता है, उसके लिए भी नारंगी रंग पहनना अच्छा है। साथ ही, आप यह रंग ये बताने के लिए पहनते हैं कि आप संन्यास के मार्ग पर हैं। ऐसे में, लोग आपसे संयमित बर्ताव और बातें करते हैं और आपको ऐसी चीजें पेश नहीं करते, जो आप छोड़ चुके हैं। तो लोग इस मार्ग पर कायम रहने में एक तरह से आपकी मदद करते हैं।

किसी संन्यासी के पहनने के लिए दूसरा सबसे अच्छा रंग काला हो सकता है। आम तौर पर हमने काले रंग को बहुत से अशुभ पहलुओं के साथ जोड़ दिया है, इसलिए लोग काले रंग से बचने की कोशिश करते हैं, लेकिन ईसाई भिक्षुकों में हमेशा काला या काले जैसा रंग पहनने की परंपरा है। अगर वे बाहर भूरा रंग पहनते हैं, तो भी अंदर के कपड़ों का रंग हमेशा काला होता है। ईसाई नन और संन्यासियों के सिर पर बांधने का कपड़ा काला होता है। चूंकि उनके यहां बहुत से संप्रदाय हैं, इसलिए अपनी अलग पहचान बनाने के मकसद से वे भूरा या फिर कोई दूसरा रंग पहन रहे हैं। नहीं तो मूल रूप से कैथोलिक-परंपरा में रंगों के लिए यह नियम है कि सिर के लिए काला, दिल के लिए सफेद और बाकी शरीर के लिए गहरे भूरे रंग की पोशाक होनी चाहिए। दरअसल, भूरा रंग ऐसा है, जो आपको उलझाता नहीं है।

बौद्ध भिक्षु पहले पीले कपड़े पहनते थे, क्योंकि शुरुआती साधना के लिए गौतम ने बौद्ध भिक्षुओं को एक बुनियादी प्रक्रिया बताई थी। वह जागरूकता की एक लहर चलाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने लोगों से पीले वस्त्र पहनने को कहा, क्योंकि पीला रंग मूलाधार-चक्र का रंग है। शरीर में सबसे बुनियादी चक्र मूलाधार ही है। दरअसल, वह लोगों को स्थिर बनाना चाहते थे। जब आप कुछ जन्मों तक चलाने के लिए एक आध्यात्मिक मार्ग तैयार कर रहे होते हैं, तो इस तरह की प्रक्रिया सिखाई जाती है। बौद्ध जीवन-शैली में यह परंपरा अब भी जारी है। लेकिन गौतम बुद्ध के चले जाने के बाद भिक्षुक अपनी खास पहचान को बरकरार नहीं रख पाए और उन्होंने थोड़े गहरे मरून रंग अपना लिया। बाद में, जब लोगों ने अर्हंत की उपाधि हासिल कर ली, तब उन्होंने भारतीय संन्यासियों की तरह गेरुए रंग के कपड़े पहनने शुरू कर दिए।

एक इंसान के वैराग्य की स्थिति में पहुंचने का मतलब है कि वह सारे रंगों से परे चला गया है। राग का अर्थ है रंग। रंग से जो परे है, वह रंगहीन नहीं, बल्कि वह पारदर्शी है। वैराग्य का मतलब है कि आप न तो कुछ रखते हैं और न ही कुछ परावर्तित करते हैं, यानी आप पारदर्शी हो गए हैं। पारदर्शी होने का मतलब है कि आप उसी रंग के हो जाते हैं, जो रंग आपके चारों ओर है। आप जहां भी होते हैं, उसी का हिस्सा हो जाते हैं, लेकिन किसी भी चीज में फंसते नहीं हैं। लेकिन वह रंग एक पल के लिए भी आपसे चिपकता नहीं। आप हर रंग से अछूते रहते हैं। आपके भीतर कोई पहचान या पूर्वाग्रह नहीं होता।

अगर आप वैराग्य की अवस्था में हैं, तब ही आप जीवन के तमाम पहलुओं की खोज कर सकते हैं। अगर कोई भी रंग आप पर चढ़ गया, मान लीजिए कि लाल रंग आप पर चढ़ गया, तो हरे की ओर जाने में आपकी ओर से प्रतिरोध होगा। अगर आप पर हरा रंग चढ़ गया, तो आपको नीले की ओर जाने में परेशानी होगी। अगर कोई भी चीज आपके ऊपर चढ़ गई, तो फिर दूसरी चीज की ओर जाने में आप कतराएंगे, क्योंकि आपके भीतर एक पूर्वाग्रह पैदा हो गया है, जो आपको बताता है कि यह सही है, वह गलत है, यह ठीक है, वह ठीक नहीं है। इससे जीवन-प्रवाह धीमा पड़ जाता है। इसीलिए अध्यात्म में वैराग्य पर इतना जोर दिया जाता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

 

 

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