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दो विकेट जिन्होंने इतिहास बदल दिया

अंग्रेजी पत्रिका कारवां के एक ताजा अंक में एन श्रीनिवासन पर एक लेख छपा है, जो कि विश्व क्रिकेट के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति हैं। इसमें राहुल भाटिया ने एक ऐसी कहानी लिखी है, जो जितनी दिलचस्प है, उतनी ही...

दो विकेट जिन्होंने इतिहास बदल दिया
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 05 Sep 2014 09:46 PM
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अंग्रेजी पत्रिका कारवां के एक ताजा अंक में एन श्रीनिवासन पर एक लेख छपा है, जो कि विश्व क्रिकेट के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति हैं। इसमें राहुल भाटिया ने एक ऐसी कहानी लिखी है, जो जितनी दिलचस्प है, उतनी ही डरावनी भी। अक्लमंदी, चालाकी और निर्ममता के मेल से श्रीनिवासन ने पहले तमिलनाडु क्रिकेट एसोसिएशन पर नियंत्रण किया, उसके बाद भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और अंत में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कौंसिल पर भी कब्जा जमाया। उनकी असंदिग्ध प्रतिभा और महत्वाकांक्षा को छोड़ भी दिया जाए, तो श्रीनिवासन वहां कभी न पहुंच पाते, जहां वह आज हैं, अगर क्रिकेट में दो दूरदराज के इलाकों में चौबीस साल के फर्क से दो विकेट न गिरे होते। पहली घटना सन 1983 के वर्ल्ड कप फाइनल की है। भारत फाइनल में पहुंचा, यह हम सबकी उम्मीदों से बहुत परे था। पिछली दो प्रतियोगिताओं में हम शुरुआती दौर से ही नहीं निकल पाए थे। इस बार हम सेमीफाइनल में कपिल देव की एक असाधारण इनिंग्स की बदौलत पहुंच गए। उसके बाद किस्मत से हम एक बेहतर अंग्रेज टीम से जीत गए। ऐसा इसलिए हुआ कि क्यूरेटर ने एक धीमी विकेट बना दी थी, जिस पर मोहिंदर अमरनाथ और कीर्ति आजाद नायक साबित हुए। सारी भविष्यवाणियों को झुठलाते हुए भारत  साल 1983 विश्व कप के फाइनल में पहुंच गया। वहां भी यह माना जा रहा था कि वेस्टइंडीज हमें आसानी से हरा देगी।

भारत ने पहले बल्लेबाजी की और मार्शल, होल्डिंग जैसे गेंदबाजों के आगे टीम 183 रनों पर ऑल आउट हो गई। भारत की एकमात्र उम्मीद यह थी कि वेस्टइंडीज की बल्लेबाजी में किसी तरह शुरुआती दरारें डाल दी जाएं। पहला विकेट जो गिरा वह गॉर्डन ग्रीनीज का था, जो एकदिवसीय खेल के उस्ताद थे। उस दोपहर उन्होंने सोचा होगा कि वह अकेले इस मैच को जिता देंगे। भारत ने बहुत कम रन बनाए थे और पिच सपाट थी। भारतीय टीम में एक कपिल देव को छोड़कर बाकी सब औसत गेंदबाज थे। इनमें भी सबसे निरीह बलविंदर सिंह संधू थे। वह ज्यादा से ज्यादा 70 मील प्रति घंटा की रफ्तार से गेंद फेंक सकते थे, लेकिन वह दोनों ओर स्विंग करा सकते थे। इसलिए उन्हें कपिल देव के साथ नई गेंद फेंकने का मौका मिला। संधू के दूसरे ओवर में ग्रीनीज ने एक गेंद को यह सोचकर छोड़ दिया कि वह बाहर की ओर जा रही है। लेकिन वह गेंद देरी से अंदर स्विंग हुई और उनका ऑफ स्टंप ले उड़ी। शायद वेस्टइंडीज की टीम ग्रीनीज के आउट होने के बाद भी जीत जाती।

पिछले विश्व कप में लॉयड और रिचर्डस ने शतक बनाए थे और उनके पास कई और अच्छे बल्लेबाज थे। सन 1983 में क्रिकेट वह नहीं था, जो उसके बाद बन गया, यानी भारत का अकेला लोकप्रिय खेल। भारत ने सन 1975 में हॉकी विश्व कप जीत था और सन 1980 के ओलंपिक में हॉकी में स्वर्ण पदक भी पाया था। सन 1966 में रामनाथन कृष्णन और जयदीप मुखर्जी और सन 1974 में अमृतराज बंधु और जसजीत सिंह डेविस कप के फाइनल तक पहुंचे थे। विल्सन जोंस और माइकल फरेरा विश्व विलियर्ड चैंपियन बन चुके थे। हमारी पीढ़ी के खेलप्रेमियों के लिए अजितपाल सिंह और सुरजीत सिंह उतने ही बड़े नाम थे, जितने बेदी, चंद्रशेखर, गावस्कर और विश्वनाथ थे। सन 1983 की विश्व कप विजय ने सब कुछ बदल डाला। अब क्रिकेट का एकछत्र साम्राज्य हो गया। कुछ वक्त बाद सैटेलाइट टीवी भी भारत में आ गया।

अब भारतीय दर्शक अपने घर में बैठकर भारतीय टीम को लंदन, बारबाडोस, सिडनी और शारजाह में खेलते हुए देख सकते थे। विज्ञापनदाता खेलप्रेमियों के पीछे-पीछे आए, क्योंकि अब हमारे खिलाड़ी विश्व चैंपियन थे। यह इसलिए हुआ कि ग्रीनीज ने एक गेंद को परखने में चूक कर दी, और क्रिकेट भारत का सबसे महत्वपूर्ण खेल हो गया। सितंबर 2007 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कौंसिल ने दक्षिण अफ्रीका में पहला टी-20 विश्व कप आयोजित किया। सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली जैसे भारत के श्रेष्ठ खिलाड़ियों ने इसमें खेलने से मना कर दिया कि यह प्रतियोगिता सिर्फ मनोरंजन के लिए है। भारत ने एक नए विकेटकीपर, बल्लेबाज एम एस धोनी की कप्तानी में एक अनुभवहीन टीम को वहां भेजा। सन 2007 में ही भारत एकदिवसीय विश्व कप के शुरुआती दौर में ही बाहर हो गया था। इस वजह से भारत में क्रिकेट प्रेमियों ने कई विरोध प्रदर्शन किए। खिलाड़ियों के पुतले तक जलाए गए।

नकली शव यात्राएं निकाली गईं। यहां तक कि खिलाड़ियों के घर के बाहर पुलिस का पहरा बिठाना पड़ा। छह महीने बाद टी-20 विश्व कप जीत कर भारतीय खिलाड़ियों ने अपनी लोकप्रियता फिर हासिल कर ली। इस प्रतियोगिता का फाइनल पाकिस्तान के खिलाफ आखिरी ओवर में जीता गया। आखिरी ओवर हरियाणा के जोगिंदर शर्मा ने फेंका था, जिनकी गेंदबाजी बलविंदर संधू से भी ज्यादा अहिंसक थी। शर्मा के सामने मिसबाह उल हक थे, जो कि गॉर्डन ग्रीनीज जैसे बड़े खिलाड़ी तो नहीं थे, फिर भी बहुत कुशल व प्रतिभाशाली खिलाड़ी थे। 10 में से नौ मौकों पर वह अपनी टीम को जीत दिला देते, लेकिन शायद यह 10वां मौका था, जब उन्होंने एक स्कूप स्वीप गलत खेल दिया, शायद इसलिए कि गेंद उनकी अपेक्षा से भी ज्यादा धीमी आई और श्रीसंत ने कैच पकड़ लिया। पहले टी-20 विश्व कप में भारत की अनपेक्षित जीत की वजह से कुछ महीनों बाद इंडियन प्रीमियर लीग को जबर्दस्त प्रोत्साहन मिला।

मूलत: आईपीएल बदले की भावना से शुरू किया गया था, ताकि सुभाष चंद्रा और उनकी इंडियन क्रिकेट लीग को ठिकाने लगाया जा सके। बीसीसीआई को नहीं पता था कि क्रिकेट प्रेमी इस प्रतियोगिता का कैसे स्वागत करेंगे। लेकिन भारत अब विश्व कप विजेता था और क्रिकेट प्रेमी विश्व चैंपियनों को देखने चले आए। सन 1982 में छपी अपनी किताब में स्काइल्ड बैरी ने भविष्यवाणी की थी कि जल्दी ही भारत में क्रिकेट इतना लोकप्रिय हो जाएगा, जितना दुनिया के किसी देश में नहीं है। उन्होंने लिखा कि भले ही इस खेल का आविष्कार हजारों मील दूर हुआ है, भारत का क्रिकेट केंद्र बनना तय है। बैरी ने यह भविष्यवाणी भारत की आबादी और क्रिकेट प्रेमियों के उन्माद को देखकर की थी। लेकिन अगर भारत सन 1983 के विश्व कप के शुरुआती दौर से ही बाहर हो जाता, तो क्या ऐसा ही होता? क्या क्रिकेट तब भी सैटेलाइट टीवी पर सबसे लोकप्रिय खेल होता? और अगर पहले विश्व कप टी-20 फाइनल में मिसबाह का स्कूप सही लगता और चौका या छक्का हो जाता, तब क्या होता? तब धोनी की टीम को पाकिस्तान से हारने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ता।

अगर तब भारत विश्व चैंपियन न होता, तो आईपीएल में खेल प्रेमी और विज्ञापनदाता क्या उसी तरह दौड़कर आते? हो सकता था कि बीसीसीआई के पास इतना पैसा न होता और तब यह बोर्ड अन्य क्रिकेट खेलने वाले देशों पर अपनी हुकूमत न चला सकता। क्रिकेट का इतिहास अन्य किसी इतिहास की तरह ही संयोगों और अवसरों से तय होता है। अगर ग्रीनीज और मिसबाह ने सन 1983 और 2007 में वे गलतियां न की होतीं, तो शायद एन श्रीनिवासन अभी इंडिया सीमेंट्स के प्रबंध निदेशक ही होते।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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