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अनाज की बर्बादी

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में हजारों क्विंटल गेहूं खुले आसमान के नीचे बारिश में भीगकर सड़ गया। जब चारोंे ओर बदबू फैल गई, पशु-पक्षी सड़े अनाज को खाकर मरने लगे, तो प्रशासन की नींद खुली। जिलाधिकारी ने...

अनाज की बर्बादी
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 22 Aug 2014 09:28 PM
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मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में हजारों क्विंटल गेहूं खुले आसमान के नीचे बारिश में भीगकर सड़ गया। जब चारोंे ओर बदबू फैल गई, पशु-पक्षी सड़े अनाज को खाकर मरने लगे, तो प्रशासन की नींद खुली। जिलाधिकारी ने ठेकेदार के सिर आरोप मढ़ दिया, जबकि वह इसका ठीकरा प्रशासन पर फोड़ रहा था। एक ओर, जहां देश की विशाल आबादी दिन में एक बार के भोजन से ही संतोष कर लेती है, वहीं दूसरी ओर, हर साल देश में लाखों टन अन्न यूं ही खराब हो जाते हैं। ताज्जुब है कि व्यवस्था को अनाज सड़ाना मंजूर है, परंतु उसे निर्धनों में मुफ्त बांटना मंजूर नहीं। प्रशासन, एजेंसियां, ठेकेदार, सब एक-दूसरे पर दोषारोपण करके अपना-अपना पल्ला झाड़ लेते हैं और इस तरह सबके सब दोषी सिद्ध होने से बच जाते हैं।
जसवंत सिंह, नई दिल्ली
भ्रष्टाचार के खिलाफ
बीते दिनों यह समाचार पढ़ने को मिला था कि ‘केंद्र सरकार अब अपने सभी कर्मचारियों से हर साल उनकी संपत्ति का ब्योरा मांगेगी, ताकि आय से अधिक अजिर्त की जाने वाली संपत्ति पर लगाम लगाई जा सके।’ यह विचार बुरा नहीं है, बशर्ते कि आदेश मात्र फाइलों में दबकर न रह जाए। न केवल इस आदेश का ही सख्ती से पालन हो, बल्कि उल्लंघन करने वालों पर कठोर कार्रवाई हो, वरना आदेश तो न जाने कितने दिए जाते हैं। हर साल न जाने कितने ही भ्रष्टाचारियों के यहां छापे डाल-डालकर सीबीआई किसी के यहां से सोने की ईंटें, किसी के यहां से जेवरों का भंडार, तो किसी के यहां से नोटों की गड्डियां जब्त करती रही हो, पर उस अधिकारी या कर्मचारी के विरुद्ध अदालती या आवश्यक कार्रवाई के आदेश सरकार से प्राप्त नहीं होते। यह ठीक है कि नया आदेश भ्रष्टाचार व भ्रष्टाचारी पर लगाम लगाने की अचूक दवा है, मगर जरूरी यह है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और अन्य दबावों के चलते इसे बेअसर न होने दिया जाए।
ताराचंद ‘देव’ रैगर
श्रीनिवासपुरी, दिल्ली
सांसद जवाब दें
संसद सदस्य सचिन तेंदुलकर और रेखा के सदन में उपस्थित न होने को लेकर काफी कुछ कहा और लिखा जा रहा है। सवाल उठता है कि  इससे पहले अनेक नामित सांसदों का सदन में न आने का कीर्तिमान रहा है, उन पर किसी ने कुछ क्यों नहीं कहा? अगर उसी समय हो-हल्ला मचता, तो आज यह नौबत ही नहीं आती। एक बात और। जिन सांसदों का विचार है कि संसद से गैर-हाजिर रहना संसदीय व्यवस्था का अपमान है, वे क्या इसका जवाब दे सकते हैं कि बीते कुछ वर्षो में संसद में कामकाज का ठप होना और मर्यादा व शालीनता का बार-बार उल्लंघन किया जाना, क्या संसदीय व्यवस्था का अपमान नहीं है? एक प्रश्न यह भी है कि संसद में न आने के संबंध में कायदे-कानून क्या हैं, अगर हैं, तो सभापति मौन क्यों हैं? स्पष्ट है कि संसद की गरिमा और पवित्रता का खयाल रखना हम सबका कर्तव्य है। इसे एक मसले तक सीमित न किया जाए।
के के चौधरी
शिवाजी पार्क, शाहदरा, दिल्ली
वायरस का प्रकोप
अब ऐसे-ऐसे रोग पैदा हो रहे हैं, जिनकी जानकारी ही सिहरन पैदा करने के लिए काफी है। अब इबोला वायरस की संक्रामक बीमारी ने दुनिया की धड़कन तेज कर दी है। आज की स्थिति ऐसी है कि एक-दूसरे के यहां आए-जाए बिना जीवन कठिन है। ऐसे में, संक्रामक रोगों से आसानी से निदान कैसे मिल सकता है? हालात ऐसे हो गए हैं कि डॉक्टरों व वैज्ञानिकों द्वारा यह चेतावनी दिए जाने के बाद भी कि फलां रोग संक्रामक है और इससे बचाव ही एकमात्र उपाय है, लोग सावधानी नहीं बरतते और परिणाम यह होता है कि बीमारी महामारी का रूप धारण कर लेती है। इबोला को लेकर भारत को एहतियात बरतने की जरूरत है, क्योंकि यहां विदेश से काफी लोग आते हैं और यहां के कई काफी लोग विदेश भी जाते हैं।
इंद्र सिंह धिगान
किंग्जवे कैंप, दिल्ली

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