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सही दाम का पता

सही दाम का पता आजकल लगभग हर वस्तु पर एमआरपी, यानी अधिकतम खुदरा मूल्य छपा होता है। लेकिन विक्रेता उससे अधिक या कम मूल्य में ही ग्राहक को वह वस्तु उपलब्ध करा देता है। अगर आप पढ़े-लिखे नहीं हैं, तो...

सही दाम का पता
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 23 Jul 2014 10:18 PM
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सही दाम का पता
आजकल लगभग हर वस्तु पर एमआरपी, यानी अधिकतम खुदरा मूल्य छपा होता है। लेकिन विक्रेता उससे अधिक या कम मूल्य में ही ग्राहक को वह वस्तु उपलब्ध करा देता है। अगर आप पढ़े-लिखे नहीं हैं, तो अधिक मूल्य देना पड़ सकता है। इसी तरह, यह भी संभव है कि कम मूल्य में ही आपको वह सामान मिल जाए। कुछ दिनों पहले मैंने एक नामचीन कंपनी का लाइटर खरीदा। उस पर अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) 180 रुपये छपा हुआ था। विक्रेता ने साल भर की गारंटी के साथ मुङो 130 रुपये में दिया, यानी 50 रुपये कम में। मैं अब भी ठगा हुआ महसूस कर रहा हूं। उत्तराखंड में, जहां का मैं रहने वाला हूं, एमआरपी के रूप में दर्ज राशि ही ग्राहकों से वसूली जाती है। सवाल उठता है कि ज्यादा कीमत यानी एमआरपी लिखने का अधिकार निर्माता-कंपनी को कौन देता है? अच्छे-अच्छे ब्रांड के कपड़े और जूते एमआरपी से 30-40 प्रतिशत कम पर मिल जाते हैं। क्यों और कैसे? सरकार एमआरपी और वाजिब मूल्य में इतने भारी अंतर पर कोई पाबंदी क्यों नहीं लगाती है?
उमेश चंद्र पाण्डेय, द्वारका, नई दिल्ली

कमजोर मानसून
कमजोर मानसून के कारण देश में खाद्यान्न संकट पैदा हो सकता है। एक अनुमान के अनुसार, बारिश की देरी से इस बार खरीफ की फसलों की बुआई करीब 261 लाख हेक्टेयर घट गई है। यह कुल क्षेत्रफल का एक चौथाई है। ऐसा माना जा रहा है कि यदि बरसात कम हुई, तो इस बार फसलों के उत्पादन में करीब तीन करोड़ टन की कमी आ सकती है। यह खबर एक गंभीर संकट की ओर संकेत करती है। हमारे पास अनाज को सुरक्षित रखने के पर्याप्त भंडार नहीं हैं। सरकारी डिपो के माध्यम से गरीबों को सस्ती दर पर अनाज उपलब्ध कराने के लिए रखे गए बारह हजार क्विंटल गेहूं रख-रखाव की कमी के कारण सड़ गए। साफ है, एक तरफ तो बरसात की कमी के कारण फसलें चौपट हो रही हैं और उत्पादन के लक्ष्य को हासिल करने में दिक्कतें आ रही हैं, वहीं दूसरी ओर, अनाज की यह दुर्दशा है।
इंद्र सिंह धिगान, किंग्जवे कैंप, दिल्ली

गुस्ताख पाकिस्तान
‘पाकिस्तान ने फिर सीमा पर गोलीबारी की’, बीते दिनों यह खबर छपी। भारतीय सीमाओं का उल्लंघन करना पाकिस्तान की फौज का शौक-सा बन गया है। क्योंकि ऐसी घटनाएं निरंतर घटती रहती हैं। लेकिन क्या पाकिस्तानी सेना के इस उग्र रवैये को हमें सहजता से लेते रहना चाहिए? आखिर सब कुछ जानते हुए भी भारत सरकार पाकिस्तान के प्रति उदारता से पेश क्यों आती है? समझा जा सकता है कि शरीफ हुकूमत की नीयत में ही खोट है। ‘जियो और जीने दो’ की नीति पाकिस्तानी सत्ता को शायद भाती नहीं। अत: इस देश से सौहार्दपूर्ण संबंधों की उम्मीद कैसे की जा सकती है?  समय रहते भारत को अपने पड़ोसी से जुड़ी नीति पर पुनर्विचार करना होगा। वरना बिगड़ैल पाकिस्तान हमें नुकसान पहुंचाने से बाज नहीं आएगा।
कमलेश तुली, द्वारका, नई दिल्ली

दर्द में डूबा गजा
बीते दिनों गजा पट्टी से जैसी तस्वीरें आईं, उनसे आम इंसान का मन विचलित हो उठा। हर तरह का युद्ध इंसान के विनाश का मूल है। इससे फायदे कमाने वाले दरअसल इंसान की शक्ल में हैवान होते हैं। लेकिन हमास को निपटाने के नाम पर इजरायलियों ने जिस तरह बेगुनाह फलस्तीनियों पर कहर बरपाया, वह क्रूरता की सारी हदें पार कर चुका है। दुखद यह है कि पश्चिमी देश इस पूरे मसले पर चुप्पी साधे हुए हैं। खुद अमेरिका ने भी युद्ध रोकने की कोशिश नहीं की। संयुक्त राष्ट्र ने इजरायलियों से सिर्फ शांति-संयम बरतने की अपील की। पर तब तक यह साफ हो गया कि इजरायल को न तो अंतरराष्ट्रीय कानून की परवाह है, न विश्व शांति की।
सुबोध गौतम, गोपालपुर, दिल्ली

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