निराशा के पीछे
चार महीने पहले जोश के साथ आई मोदी सरकार का खुमार उपचुनावों में उतरता दिखाई दिया। लोग बिदक गए, क्योंकि न तो महंगाई कम होती दिखाई दी, न ही बुनियादी सुविधाओं या आम नागरिक की सुरक्षा सुनिश्चित हुई।...
चार महीने पहले जोश के साथ आई मोदी सरकार का खुमार उपचुनावों में उतरता दिखाई दिया। लोग बिदक गए, क्योंकि न तो महंगाई कम होती दिखाई दी, न ही बुनियादी सुविधाओं या आम नागरिक की सुरक्षा सुनिश्चित हुई। निस्संदेह, सरकार लोगों की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरी, लेकिन इस बात का एक दूसरा पहलू भी है। क्या हमने कभी सोचा कि हमारी लोकतांत्रिक सोच कितनी परिपक्व है? वास्तव में, हमें वही मिलता है, जिसके हम योग्य होते हैं। यदि वाशिंग पाउडर के विज्ञापन में दिखाया जाता है कि सारे दाग धुल जाएंगे या फेयरनेस क्रीम से दो महीने में त्वचा गोरी हो जाएगी, तो क्या यह सोचना हमारा फर्ज नहीं कि यह कैसे संभव है? यदि बताया गया कि महंगाई डायन मोदी को देखकर भाग रही है, तो हमने यह क्यों नहीं सोचा कि महंगाई के बुनियादी कारण क्या हैं और एक व्यक्ति उसे इतनी जल्दी कैसे दूर कर सकता है?
भावना प्रकाश, लखनऊ
sandarshika11@gmail.com
योजना की विफलता
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना का कड़वा सच यही है कि पिछली केंद्र सरकार ने साल 2013 में इसे लागू कर तो दिया, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका क्रियान्वयन न के बराबर हुआ। गरीब लोगों का हाल वही है, जो पहले था। फायदा हुआ है, तो सिर्फ राशन वितरकों का। आम जनता तक इस योजना का लाभ प्रत्यक्ष रूप से नहीं पहुंच पाया है। इसलिए सबको खाना देने के लिए यह जरूरी है कि इस योजना को सफल बनाया जाए और इसके लिए निस्संदेह केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर काम करने की आवश्यकता है। अन्यथा इस प्रकार की राष्ट्रीय योजनाओं से देश की गरीब जनता का किसी भी रूप में भला नहीं हो सकता।
अरविंद रावत, कृष्णा कॉलोनी, फरीदाबाद
आपदाओं का असर
कश्मीर के बारे में किसी ने क्या खूब कहा है कि धरती पर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है। किंतु धरती का यह स्वर्ग आज त्राहि-त्राहि कर रहा है। पिछले वर्ष हिमालयी क्षेत्र के ही उत्तराखंड में बाढ़ ने भयानक तबाही मचाई थी। और पीछे मुड़कर देखें, तो भारत के अधिकांश राज्य कुदरती खूबसूरती से भरे होने के बावजूद बाढ़, सूखा, भूकंप, सुनामी, भू-स्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं से त्रस्त हो चुके हैं। जाहिर है, इन आपदाओं के पीछे भौगोलिक स्थितियां और मानव जनित परिस्थितियां जिम्मेदार हैं। वहीं उत्तर प्रदेश, खासकर पश्चिमी यूपी आर्थिक रूप से संपन्न और कुदरती तौर पर अधिक सुरक्षित स्थान है। ऐसे में, यहां के बाशिंदों को जम्मू-कश्मीर के बाढ़ पीड़ितों की बढ़-चढ़कर सहायता करनी चाहिए। साथ ही कश्मीरियों को भी अलगाववादियों के बहकावे में न आकर दुख की घड़ी में उनका साथ दे रही सेना का पूरा सम्मान करना चाहिए।
सचिन कुमार कश्यप, शामली, यूपी
स्मारक पर सियासत
केंद्र सरकार चौधरी चरण सिंह के स्मारक का निर्माण कराएगी, परंतु किसी अन्य स्थान पर। शायद इसमें कुछ गलत भी नहीं है। लेकिन अजित सिंह और उनके समर्थक इस बात पर भी सहमत नहीं हैं। वैसे, उनकी सहमति और असहमति कोई मायने नहीं रखती, क्योंकि चौधरी चरण सिंह किसी जाति विशेष के नेता नहीं, बल्कि राष्ट्रीय नेता थे और उन्होंने किसानों की आवाज को बुलंद करने का काम किया। उनका स्मारक बनना ही चाहिए। लेकिन उनके नाम पर राजनीति करने वाले अजित सिंह जी ने उनके आदर्शों का अपने राजनीतिक जीवन में कितना पालन किया है, यह सभी जानते हैं। पिछले कई दशकों से अजित सिंह सत्ता पक्ष से ही जुड़े रहे, परंतु उन्हें कभी चौधरी साहब का स्मारक बनवाने का खयाल नहीं आया। जब 2014 लोकसभा चुनाव में दोनों पिता-पुत्र चुनाव बुरी तरह से हार गए, तो इस जिद पर अड़ गए हैं कि जिस बंगले में वह रह रहे थे, वह चौधरी चरण सिंह का स्मारक बने। यदि आज चौधरी चरण सिंह जी जीवित होते, तो इस तरह की ओछी राजनीति को नकार देते।
सतीश भारद्वाज
sat.nitu@gmail.com