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बाबा का ड्रामा

बाबा रामपाल की गिरफ्तारी के नाम पर चले नाटक ने कानून व व्यवस्था का मजाक बनाकर रख दिया। बार-बार समन भेजने के बावजूद हाजिर न होने पर कोर्ट ने उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया था। फिर भी हरियाणा...

बाबा का ड्रामा
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 21 Nov 2014 07:35 PM
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बाबा रामपाल की गिरफ्तारी के नाम पर चले नाटक ने कानून व व्यवस्था का मजाक बनाकर रख दिया। बार-बार समन भेजने के बावजूद हाजिर न होने पर कोर्ट ने उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया था। फिर भी हरियाणा सरकार ने उसे इस आश्रम में हजारों लोगों को जुटाने की इजाजत दे दी। करीब 30 हजार पुलिसकर्मियों की तैनाती के बाद भी जैसा हुड़दंग हिसार के उस इलाके में देखने को मिला,  उससे साफ लगता है कि हर मामले पर ज्यादा से ज्यादा तमाशा खड़ा करना हमारी सरकारों की नियति बन चुकी है। रामपाल प्रसंग ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि हमारे देश में बाबाओं को इधर कितनी ज्यादा तरजीह मिलने लगी है। राजनीतिक दलों का उनके सामने दंडवत होना और उन्हें संरक्षण देना एक बड़ी सामाजिक बीमारी का सबब बनता जा रहा है। यही वजह है कि रामपाल और उसके समर्थकों का हौसला इतना बुलंद हो गया कि वे न्याय-व्यवस्था के लिए चुनौती बनकर खड़े हो गए।
बबिता अग्रावत,  दिल्ली विश्वविद्यालय

समय न गंवाए कांग्रेस

कांग्रेस सारा समय मोदी को कोसने में ही खर्च कर रही है। नेहरूजी की 125वीं जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित नहीं किया। फिर भी कांग्रेस का यह सम्मेलन मोदी के नाम रहा,  क्योंकि कांग्रेसियों ने अधिकतर समय मोदी की आलोचना में गुजार दिए। अब कांग्रेस अध्यक्ष को मोदी की जीत में खोट नजर आ रहा है। एक बड़े कांग्रेसी ने कहा कि मोदी ने म्यांमार में जुटी 20 हजार की भीड़ में भारत से भाड़े के लोग शामिल कर रखे थे। लगता है कि कांग्रेस नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पचा नहीं पा रही है। बहरहाल,  चौतरफा हार से निराश कांग्रेसी अगर अब भी मोदी को कोसने की बजाय अपनी पार्टी को संभालने में जुटें,  तो शायद पार्टी के अच्छे दिन लौट आएंगे। आखिर सबसे पुराने राजनीतिक दल के खाते में बहुत कुछ अच्छा भी है।
सचिन कुमार कश्यप,  शामली,  उ.प्र.

शिक्षा में आई गिरावट

एक समय था,  जब माता-पिता अपने बच्चे को गुरुकुल या विद्यालय में प्रवेश दिलाने जाते थे। गुरु से बच्चे को जीवन-मूल्य का निवेदन करते थे। माता-पिता गुरु को अपने बच्चों का भविष्य सौंपकर निश्चिंत हो जाते थे। गुरु बालक को ‘घट’ और स्वयं को कुम्हार की भूमिका में आरोपित कर उसे पहले नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण कर जीवन-यापन के साधनों की शिक्षा देते थे। इससे समाज में नैतिकता,  सदाचार,  परोपकार,  प्रेम,  बंधुत्व,  सहिष्णुता आदि मूल्यों का समावेश सहज हो जाता था। फलत: समाज में शांति, आत्मीयता, व मानसिक सुख पुष्ट होते थे। किंतु आज शिक्षा पूर्णत: व्यावसायिक हो चुकी है,  जिसके कारण समाज,  परिवार व संबंधों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ाते समय केवल व्यावसायिक दृष्टिकोण अपनाते हैं, बच्चे को पंचतारा होटल की तर्ज पर बने स्कूलों में प्रवेश कराना ही उनका लक्ष्य होता है,  जिसके लिए वे अवैध धनोपार्जन का सहारा लेते हैं। गुरु-शिष्य परंपरा का टूटना समाज में फैली अव्यवस्था का कारण है।
नरेंद्र कुमार टोंक,  पल्लवपुरम,  मेरठ

संत या शैतान

संतों का नाम बदनाम करने में अब रामपाल का नाम भी जुड़ गया है। रामपाल के अलावा कई ऐसे संत रहे हैं, जिनका नाम विवादों में आया,  चाहे उसकी वजह कोई भी रही हो। संत सामाजिक ही नहीं,  बल्कि आर्थिक व राजनीतिक पक्ष से भी मजबूत रहे हैं। 60 घंटे की घेराबंदी और करीब 30 हजार जवानों की ताकत भिड़ाने के बाद सतलोक आश्रम से बाबा रामपाल गिरफ्तार कर लिए गए। आश्चर्य होता है कि 21वीं सदी में रहने वाले लोग भी ढोंगी बाबाओं के यहां अपनी समस्याओं का समाधान ढूंढ़ने जाते हैं। सरकार और न्यायालय को खुलेआम आंखें दिखाते ऐसे ढोंगी बाबा अपने तथाकथित समर्थकों के सहारे प्रशासन को चुनौती देते रहे हैं और श्रद्धा व भक्ति के नाम पर ये सिर्फ अपनी तिजोरियां भरते आए हैं।
विवेक मनचन्दा,  लखनऊ

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