आप की असलियत
लगभग दो साल पहले अरविंद केजरीवाल लोगों के बीच यह सार्थक विचार लेकर अवतरित हुए कि उन्होंने ‘आम आदमी’ के हक की लड़ाई के लिए पार्टी बनाई है। लोकपाल बिल के लिए लड़ाई आरंभ कर वह राजनीतिक...
लगभग दो साल पहले अरविंद केजरीवाल लोगों के बीच यह सार्थक विचार लेकर अवतरित हुए कि उन्होंने ‘आम आदमी’ के हक की लड़ाई के लिए पार्टी बनाई है। लोकपाल बिल के लिए लड़ाई आरंभ कर वह राजनीतिक लड़ाई में कूद पड़े। जिस स्वराज, पार्टी में आंतरिक लोकपाल का आदर्श उन्होंने रखा, वह अपने आप में विशिष्ट था। उन्होंने कहा था कि हमने अपने हर उम्मीदवार की जांच की है, वे सब ईमानदार हैं और उनका लक्ष्य सत्ता नहीं, सेवा है। लेकिन चुनाव के कुछ दिनों बाद ही पार्टी में अंतर्कलह मच गई और कुछ ने आम आदमी पार्टी को अलविदा कह दिया। खैर, यह सब तो पार्टी के निर्माण के दौरान आम बात है। लेकिन वर्तमान घटनाक्रम से जनता को लगता है कि अरविंद ने सत्ता के लिए लोकतंत्रिक आदर्शों का गला दबाया है। अरविंद मुद्दे और विचार से पीछे छूटते दिखाई पड़ते हैं, जिनके लिए जनता ने उन्हें चुनकर पद पर बैठाया है। देश के लिए अरविंद लोकपाल बिल की लड़ाई लड़ने का दावा करते हैं, जबकि उनकी पार्टी के आंतरिक लोकपाल को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक तक में बैठने नहीं दिया गया।
श्रवण कुमार, समदा चतुभरुज, मुरादाबाद
क्या यह भी विकास है
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हाल-फिलहाल यह बयान दिया कि प्रदेश में पिछले तीन सालों में ऐतिहासिक विकास हुआ है और टेक्नोलॉजी का भरपूर प्रयोग कर प्रदेश को शिक्षा, स्वास्थ्य और शासन के क्षेत्र में अधिक पारदर्शी बनाया जाएगा। रविवार को यूपी पीसीएस (प्री) का पर्चा व्हाट्सअप के माध्यम से लीक हो गया। इससे अधिक व तेज विकास की क्या अपेक्षा की जा सकती है कि परीक्षा से पहले ही प्रश्न पत्र बाजार में था। विपक्षी दलों को यदि प्रदेश का यह विकास दिखाई न दे, तो इसमें मुख्यमंत्री या किसी भी मंत्री का क्या दोष?
रचना रस्तोगी, मेरठ
rachnarastogi66@gmail.com
फिर छली गई दिल्ली
माफी मांगकर और सुशासन का लालच देकर फिर से आप ने दिल्ली को छला है। पिछली बार की गलती से सबक न लेते हुए आप आपसी खींचतान में बाकी दलों से आगे निकलती दिख रही है। क्या यही सब देखने के लिए दिल्ली की जनता ने केजरीवाल को दोबारा सत्ता सौंपी थी? दरअसल, सिद्धांतों की थोथी दलील देने वाली आप शुरू से ही अति-आत्मविश्वास से ग्रसित है। पहले 49 दिनों और अब 67 विधायकों का राग गा रहे केजरीवाल और राजनीति व शासन से अनुभवहीन उनकी पार्टी पहले ही दिल्ली पर एक वर्ष खराब करके चुनावी बोझ डाल चुकी है। शपथ लेने के बाद से आज तक आप ने कोई विकास कार्य तो नहीं कराया, बल्कि आपसी झगड़ों को सड़क पर लाकर अराजक माहौल जरूर तैयार कर दिया है। खुद को ठगा-सा महसूस कर रही दिल्ली अपने फैसले पर पछता रही है। अब देखना यह है कि आप पार्टी इस कीमती वक्तको यों ही बरबाद करती है या दिल्लीवासियों की उम्मीद को पूरा कर पाती है।
सचिन कुमार कश्यप, शामली
sachin.kumar7337@yahoo.com
विफलता का हश्र
देश में मुख्य राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरे दोनों राजनीतिक दलों के नेतृत्वकर्ता नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल भारी उथल-पुथल से गुजर रहे हैं। दोनों से ही आम जन को बड़ी अपेक्षाएं थीं। पर दोनों ही नेता अपने कितने ही निर्णयों को लेकर जनता के असंतोष का सामना कर रहे हैं। दोनों के राजनीतिक जीवन में मची इस उथल-पुथल के जितने जिम्मेदार इन दोनों के गलत निर्णय हैं, उतना ही जिम्मेदार इनके प्रति मीडिया की उत्सुकता है। वैसे, इन दोनों नेताओ में एक बात समान है कि इन्होंने असफल होती भारतीय राजनीति को नए प्राण दिए हैं। मतदाता मान चुका था कि भारतीय राजनीतिक व्यवस्था भ्रष्टाचार एवं सांप्रदायिक तुष्टीकरण में डूब चुकी है। परंतु इन दोनों ने मन में नया विश्वास जगाया।
सतीश भारद्वाज
sat.nitu@gmail.com