संसद की रणनीति पर कांग्रेस में आपसी कलह
लोकसभा चुनाव में शर्मनाक हार के बावजूद कांग्रेस संसद में विपक्ष की भूमिका निभाने में नाकाम है। हर मुद्दे पर पार्टी नेताओं के मतभेद सदन में पार्टी के प्रदर्शन पर भारी पड़ रहे हैं। कांग्रेस लोकसभा में...
लोकसभा चुनाव में शर्मनाक हार के बावजूद कांग्रेस संसद में विपक्ष की भूमिका निभाने में नाकाम है। हर मुद्दे पर पार्टी नेताओं के मतभेद सदन में पार्टी के प्रदर्शन पर भारी पड़ रहे हैं। कांग्रेस लोकसभा में कोई फैसला करती है, तो राज्यसभा में उसकी अलग रणनीति होती है। इतना ही नहीं, राज्यसभा में कुछ सदस्य अपनी अलग ‘राह’ पकड़ रहे हैं।
कांग्रेस में सबसे ज्यादा मतभेद राज्यसभा में हैं। सदन में पार्टी के कई गुट बन गए हैं। पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांघी के सबसे करीब माने जाने वाले मधुसूदन मिस्त्री विपक्ष की अक्रामक भूमिका निभाने के हक में है। वहीं, कभी राहुल गांधी के राजनीतिक गुरु कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह की भी कई मुद्दों पर राय दूसरों से अलग है।
राज्यसभा में नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद की गैरमौजूदगी में पार्टी का नेतृत्व कर रहे आनंद शर्मा की अपनी रणनीति है। पार्टी नेताओं के बीच मतभेद का असर संसद में साफ दिखाई देने लगा है। गुरुवार को हैदराबाद हवाई अड्डे का नाम बदले जाने के खिलाफ सभापति के आसन की तरफ जा रहे हनुमंत राव को आनंद शर्मा ने रोकने की कोशिश की। हनुमंत राव ने उनका सुझाव खारिज करते हुए जवाब दिया कि वह और आनंद शर्मा राजीव गांधी की वजह से यहां तक पहुंचे हैं।
इससे पहले बुधवार को श्रम विधि संशोधन विधेयक का कांग्रेस ने समर्थन किया था, पर पार्टी महासचिव मधुसूदन मिस्त्री मतदान में शामिल नहीं हुए। यह मुद्दा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के सामने भी उठा। पर कोई व्हिप नहीं था, इसलिए मामले ने तूल नहीं पकड़ा। दरअसल, मधुसूदन मिस्त्री का मानना है कि पार्टी विपक्ष में है। इसलिए, वह हर मुद्दे पर सभापति के आसन के करीब जाना चाहते हैं। उनका मानना है कि सदन चलाने की जिम्मेदारी विपक्ष नहीं सरकार की होती है।
दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन अधिनियम में संशोधन पर भी कांग्रेस में कोई सहमति नहीं बन पाई थी। पार्टी का गुट इस संशोधन के खिलाफ था। उनकी दलील थी कि सरकार को कानून में संशोधन करने के बजाए कांग्रेस पार्टी के नेता को नेता विपक्ष का दर्जा देना चाहिए। जबकि दूसरे सदस्यों का मानना था कि टकराव को टालना चाहिए।