फोटो गैलरी

Hindi Newsतीरगरान से सबक लेते, तो नहीं सुलगता सहारनपुर

तीरगरान से सबक लेते, तो नहीं सुलगता सहारनपुर

मुजफ्फरनगर दंगे के वक्त से ही पुलिस-प्रशासन न तो कोई सबक लेने को तैयार है, और न ही अपनी कार्यशैली बदलने की कोई इच्छाशक्ति दिखा रहा है। पुलिस-प्रशासन के जिलों में तैनात अफसर न तो खुद कोई फैसला लेते...

तीरगरान से सबक लेते, तो नहीं सुलगता सहारनपुर
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 27 Jul 2014 10:57 PM
ऐप पर पढ़ें

मुजफ्फरनगर दंगे के वक्त से ही पुलिस-प्रशासन न तो कोई सबक लेने को तैयार है, और न ही अपनी कार्यशैली बदलने की कोई इच्छाशक्ति दिखा रहा है। पुलिस-प्रशासन के जिलों में तैनात अफसर न तो खुद कोई फैसला लेते दिख रहे हैं और न ही कोई पहल हो रही है। सब कुछ जानते हुए भी अनजान बने रहने का ट्रेंड सा हो गया है। सहारनपुर में भी गुरुद्वारे की जमीन के मामले में हाईकोर्ट का फैसला पुलिस-प्रशासन के संज्ञान में था। दो संप्रदायों में अंदर ही अंदर सुलग रहे तनाव से भी आला अफसर जानबूझकर अनजान बने रहे।

मेरठ के तीरगरान में 12 मई को ठीक ऐसे ही मामूली से दिखने वाले विवाद ने आग लगा दी थी। तीरगरान मोहल्ले में कुएं पर एक संप्रदाय के लोगों ने प्याऊ लगाई तो दूसरे संप्रदाय ने इसे कब्जे की साजिश करार दिया। पुलिस-प्रशासन मूकदर्शक बना रहा। दोनो संप्रदाय के लोग भिड़ गए। पथराव, गोलीबारी, आगजनी और हत्या से पूरे शहर में दहशत फैल गई। शासन से भी गाइडलाइन आई कि वेस्ट यूपी के सभी जिलों में ऐसे विवादित मसलों को चिहिन्‍त किया जाए।

सभी जिलों से लखनऊ तक कागज दौड़ने लगे। दो महीने बीतते ही सब कुछ ठंडे बस्ते में चला गया। सहारनपुर को भी ऐसे ही विवाद ने हिंसा की आग में जला डाला। थोड़ा और पीछे जाएं तो मुजफ्फरनगर दंगे में भी ठीक ऐसा ही हुआ। कवाल कांड के पहले मलिकपुरा और कवाल के युवकों में तनातनी का मामला पुलिस-प्रशासन की जानकारी में समय रहते आ गया था। ठोस कार्रवाई हो जाती तो हालात काबू में होते।

कवाल में सचिन, गौरव और शाहनवाज की हत्याएं हुईं तो पुलिस ने एकतरफा कार्रवाई का अभियान सा छेड़ दिया और पूरा वेस्ट यूपी सुलग उठा। कवाल से तीरगरान और सहारनपुर तक सिर्फ लखनऊ के ही इशारे का इंतजार किया जाता रहा।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें