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अंधेरी जिंदगियों में रोशनी लाई हिन्दुस्तान की पहल

छोटी दिवाली की सुबह दो अंधेरी जिंदगियों में उजियारा लेकर आई। हिन्दुस्तान के विशेष अभियान ‘नयनों के दीप जलाओ’ से प्रेरित होकर मुजफ्फरनगर के दो बेटों ने पिता के निधन के बाद उनकी आंखें दान...

अंधेरी जिंदगियों में रोशनी लाई हिन्दुस्तान की पहल
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 22 Oct 2014 09:10 PM
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छोटी दिवाली की सुबह दो अंधेरी जिंदगियों में उजियारा लेकर आई। हिन्दुस्तान के विशेष अभियान ‘नयनों के दीप जलाओ’ से प्रेरित होकर मुजफ्फरनगर के दो बेटों ने पिता के निधन के बाद उनकी आंखें दान की और मंगलवार को मेरठ मेडिकल अस्पताल में 60 वर्षीय रामचंद्र और 14 वर्षीय आसमां की आंखों में कॉर्निया का सफल प्रत्यारोपण किया गया। जब उनकी आंखों से पट्टी हटाई गई तो उनके सामने दिवाली आ गई थी।

आयरन फैक्ट्री में काम करने वाले गाजियाबाद निवासी रामचंद्र की दोनों आंखें दस साल पहले काम के दौरान चोटिल हो गई थी। काफी इलाज कराया, लेकिन दोनों आंखों की रोशनी जाती रही। दस साल से वह छोटे भाई और पत्नी के सहारे जिंदगी जी रहे थे। डेढम् साल पहले रामचंद्र के भाई सत्यप्रकाश को किसी ने मेरठ स्थित आई बैंक के बारे में बताया तो उन्होंने यहां रजिस्ट्रेशन करा दिया था। उधर, बागपत की 14 वर्षीय आसमां की एक आंख की रोशनी खेलने के दौरान चोट लग जाने से चली गई थी। उसकी दूसरी आंख की रोशनी भी सामान्य से काफी कम थी।

सालभर पहले उसके पिता आबिद ने भी आई बैंक में रजिस्ट्रेशन कराया था। हिन्दुस्तान के अभियान ‘नयनों के दीप जलाओ’ से प्रेरित होकर तीन दिन पहले मुजफ्फरनगर निवासी दो बेटों ने अपने पिता के निधन के बाद आई बैंक को फोन कर पिता के नेत्रदान की इच्छा जताई। परिवार ने हिन्दुस्तान को भी फोन पर इस बारे में बताया।

सोमवार रात करीब तीन बजे डॉक्टरों की टीम मेरठ से मुजफ्फरनगर पहुंची और उनकी आंखों से कॉर्निया लिया। मंगलवार सुबह रामचंद्र और आसमां को फोन कर मेरठ मेडिकल अस्पताल बुलाया गया और देर शाम तक कॉर्निया का सफल प्रत्यारोपण कर दिया गया। बुधवार को डॉ. संदीप मित्थल और उनकी टीम ने दोनों की आंखों से पप्ती हटाई तो उनकी दुनिया से वर्षो से पसरा अंधेरा छंट चुका था। दिवाली पर नई रोशनी पाकर रामचंद्र, आसमां उनके परिजनों और साथ ही डॉक्टरों ने हिन्दुस्तान की कोशिश को सराहते हुए धन्यवाद दिया।

हिन्दुस्तान के अभियान नयनों के दीप जलाओ के बाद नेत्रदान का संकल्प करने वालों की संख्या में कई गुना इजाफा हुआ है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस अभियान ने लोगों में जागरूकता पैदा की है, पहले लोग फार्म भरकर भूल जाते थे, लेकिन अब मृत्यु के बाद परिजन आई बैंक को सूचना दे रहे हैं - डॉ संदीप मित्थल पूर्व प्राचार्य मेडिकल कॉलेज

दस साल बाद मैं अपने परिवार के साथ दिवाली की रोशनी देख सकूंगा। इन वर्षो में मैंने अपने बच्चों की सूरत तक नहीं देखी, हिन्दुस्तान के इस प्रयास के कारण मेरी अंधेरी जिंदगी में रोशनी के साथ पूरे परिवार की खुशियां लौट आई हैं - रामचंद्र, मरीज

आंखों की रोशनी जाने के कारण मेरी पढ़ाई छूट गई थी। अब मैं फिर से पढ़ाई करके नई जिंदगी जी सकूंगी। आसमां, मरीज 

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