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गंगा में प्रदूषण की वजह खतरनाक प्लूटोनियम तो नहीं

देश की जीवनधारा नदी गंगा में प्रदूषण की बड़ी वजह प्लूटोनियम जैसा खतरनाक रासायनिक रेडियोधर्मी तत्व हो सकता है, जो उत्तराखंड की वादियों से कोलकाता तक गंगा तट पर रहने वाले लोगों को प्रभावित कर रहा...

गंगा में प्रदूषण की वजह खतरनाक प्लूटोनियम तो नहीं
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 18 Apr 2015 09:03 PM
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देश की जीवनधारा नदी गंगा में प्रदूषण की बड़ी वजह प्लूटोनियम जैसा खतरनाक रासायनिक रेडियोधर्मी तत्व हो सकता है, जो उत्तराखंड की वादियों से कोलकाता तक गंगा तट पर रहने वाले लोगों को प्रभावित कर रहा है।

उत्तराखंड में स्थित देश की दूसरी सबसे ऊंची चोटी नंदा देवी से निकलने वाली गंगा नदी के जल में बड़ी मात्रा में प्लूटोनियम समाहित होने का अंदेशा है। देवभूमि में ये प्लूटोनियम अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी सीआईए और भारतीय एजेंसी आईबी के एक असफल अभियान का दुष्परिणाम है।

1962 में भारत चीन युद्ध के ठीक दो साल बाद 1964 में चीन ने झियांग प्रांत में परमाणु परीक्षण किया था। इसके बाद 1965 में भारत सरकार की एजेंसी आईबी और अमेरिकी निगरानी एजेंसी सीआईए ने मिलकर पड़ोसी देश की गतिविधियों पर निगरानी रखने का फैसला किया।  चीन पर नजर रखने के परमाणु तत्वों की पहचान करने वाला उपकरण लगाने का निर्णय लिया गया।

इसके लिए नंदा देवी की चोटियों पर एक रिमोट सेंसिंग डिवाइस स्थापित किया गया। तब 56 किलोग्राम वजन का डिवाइस 24 हजार फीट की ऊंचाई पर नंदा देवी की चोटियों से ठीक पहले लगाया गया। इसमें 8 से 10 फीट का एंटीना लगा था। इस डिवाइस का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा था न्यूक्लियर पावर जेनरेटर। इसे ऊर्जा प्रदान करने के लिए 7 प्लूटोनियम कैप्सूल एक खास कंटेनर में लगाए गए थे।

पर कैंप-4 के आसपास जहां ये यंत्र स्थापित किया जाना था तेज बर्फीली हवाओं और ऑक्सीजन का स्तर घटने के बाद फौजी अभियान अधूरा छोड़ वहां से वापस लौट आए। टीम के नेतृत्वकर्ता कैप्टन मनमोहन सिंह कोहली बताते हैं कि आदमी या मशीन में किसी एक को चुनना था, इसलिए हम मशीन को छोड़कर वापस आ गए। न्यूक्लियर जेनरेटर जिसे गुरु रिनपोछे नाम दिया गया था, वह गर्म ऊर्जा उत्सर्जित कर रहा था। जब वे मई 1966 में उसी स्थल पर दुबारा पहुंचे तो वहां प्लूटोनियम सेल नजर नहीं आए।

क्या है सच : कई कयास लगाए जाते हैं पर सही-सही नहीं मालूम की ये प्लूटोनियम कहां गया। कैप्टन कोहली को अंदेशा है कि ये बर्फ में दबा गया होगा। ये भी अंदेशा है प्लूटोनियम हिम स्खलन के साथ षि गंगा नदी में पहुंच गया हो।  कोहली कहते हैं कि ऐसा अंदेशा है कि बड़ी मात्रा में गंगा का जल प्लूटोनियम से दूषित हो गया होगा। ये पानी आगे गंगा में जाकर मिल रहा है जो कई राज्यों के करोडमें लोगों को प्रभावित कर सकता है। खास तौर पर उन लोगों को जो उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और बंगाल में गंगा तट पर रहते हैं।

गंगा नदी
नंदा देवी शिखर पर चंग बंग हिमनद से षि गंगा नदी निकलती है। जोशी मठ से 25 किलोमीटर ऊपर रैनी में षि गंगा नदी धौली गंगा में मिल जाती है। वहीं धौलीगंगा विष्णु प्रयाग में अलकनंदा में समाहित हो जाती है।

नंदा देवी
7816 मीटर ऊंचाई के साथ नंदा देवी भारत की दूसरी सबसे बड़ी चोटी
23वीं सबसे ऊंची चोटी है नंदा देवी दुनिया में, उत्तराखंड में देवी के रूप में पूजा
1936 में नायल आडेल और बिल तिलमैन ने पहली इसकी चोटियों पर विजय पाई थी
02 नदियां गौरी गंगा और षि गंगा निकलती हैं नंदा देवी से

खतरनाक प्लूटोनियम
01 माइक्रोग्राम प्लूटोनियम भी काफी है एक इंसान की जान लेने के लिए
125 पाउंड के प्लूटोनियम सेल लगाए गए थे नंदा देवी में
100 साल तक भी नष्ट नहीं किया जा सकता है प्लूटोनियम को
20 आईसोटॉप्स ऐसे हैं प्लूटोनियम के जो हमेशा रेडिएशन छोड़ते हैं।

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