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अग्नि की सफलता का श्रेय कलाम ने इंदिरा की दूरदर्शिता को दिया था

पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन डा.एपीजे अब्दुल कलाम आज हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन देश के मिसाइल और परमाणु कार्यक्रम में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। आज देश मिसाइल तकनीक और परमाणु कार्यक्रम में...

अग्नि की सफलता का श्रेय कलाम ने इंदिरा की दूरदर्शिता को दिया था
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 28 Jul 2015 02:54 PM
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पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन डा.एपीजे अब्दुल कलाम आज हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन देश के मिसाइल और परमाणु कार्यक्रम में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। आज देश मिसाइल तकनीक और परमाणु कार्यक्रम में आत्मनिर्भर है। निश्चित रूप से इस उपलब्धि का श्रेय डा. कलाम को जाता है। लेकिन खुद डा. कलाम इन उपलब्धियों के लिए देश के कई प्रधानमंत्रियों एवं मुख्यमंत्रियों की दूरदृष्टि को मानते थे।

कलाम ने माना है कि यदि इंदिरा गांधी और बीजू पटनायक जैसे नेताओं की सोच नहीं होती तो आज देश के पास पांच हजार किमी दूर तक मार करने वाली अग्नि-5 जैसी मिसाइल नहीं होती। डा. कलाम ने अपनी किताब ‘टर्निग प्वांइट’ में इसका श्रेय तीन पूर्व प्रधानमंत्रियों श्रीमती इंदिरा गांधी, पी. वी. नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेई तथा उड़ीसा के पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक को दिया है। कलाम के अनुसार ये चार ऐसे दूरदर्शी नेता रहे हैं जिन्होंने मिसाइल एवं परमाणु कार्यक्रम की सफलता के लिए पार्टी से बढ़कर काम किया।

डा. कलाम ने अपने संस्मरण में जिक्र किया है कि किस प्रकार अग्नि-5 जैसी मिसाइल बनाने की परिकल्पना साकार हुई थी। वे बताते हैं कि 1983 में कैबिनेट ने 400 करोड़ की लागत वाला एकीकृत मिसाइल कार्यक्रम स्वीकृत किया। इसके बाद 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी डीआरडीएल लैब हैदराबाद में आई। ‘मैं उन्हें प्रजेंटेशन दे रहा था। सामने विश्व का नक्शा टंगा था।’ अचानक इंदिरा जी ने बीच में प्रेजेंटेशन रोक दिया और कहा, ‘कलाम, पूरब की तरफ यह स्थान देखो। (उन्होंने एक जगह पर हाथ रखा)। यहां तक मार करने वाली मिसाइल कब बना सकते हो। जिस स्थान पर उन्होंने हाथ रखा था वह भारतीय सीमा से पांच हजार किमी दूर चीन का एक स्थान था।

डा. कलाम के अनुसार दूसरा वाकया 1993 का था। बीजू पटनायक तब उड़ीसा के मुख्यमंत्री थे। हमें उड़ीसा के तट पर व्हीलर द्वीप सहित चार और द्वीप मिसाइल परीक्षण के लिए चाहिए थे। ये मिसाइल परीक्षण के लिए बेहतरीन स्पॉट थे। फाइल राज्य सरकार के पास थी। इसमें राजनीतिक फैसला होना था। मैं बीजू पटनायक से मिलने पहुंचा। फाइल उनके सामने रखी थी।

उन्होंने कहा, ‘कलाम मैं पांचों द्वीप बिना कीमत के डीआरडीओ को देने को तैयार हूं। लेकिन एक वादा मुझसे करना होगा। मैंने पूछा क्या ? पटनायक ने मेरा हाथ थामा। और कहा, ‘मुझे चीन यात्रा का निमंत्रण मिला है। लेकिन मैं तभी जाऊंगा जब तुम मुझसे वादा करो कि एक ऐसी मिसाइल बनाओगे जो चीन तक अटैक करे।’ मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि इस दिशा में कार्य करेंगे।

इस पुस्तक में आगे कलाम ने बताया है कि किस प्रकार पोखरण परमाणु परीक्षण सफल हो सका। परीक्षण करना भी हमारे देश के दो अलग-अलग दलों के प्रधानमंत्रियों की दूरदर्शिता और मिला-जुला प्रयास था। मई 1996 में एक रात नौ बजे मुझे पीएम हाउस से फोन आया कि पीएम नरसिम्हा राव तुरंत मिलना चाहते हैं। मैं मिला। दो दिन बार आम चुनावों के रिजल्ट आने वाले थे। नरसिम्हा राव ने मुझसे कहा, ‘कलाम, उम्मीद के मुताबिक रिजल्ट नहीं आ रहे हैं। हम सत्ता से जा रहे हैं। इसलिए परमाणु परीक्षण की तैयारी करो।’

मेरी टीम कार्य में जुट गई। दो दिन के बाद रिजल्ट आ गए। अटल बिहारी वाजपेई प्रधनामंत्री घोषित हो गए। मैं चांदीपुर में तैयारियों में व्यस्त था। मुझे बताया गया कि तत्काल अटल बिहारी वाजपेई से मिलना है। निवर्तमान प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव स्वयं मुझे उनके मिलाने ले गए। मेरे सामने विचित्र स्थिति थी। एक प्रधानमंत्री का कार्यकाल पूरा हो चुका था और दूसरा कार्यकाल संभालने वाले थे।

राव ने मुझसे कहा कि परमाणु परीक्षण की तैयारियों के बारे में बताओ, यह बेहद जरूरी कार्य है। उन्होंने वाजपेई से कहा कि मैं यह कार्य करना चाहता था लेकिन नहीं कर पाया तथा आप इस कार्य को प्राथमिकता के साथ करें। यह दोनों प्रधानमंत्रियों के प्रयासों का ही नतीजा था कि 1998 में मुझे परमाणु परीक्षण करने का आदेश मिला। कलाम ने लिखा है कि ये घटनाएं बताती हैं कि इन राजनीतिज्ञों के लिए अपनी पार्टी से बढ़ा देश था।

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