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16 दिसंबर पर हिन्दुस्तान की पड़ताल, दिल्ली में कितनी सुरक्षित हैं महिलाएं

निर्भया कांड के बाद दिल्ली में महिला अपराध की घटना ढाई गुना बढ़ गई। देश को शर्मसार करने वाली इस घटना वाले साल जहां रोजाना महिला के खिलाफ हुए अपराध को लेकर 17 मामले दर्ज होते थे, वहीं इस साल यह आंकड़ा...

16 दिसंबर पर हिन्दुस्तान की पड़ताल, दिल्ली में कितनी सुरक्षित हैं महिलाएं
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 17 Dec 2014 12:17 PM
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निर्भया कांड के बाद दिल्ली में महिला अपराध की घटना ढाई गुना बढ़ गई। देश को शर्मसार करने वाली इस घटना वाले साल जहां रोजाना महिला के खिलाफ हुए अपराध को लेकर 17 मामले दर्ज होते थे, वहीं इस साल यह आंकड़ा बढ़कर 43 की संख्या तक पहुंच गया। इस साल महिला अपराध को लेकर दिल्ली पुलिस कंट्रोल रूम व महिला हेल्प लाइन में भी हर रोज ऐसी कॉल आने की संख्या में भी इजाफा हुआ है। आंकड़ों के मुताबिक यह संख्या रोजाना के हिसाब से 48 की बैठती है।

राजधानी में होने वाले महिला अपराधों में सबसे ज्यादा घटनाएं छेड़छाड़ की होती हैं। आंकड़ों के मुताबिक हर महीने 364 महिलाएं छेड़छाड़ की शिकार होती हैं, जबकि प्रतिदिन के हिसाब से राजधानी में होने वाली छेड़छाड़ की घटना की संख्या 12 होती है। दिल्ली पुलिस छेड़छाड़ के 12 मामले रोज दर्ज करती है। वहीं दूसरे नंबर पर राजधानी की महिलाओं के साथ होने वाले अपराध में अपहरण की वारदातें शामिल हैं। दिल्ली में हर महीने 340 महिलाओं का अपहरण होता है, जबकि रोजाना के हिसाब से यह आंकड़ा 11 का बैठता है।

वहीं तीसरे नंबर पर राजधानी में जो महिला अपराध है, उनमें दहेज उत्पीड़न के मामले हैं। इसकी संख्या भी कम नहीं है। इसका मासिक आंकड़ा है 256 का, जबकि प्रतिदिन का हिसाब बैठता है 9 की संख्या का है।  इसके अलावा महिला अपराध को लेकर दिल्ली को जो घटना सबसे ज्यादा शर्मसार करती है, वह दुष्कर्म है। दिल्ली में इस साल अबतक 1985 दुष्कर्म के मामले दर्ज किए गए हैं। इस हिसाब से मासिक आंकड़ा-180 का होता है, वहीं प्रतिदिन महिलाओं के साथ हुई दुष्कर्म की घटनाओं की संख्या छह की बैठती है।

महिला अपराध को लेकर दिल्ली पुलिस कंट्रोल रूम-100 नंबर और महिला हेल्प लाइन-1091 में पिछले साल 11 हजार कॉल आई। इसका रोजाना आंकड़ा 33 का बैठता था, जो इस साल बढ़कर 48 के आंकड़े तक पहुंच गया। इस साल दिल्ली पुलिस के पास महिला अपराध को लेकर 15, 800 कॉल आई, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 11 हजार का था।

दिल्ली में महिला अपराध के मामले

2012  में
दुष्कर्म - 706
छेड़छाड़ - 727
अश्लील इशारे - 236
दहेज हत्या - 134
दहेज उत्पीड़न - 2046
अपहरण - 2210

2014 में
दुष्कर्म - 1985
छेड़छाड़ - 4004
अश्लील इशारे - 1204
दहेज हत्या -  144
दहेज उत्पीड़न - 2814
अपहरण - 3738  

वो मदद मांगती रही, लोग तमाशबीन बने रहे

16 दिसंबर की घटना को आज दो साल पूरे हो रहे हैं। ‘हिन्दुस्तान’ ने कुछ युवा कलाकारों के साथ मिलकर सामाजिक संवेदनशीलता को टटोलने की कोशिश की। इसके लिए हमने नोएडा की सबसे व्यस्ततम जगह सेक्टर-18 को चुना। यह प्रयोग करने का हमारा मकसद था कि लोग महिलाओं पर सड़कों पर हो रहे जुल्म के खिलाफ तमाशबीन न बनें क्योंकि ऐसे अपराधों के खिलाफ चुप्पी तोड़ने से ही बदलाव आएगा..

नोएडा सेक्टर-18 का मुख्य बाजार। चारों ओर लोगों की चहल-पहल। इस बीच चार युवक एक लड़की को छेड़ रहे थे। करीब पांच मिनट तक यह नजारा चलता रहा। लड़कों की हरकतें बढ़ रही थीं तो वहीं लड़की अपने बचाव के लिए संघर्ष कर रही थी। उसने लोगों से मदद की गुहार लगाई लेकिन किसी ने उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं दिखाई। जब लड़कों ने लोगों को ‘कोई कुछ नहीं कर सकता’ कह तो भीड़ में से दो लोग सहायता के लिए आगे आए।

रविवार को यह नजारा नोएडा के सबसे भीड़भाड़, मॉल से घिरे और पॉश इलाके का था जिसने हमारी सामाजिक संवेदनशीलता की कलई खोल दी। ‘हिन्दुस्तान’ ने छेड़खानी और बलात्कार जैसी घटनाओं पर लोगों की संवेदना और प्रतिकिया जानने के लिए यह ‘सामाजिक प्रयोग’ किया। हिन्दुस्तान ने इस अभियान में कॉलेज के नाटक करने वाले युवक-युवतियों का सहयोग लिया। हमारी टीम की सदस्य खुशबू गौतम सेक्टर-18 बाजार के मुख्य चौराहे पर अकेली खड़ी रहीं। दूसरी ओर से टीम के ही चार साथी युवक उसकी ओर आते हैं। एक युवक को लड़की पर धक्का दिया जाता है। लड़की कुछ नहीं कहती। थोड़ा आगे चली जाती है। युवक फिर उसकी ओर आते हैं। उसे धक्का देते हैं। लड़की चिल्लाती है। युवक भीड़ से भागते नहीं बल्कि उसे और छेड़ते और डराते हैं। इस बीच 50 से 60 लोग घेरा बनकर खड़े तो हो जाते हैं लेकिन सभी तमाशबीन की तरह यह नजारा देखते रहते हैं। वहीं, छेड़खानी की शिकार लड़की उनसे मदद की गुहार लगाती है।

पांच मिनट तक कोई आगे नहीं आया
हैरानी की बात यह है कि इस पांच मिनट की घटना में लोग लड़की की गुहार पर आगे नहीं आते। करीब चार मिनट बाद छेड़खानी करना वाला एक युवक कहता है,‘ अरे, ये सब क्या करेंगे? कोई कुछ नहीं कर सकता।’ जब युवक ऐसा कहता है तो भीड़ में से कुछ युवक सामने आकर मनचलों पर हमला करते हैं। 

‘लोगों को ऐसी घटनाएं मनोरंजन लगती हैं’
इस प्रयोग में हिस्सा लेने वाली लड़की खुशबू गौतम कहती हैं, ‘मुझे हैरानी हुई कि काफी देर तक कोई सामने नहीं आया। मैं बहुत देर तक चिल्लाती रही और मदद मांगती रही। लोग जुट जरूर हो गए लेकिन हर कोई मनोरंजन के तौर पर इस घटना को देख रहा था। किसी ने मेरी गुहार में मदद करने की जहमत नहीं उठाई। हां, बाद में जब उन्हें उकसाया गया तो कुछ लोग आगे आए।

ये हैं हमारे कलाकार
हिमांशु सिंह
युवा कहानीकार, अभिनेता व नाट्य कलाकार हिमांशु सिंह ताज नगरी आगरा से हैं। इन्होंने आगरा से बीटेक की डिग्री हासिल की लेकिन दिल लेखन की ओर था। लिहाजा विदेशी कंपनी में मोटे पैकेज की नौकरी छोड़ लेखन कार्य शुरू किया। दिल्ली आकर आईआईएमसी से पत्रकारिता की पढ़ाई की। थियेटर में सक्रिय हैं। देश के मशहूर किस्सागो निलेश मिश्रा के रेडियो कार्यक्रम ‘यादों का इडियट बॉक्स’ के लिए कहानियां लिखते हैं। उनकी ‘राइटर मंडली’ के सदस्य भी हैं। 

समीर तिवारी
समीर तिवारी लखनऊ से हैं। नाटक में रुचि है। अवध विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद नाटक की बारीकियां सीखने के लिए दिल्ली का रुख किया। सुबह कॉलेज और शाम नाटकों में बीतती है। इंडियन थियेटर पीपुल्स एसोसिएशन (इप्टा) के छात्रों द्वारा तैयार ‘परिवर्तन’ समूह से जुड़े हैं। ‘राइट टू फूड’ और ‘राइट टू पेंशन’ जैसे विभिन्न विषयों पर नुक्कड़ नाटक किया है। समीर ने ‘हिन्दुस्तान’ द्वारा किए गए सामाजिक प्रयोग में मनचले लड़के की भूमिका अदा की। 

इमरान इदरिशी
इमरान उत्तर प्रदेश के मुज्जफरनगर से हैं। मेरठ से कॉमर्स में स्नातक करने के बाद एक साल पहले दिल्ली आए। दिल्ली में स्नातकोत्तर स्तर पर फिलहाल पत्रकारिता पढ़ रहे हैं। नाटक की ओर शुरू से रुझान रहा। इसलिए ‘परिवर्तन’ समूह में शामिल हुए। बुजुर्गों की पेंशन और महिला सम्मान जैसे कई विषयों पर जंतर-मंतर से लेकर सीपी तक विभिन्न नुक्कड़ नाटकों में अपनी कला का प्रदर्शन किया। रविवार को नोएडा में किए गए नाटक में उन्होंने मनचले लड़के की भूमिका निभाई।

हर्ष प्रकाश सिंह
पटना के रहने वाले हर्ष प्रकाश सिंह ने इप्टा से नाट्य कला की बारीकियां सीखीं। जामिया इप्टा से छह माह तक जुड़ने के बाद दोस्तों संग ‘परिवर्तन’ नाट्य समूह की शुरुआत की। इसके जरिये शिक्षा का अधिकार जैसे विभिन्न विषयों पर नुक्कड़ नाटक किया। विभिन्न उपन्यासों पर मंचित नाटकों में अहम भूमिका निभाई। फिलहाल दिल्ली में बॉलीग्रेड फिल्म एंड मीडिया टेलीविजन इंस्टीट्यूट से नाट्य के गुर सीख रहे हैं। ‘हिन्दुस्तान’ के सामाजिक प्रयोग के नाटक में हर्ष ने मनचले लड़कों में मुख्य भूमिका निभाई।

मदद के लिए नहीं अहं के कारण आगे आए लोग
नाटक करने से पहले मेरे दिमाग में एक बात थी। मुझे लगा था कि जैसे ही मेरी टीम के साथी सदस्य मनचलों की भूमिका में मुझे छेड़ेंगे तो लोग मदद के लिए जरूर आगे आएंगे। दुर्भाग्य, ऐसा नहीं हुआ। स्क्रिप्ट के तहत जब एक युवक को मुझ पर धक्का दिया गया तो मैं जोर से चिल्लाई। मदद मांगी। पास में एक बाइक पर बैठा लड़का सब देखता रहा और मदद के लिए आगे नहीं आया। हैरानी की बात यह है कि वो दूसरों को मुस्कुराकर मंचलों को रोकने के लिए कह रहा था।

बहरहाल, हमारा समाज कितना संवेदनशील और मददगार, ये इससे पता चलता है कि ढाई मिनट तक मैं जोर जोर से चिल्लाकर मदद मांग रही थी। उस वक्त कोई नहीं आगे आया लेकिन जब मनचले लड़कों ने यह कहा कि ये सब कुछ नहीं कर सकते, तब दो युवक मनचलों पर हमला करने के लिए आगे बढ़े। दरअसल, वे मेरी मदद के लिए नहीं बल्कि अपने अहं के कारण आगे आए।
पीड़ित लड़की की भूमिका निभाने वाली खुशबू गौतम की जुबानी...

वह पूछती है, क्या मेरी जैसी लड़कियों को इंसाफ मिलेगा

दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को हुए सामूहिक बलात्कार एवं हत्याकांड के दो साल पूरे होने से पहले पीड़िता के पिता ने अपनी बेटी को याद किया। उन्होंने अपना दर्द जाहिर करते हुए सवाल किया कि देश के प्रधानमंत्री कहते हैं कि वह निडर हैं। क्या वह हमें इंसाफ दिलाने में मदद करेंगे।

उबर कैब के एक ड्राइवर द्वारा हाल ही में एक युवती से बलात्कार की घटना के बाबत निर्भया के पिता ने कहा कि 16 दिसंबर 2012 के बाद भारत में कुछ भी नहीं बदला है। हमारे नेताओं और मंत्रियों की ओर से किए गए सारे वादे खोखले साबित हुए हैं। हमारे दुख से उन्हें चर्चा में आने का मौका मिलता है।

उन्होंने कहा कि निर्भया मुझसे पूछती है कि उसे न्याय दिलाने के लिए उन्होंने क्या किया है तब मुझे असहाय होने का अहसास होता है और लगता है कि मैं कितना मामूली आदमी हूं। उन्होंने कहा कि वह 16 दिसंबर 2012 की रात से लेकर आज तक कभी भी शांति से नहीं सो सके हैं।

ज्ञात रहे कि इस मामले में चार वयस्क आरोपियों -अक्षय ठाकुर, विनय शर्मा, पवन गुप्ता और मुकेश को साकेत स्थित फॉस्ट ट्रैक अदालत ने 13 सितंबर 2013 को मौत की सजा सुनाई थी। वहीं, दिल्ली हाईकोर्ट ने इस साल मार्च में उन्हें सुनाई गई मौत की सजा को बरकरार रखा था। अब परिवार दोषियों की अपील पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई का इंतजार कर रहा है।

पुलिस के तीन अफसरों को नहीं मिली राहत
निर्भया कांड में विभिन्न जांच आयोगों की क्लीन चिट मिलने के बावजूद ट्रैफिक पुलिस के तीन अफसरों को गृह मंत्रालय राहत देने के लिए तैयार नहीं है। नतीजा, एसीआर (वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट) में सौ फीसदी अंक लेने वाले एक ज्वाइंट सीपी की दो साल से पदोन्नति अटक गई है। बाकी दो अफसर, जिनमें एक डीसीपी और तात्कालीन एसीपी शामिल हैं, उन्हें भी सेवाकाल के दौरान मिलने वाले लाभ खत्म होने का भय सता रहा है।

बता दें कि 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली के वसंत विहार में हुए निर्भया कांड के बाद ट्रैफिक पुलिस के तात्कालीन ज्वाइंट सीपी सत्येंद्र गर्ग, डीसीपी प्रेमनाथ और उस समय एसीपी रही अनिता राय के खिलाफ जांच शुरू हुई थी। उस समय के स्पेशल सीपी (पीसीआर) दीपक मिश्रा को भी जांच के दायरे में लिया गया था।

हालांकि यूपीए सरकार के अंतिम सप्ताह में उन्हें क्लीन देकर डीजी रैंक में पदोन्नत कर दिया गया। सरकार ने इस मामले की जांच दो संयुक्त संसदीय समितियों (जेपीसी), जस्टिस वर्मा कमीशन, ऊषा मेहरा आयोग और संयुक्त सचिव (पी एंड एम गृह मंत्रालय) को सौंपी थी। मेहरा आयोग की रिपोर्ट में इन अफसरों पर सीधा कोई आरोप नहीं लगाया गया था।

संयुक्त सचिव (पी एंड एम गृह मंत्रालय) ने भी अपनी रिपोर्ट में कुछ ऐसा ही लिखा था। ट्रैफिक पुलिस ने अपनी दलील में कहा था कि जिस बस में निर्भया कांड हुआ, उसका आठ बार चालान किया था। छह बार उसे जब्त भी किया गया। बस का परमिट रद्द करने का अधिकार ट्रैफिक पुलिस के पास नहीं था।

पीसीआर वैन से 20 मीटर की दूरी पर छेड़छाड़

लड़की देखकर फब्तियां कसी
शाम 07:15 बजे
सर्व प्रिय विहार

‘हिन्दुस्तान’ टीम की पड़ताल का हिस्सा बनी अन्नपूर्णा देव दक्षिणी दिल्ली के सर्व प्रिय विहार स्टैंड पर बस का इंतजार कर रही थीं। वह वहां पर अकेली थीं। सड़क के दूसरी तरफ तीन लड़के खड़े थे। कुछ मिनट के बाद तीनों सड़क पार करके इस तरफ आ गए।

हमें लगा कि शायद वे गलत स्टैंड पर खड़े हो गए होंगे इसलिए इस तरफ आ गए हैं। लेकिन कुछ मिनट बाद वे अन्नपूर्णा के नजदीक जाने की कोशिश करने लगे। इस दौरान एक लड़के ने अन्नपूर्णा के पास जाकर कुछ कहा। अन्नपूर्णा वहीं खड़ी रहीं। इस दौरान हमारी टीम तीनों लड़कों की हरकतों को कैमरे में कैद कर रही थी। करीब दस मिनट के बाद तीनों लड़कों ने अन्नपूर्णा पर फब्तियां कसी लेकिन वह फिर भी वहीं बनी रही।

कुछ मिनट के बाद जब तीनों लड़के युवती के काफी करीब पहुंच गए और हमें लगा कि अब तीनों लड़के युवती के साथ बदसलूकी कर सकते हैं तो हमने अन्नपूर्णा को वहां से आने के लिए कहा। इस घटनाक्रम के समय भले ही बस स्टैंड पर कोई न हो लेकिन स्टैंड से महज बीस मीटर आगे दिल्ली पुलिस की पीसीआर वैन खड़ी दिखी।

हमें लगा कि पीसीआर वैन लड़कों की इस हरकत को गंभीरता से लेगी लेकिन घटना के बीस मिनट के अंदर न तो कोई पुलिस वाला अन्नपूर्णा की मदद के लिए वहां आया और न ही किसी ने लड़कों को रोकने की कोशिश की।

दिल्ली में खुद को सुरक्षित रखना चुनौती
दिल्ली में सुनसान के साथ-साथ भीड़भाड़ वाली जगहों पर भी महिलाएं असुरक्षित हैं। बस अड्डा, मेट्रो, मॉल और सार्वजनिक स्थानों के आगे शाम होते ही आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का जमावड़ा लग जाता है। रविवार को भी दक्षिणी दिल्ली और मेट्रो में महिला सुरक्षा को लेकर की गई पड़ताल में कई जगह मुझ पर भद्दी फब्तियां कसी गईं।

स्टैंड पर बस के इंतजार में खड़े होने के दौरान कुछ युवक मुझे अकेला देखकर मेरे इतने करीब आ गए कि मुझे लगा कि अब वे मेरा साथ कुछ गलत कर सकते हैं। इस दौरान मेरे टीम के कुछ सदस्य मेरे पास आ गए जिसे देखकर वे युवक वहां से चले गए। दो साल पहले 16 दिसंबर के दिन हुई घटना के बाद लोगों के आक्रोश को देखकर ऐसा लगा था कि महिलाओं की सुरक्षा को लेकर जनचेतना आ गई है लेकिन रविवार को मेरे साथ हुआ इस तरह का बर्ताव व्यवस्था की पोल खोलता है।

मेट्रो में ब्रेक के बहाने अकेली लड़की की ओर झुके

रात 08:00 बजे
आईएनएस से आगे
अपनी पड़ताल के अगले पड़ाव में ‘हिन्दुस्तान’ ने हौज खास से नोएडा सेक्टर-18 के बीच मेट्रो यात्रा की। इस दौरान अन्नपूर्णा और हमारी पूरी टीम साथ थी। बोगी में पहले से ही काफी भीड़ थी। इसके बावजूद कुछ लड़के अन्नपूर्णा को अकेला देखकर अन्य बोगी से उनकी तरफ आ गए।

उन्होंने अन्नपूर्णा को चारों तरफ से घेर लिया। कुछ समय बीतने के बाद इनमें से कुछ लड़कों ने अन्नपूर्णा की तरफ देखकर हंसना शुरू कर दिया। राजीव चौक से पहले मेट्रो कई स्टेशन पर रुकी। इस दौरान मेट्रो की ब्रेक लगने के बहाने से ये लड़के अन्नापूर्णा की तरफ कई बार झुके और उन्होंने कई बार उन्हें अश्लील इशारे भी किए। हालात को बिगड़ता देख हमने राजीव चौक से पहले ही मेट्रो से उतरने का फैसला किया।

इसके बाद हमने दूसरी मेट्रो ली। इस मेट्रो से हम राजीव चौक पहुंचे और बाद में हम नोएडा सिटी सेंटर तक गए। राजीव चौक से नोएडा तक जाने के बीच में भी अन्नपूर्णा को लेकर कई लड़कों ने फब्तियां कसी। सफर के दौरान हमें महिलाओं के लिए आरक्षित विशेष बोगी के पास भी लड़कों का एक समूह खड़ा मिला। यह समूह बेपरवाह होकर अपनी हरकतें कर रहा था। इस दौरान उन्हें रोकने के लिए न तो कोई महिला पुलिस दिखी और न ही कोई अन्य पुलिसकर्मी यहां तैनात थे।

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