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112 साल बाद भी विवेकानंद दे रहे हैं मानवता का संदेश

भारतीय संस्कृति का परचम विदेशों तक लहराने वाले भारतीय पुनर्जागरण काल के स्तंभ स्वामी विवेकानंद की आज 112वीं पुण्यतिथि है। बचपन में ही गुरू रामकष्ण परमहंस से प्रभावित होकर मानवता की सेवा में जुट गये...

112 साल बाद भी विवेकानंद दे रहे हैं मानवता का संदेश
एजेंसीFri, 04 Jul 2014 05:08 PM
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भारतीय संस्कृति का परचम विदेशों तक लहराने वाले भारतीय पुनर्जागरण काल के स्तंभ स्वामी विवेकानंद की आज 112वीं पुण्यतिथि है। बचपन में ही गुरू रामकष्ण परमहंस से प्रभावित होकर मानवता की सेवा में जुट गये विवेकानंद का 1902 में 4 जुलाई को मात्र 39 वर्ष की आयु में निधन हो गया था।
   
विवेकानंद जब 30 वर्ष के थे तब वह अमेरिका के शिकागो में आयोजित 1893 की विश्व धर्म महासभा में हिन्दू धर्म के प्रतिनिधि के तौर पर सम्मिलित हुए थे। उनके संबोधन मेरे अमेरिकी भाइयों बहनों ने वहां उपस्थित सभी उपस्थित जन को मुग्ध कर दिया था। उनके संबोधन ने पश्चिम में भारत के बारे में एक नए नजरिए को स्थापित किया।
   
इस संबंध में स्वामी अग्निवेश ने भाषा से कहा, विवेकानंद ने तत्कालीन समय में देश के स्वाभिमान को जगाया। विशेषकर देश के नौजवानों को देश की संस्कति और मानवता से जुड़ने की प्रेरणा दी। साथ ही जो पश्चिम हमें बहुत से देवताओं में आस्था रखने वाला मानता था उसे बताया कि हकीकत में ईश्वर एक है और हम सब उसकी बराबर और समान संतानें हैं। इस सिद्धांत के साथ भारत के दर्शन को उन्होंने विश्वपटल पर स्थापित किया।
   
शिकागो में उन्होंने अपने भाषण में हिंदू धर्म को आत्मसात करने वाला बताया था। यहूदियों को उनके देश से निकाले जाने के बाद किस तरह भारत ने उन्हें अपनाया इसका जिक्र भी उन्होंने महासभा में दिए भाषण में किया था। विवेकानंद ने कहा था, ऐसे धर्म का अनुयायी होने पर मैं गर्व का अनुभव करता हूं जिसने महान जरथ्रुष्ट (पारसी धर्मप्रवर्तक) जाति के अंश को शरण दी और जिसका पालन वह आज तक कर रहा है।

शिकागो से भारत लौटने के बाद उन्होंने मानवता की सेवा के लिए 1897 में अपने गुरू रामकष्ण परमहंस के नाम पर रामकष्ण मिशन की स्थापना की और मानवता की सेवा को समाज सेवा का सत्य और ईश्वर की सेवा बताया। आज भी उनका यह संदेश मानवता की भलाई को प्रेरणा दे रहा है।
   
स्वामी अग्निवेश ने बताया, आज स्वामी विवेकानंद की 112वीं पुण्यतिथि पर हमें उनसे मानवता की सीख लेने की जरूरत है। चार वेद और छह दर्शनों में से एक वेदांत के दर्शन को आधार बनाते हुए हमें वसुधैव कुटुंबकम की भावना को साकार करना चाहिए और इसका जिक्र हाल ही में स्वयं देश के प्रधानमंत्री ने भी किया है। उन्होंने कहा कि विवेकानंद के सिद्धांत मानवता की सेवा से जुड़े रहे हैं। इन्हीं सिद्धांतों से शिक्षा लेकर हमें ऐसा समाज रचना चाहिए जहां किसी भी तरह का जन्म, जाति, लिंग अथवा स्थान आधारित भेदभाव न हो।
   
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। 1881 में वह रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आए और बाद में अपने बचपन के नाम नरेंद्रनाथ को त्यागकर विवेकानंद नाम से बैरागी बन गए। उन्होंने वेदांत के दर्शन को जनसाधारण और पश्चिम के देशों तक पहुंचाया।

 

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