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रेलवे में कैसे आएंगे 'अच्छे दिन'

रेलवे के मामले में अच्छे दिन क्या हो सकते हैं। क्या यह कि यथास्थिति बने रहे। रेलवे की दशा सुधारने के लिए धन का अभाव बना रहे। खस्ताहाली बढ़ती रहे। सरकार हाथ पर हाथ धरे औपचारिकता का निर्वाह करती रहे।...

रेलवे में कैसे आएंगे 'अच्छे दिन'
एजेंसीFri, 27 Jun 2014 09:19 AM
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रेलवे के मामले में अच्छे दिन क्या हो सकते हैं। क्या यह कि यथास्थिति बने रहे। रेलवे की दशा सुधारने के लिए धन का अभाव बना रहे। खस्ताहाली बढ़ती रहे। सरकार हाथ पर हाथ धरे औपचारिकता का निर्वाह करती रहे। झूठी उम्मीद दिखाती रहे कि अच्छे दिन आने वाले हैं। निश्चित ही सरकार ऐसा करती तो फिलहाल वह अपनी लोकप्रियता को बनाए रख सकती थी।

रेल किराया व भाड़ा बढ़ाने पर उसके खिलाफ प्रदर्शन नहीं होते। भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर वह खामोश रहती। रेल जैसे चल रही थी वैसे ही चलने देती। जनता को धोखे में रख सकती थी। यह बता सकती थी कि देखो किराया नहीं बढ़ाया। यही अच्छे दिन हैं। उसने संप्रग सरकार के चलते-चलते किए गए बढ़ाेतरी संबंधी निर्णय को पलट दिया।

क्या अच्छे दिन के नाम पर ऐसा किया जा सकता था। सरकार जानती थी कि उसके फैसले से विपक्षी दलों को मौका मिलेगा। वह चर्चा में आने के लिये विरोध प्रदर्शन करेंगे। भले ही इसमें आमजन की सहभागिता न हो। फिर भी विपक्षी पार्टियों के कार्यकर्ता प्रदर्शन करेंगे। सरकार को घेरने का प्रयास करेंगे। अच्छे दिन पर तंज कसेंगे। यही हुआ।

सरकार का निर्णय कड़वी दवा की भांति था। किराये में बढ़ाेतरी सामान्य रूप से किसी को पसंद नहीं आ सकती। सरकार ने एक आरोप तो यही झेला कि उसने सत्ता में आते ही किराया बढ़ा दिया। जबकि वह अच्छे दिन और महंगाई कम करने की बात चुनाव में कर रहे थे। दूसरा आरोप यह था कि पिछली सरकार के निर्णय को लागू किया था। क्या भाजपा पिछली सरकार के निर्णयों को लागू करेगी। यह बात रेल मंत्री सदानंद गौड़ा और रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने स्वयं कही थी।

उनका कहना था कि किराये व मालभाड़े में वृद्धि का निर्णय पिछली सरकार ने किया था। उस समय मल्लिकार्जुन खड़गे रेलमंत्री थे जो आज लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता हैं लेकिन वह निर्णय लागू नहीं किया जा सका था। वर्तमान सरकार ने उसे केवल लागू किया है।

तीसरा आरोप यह था कि जब अगले महीने लोकसभा में रेल बजट पेश होना है, तब इस समय किराया बढ़ाने की क्या जरूरत थी। चौथा आरोप यह था कि भाजपा ने चुनाव में अच्छे दिन लाने का वादा किया था। फिर सत्ता में आने के बाद उसने किराया, भाड़ा क्यों बढ़ाया?

इस संबंध में रेलमंत्री सदानन्द गौड़ा और रेल राज्यमंत्री मनोज सिंह से चूक हुई। बेशक किराया बढ़ाना अपरिहार्य था। किराये में की गई इतनी वृद्धि भी उचित थी। लेकिन सदानंद गौड़ा और मनोज सिन्हा दोनों ने आमजन को संदेश देने या समझाने का प्रयास नहीं किया। गौड़ा ने एकाएक किराये में 14.2 तथा मालभाड़ में 6.5 प्रतिशत वृद्धि की घोषणा कर दी।

सदानंद और मनोज को पहले यह बताना चाहिए था कि वृद्धि करने की आवश्यकता क्या थी। इसके लिए संसद के सत्र का इंतजार क्यों नहीं किया गया। वृद्धि पहले कर दी गई। सदानंद गौड़ा ने वृद्धि की घोषणा के समय कोई बयान नहीं दिया। बाद में बताया गया कि तेल के दामों में कमी होने के बाद किराया घट सकता है।

यह बयान भी विवाद बढ़ने के बाद आया। इसी प्रकार मनोज सिन्हा ने भी प्रदर्शन शुरू होने के बाद बयान दिया। कहा कि रेलवे को प्रतिदिन नौ सौ करोड़ का घाटा हो रहा था। भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन का बयान भी तर्कसंगत नहीं था। उन्होंने कहा कि अभी किराया बढ़ाया है, बजट में अच्छी बात होगी। यदि बात इतनी सी थी तो यह गलत चलन माना जाएगा। बढ़ाेतरी पहले कर दो, बजट में वृद्धि की बात न हो।

वित्तीय मामलों की स्थिति आमजन को अवगत कराना सरकार का दायित्व होता है। बजट पर लोकसभा को अधिक अधिकार देने के पीछे मूल भावना यही थी। लोकसभा के बाहर वित्तीय मामलों के निर्णय की पूरी जानकारी लोक अर्थात जनता को देनी चाहिए थी। सरकार का निर्णय असंवैधानिक नहीं था। आवश्यकता होने पर सरकार संसद सत्र के पहले भी ऐसे निर्णय कर सकती है। लेकिन उसकी पृष्ठभूमि लोगों को बतानी चाहिए थी।

गौड़ा को वृद्धि की घोषणा के पहले उसकी आवश्यकता बतानी चाहिए थी। तब सरकार पर ऐसे हमले न होते। तब विपक्षी दलों के प्रदर्शन बेमानी नजर आते। गौड़ा तो अपना पल्ला झाड़ते नजर आए। उन्होंने कहा कि वह तो केवल पिछली सरकार का फैसला लागू कर रहे थे। उन्होंने आदेश पर लगी रोक हटाई है। उनके इस बयान से विपक्ष को मौका मिला। इसके अलावा बढ़ाेतरी को तत्काल लागू करना चाहिए था। तब यह बताना आसान होता कि फैसले की तत्काल आवश्यकता थी। इस 25 जून से लागू करने का फैसला हुआ।

रेलमंत्री को निर्णय से पहले आम जनता को हकीकत बतानी चाहिए थी। उन्हें बताना चाहिए था कि यह निर्णय न होता तो रेलवे का सालाना खर्च पूरा नहीं हो सकता था। रेलवे प्रतिमाह यात्राी वर्ग में नौ सौ करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा था। इसकी भरपाई के लिये तत्काल बढ़ाेत्तरी लागू करने की आवश्यकता थी। वित्तीय स्थिति सुधारने के लिये ऐसा निर्णय उचित था। यात्राी किरायों में दस प्रतिशत वृद्धि हुई है, जबकि 4.2 प्रतिशत वृद्धि ईंधन समायोजन घटक के तौर पर की गई है।

आम चुनाव में रेलवे को प्रमुख मुद्दों में प्राय: शामिल नहीं किया जाता। लेकिन इस बार नरेंद्र मोदी ने इसे भी मुद्दा बनाया था। अनेक विश्वस्तरीय वादे किए थे। इसके लिये धन की आवश्यकता होगी। जबकि पिछले दस वर्षों से रेलवे राजनीति की शिकार रही।

लालू यादव ने रेलमंत्री के रूप में मुनाफा दिखाने के लिए जो तरीके अपनाए, उससे रेलवे की दशा और जर्जर हो गई थी। इसके बाद किसी ने इसमें सुधार नहीं किया। दिनेश त्रिवेदी ने करना चाहा, तो उनकी पार्टी की प्रमुख ममता बनर्जी ने उन्हंे रेल मंत्रालय छोड़ने को बाध्य कर दिया। लाखों कर्मचारियों के पद खाली रखकर खर्चे में कटौती दिखाई गई।

चालीस प्रतिशत रेलवे की चोरी समस्या है। इसे रोकने के प्रयास नहीं हुए। प्रतिवर्ष छब्बीस हजार करोड़ की सब्सिडी दी जाती है। धन के अभाव में पांच लाख करोड़ रुपये की योजनाएं लटकी हैं।

यह समझना होगा कि अच्छे दिन जादू की छड़ी से नहीं आएंगे। यात्रियों की सुविधा बढ़ाने और सुरक्षा के लिए इस प्रकार के फैसले करना अपरिहार्य है। यह विश्वास किया जा सकता है कि नरेंद्र मोदी की कमान में बढ़े हुए राजस्व का ईमानदारी से जनहित में प्रयोग होगा।

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