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पर्यावरण मंत्रालय में 715 परियोजनाओं को मंजूरी का इंतजार

एनडीए सरकार में वन तथा पर्यावरण मंजूरी देने के लिए ऑनलाइन आवेदन शुरू किए जाने से परियोजनाओं को मंजूरी मिलने की प्रक्रिया तेज हुई है। इसके चलते पिछले सवा साल में तकरीबन दो हजार परियोजनाओं को स्वीकृति...

पर्यावरण मंत्रालय में 715 परियोजनाओं को मंजूरी का इंतजार
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 01 Sep 2015 12:48 PM
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एनडीए सरकार में वन तथा पर्यावरण मंजूरी देने के लिए ऑनलाइन आवेदन शुरू किए जाने से परियोजनाओं को मंजूरी मिलने की प्रक्रिया तेज हुई है। इसके चलते पिछले सवा साल में तकरीबन दो हजार परियोजनाओं को स्वीकृति प्रदान की गई। लेकिन इसके बावजूद अब भी 715  बड़ी परियोजना लंबित हैं। जिसमें सबसे ज्यादा कोयला एवं अन्य खनिजों के खनन से जुड़ी हैं।

वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार वर्ष 2014 और इस साल के पहले सात महीनों में 1393 परियोजनाओं को वन संबंधी मंजूरी दी गई तथा 630 परियोजनाओं को पर्यावरण मंजूरी दी गई। कुल 2023 परियोजनाएं स्वीकृत हुई हैं। यूपीए सरकार की तुलना में मंजूरी देने की प्रक्रिया तेज हुई है। दरअसल, एनडीए सरकार ने सबसे पहले आवेदन की प्रक्रिया ऑनलाइन की है जिससे समय की बचत हो रही है तथा विभिन्न महकमों में जब फाइल जाती है तो अफसरों पर भी जल्दी से जल्दी उसे आगे बढ़ाने का दबाव रहता है क्योंकि फाइलों की ऑनलाइन ट्रैकिंग हो रही है।

इस तेजी के बावजूद मंत्रालय के पास 715 परियोजनाओं की मंजूरी लंबित है। इसमें 240 वन एवं 575 पर्यावरण मंजूरी की हैं। सबसे ज्यादा परियोजनाएं कोयला, खनिजों के खनन संबंधी हैं। इसके अलावा छह नाभिकीय परियोजनाएं भी पर्यावरण मंजूरी का इंतजार कर रही हैं। अन्य में 22 नदी जल विद्यु तपरियोजनाएं, आठ ताप बिजली परियोजना, 102 तटीय जोन तथा अन्य उद्योग धंधों से जुड़ी हैं। ज्यादातर परियोजनाएं झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और तटीय राज्यों की हैं।

ये नई पहलें रही कारगर
- मंजूरी के लिए ऑनलाइन आवेदन जिससे समय कम लग रहा है
- सीमा के सौ किमी हवाई दायरे में परियोजनाओं का तय मानकों पर सामान्य अनुमोदन
- नक्सल प्रभावित 117 जिलों में पांच हेक्टेयर तक की परियोजनाओं को तय मानकों के तहत सामान्य वन मंजूरी
- विद्युत लाइनों की परियोजनाओं को प्रतिपूर्ति वनीकरण के प्रावधानों से छूट दी गई जबकि पहले सिर्फ 220 केवी की लाइनों तक ही यह छूट थी।
- 40 हेक्टेयर तक की वन भूमि परिर्वतन के मामले (खनन को छोड़कर) क्षेत्रीय कार्यालयों को सौंपे गए। इन मामलों में केंद्र में फाइल भेजने की जरूरत नहीं
- दस साल पुराने खनन मामलों में दोबारा केंद्र की अनुमति की जरूरत नहीं। राज्य सरकारें शर्तो के साथ ही उन्हें मंजूरी देने में सक्षम

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