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नेपाल में आए भूकंप का कारण कहीं ये तो नहीं?

हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक ब्रह्मा पैदा करने वाले, विष्णु पालन करने वाले और शिव नष्ट करने वाले हैं। माना जाता है कि शिव जब अपना तीसरा नेत्र खोलते हैं तो तबाही आती है। भूकंप की तस्वीरें देख कर...

नेपाल में आए भूकंप का कारण कहीं ये तो नहीं?
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 27 Apr 2015 02:49 PM
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हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक ब्रह्मा पैदा करने वाले, विष्णु पालन करने वाले और शिव नष्ट करने वाले हैं। माना जाता है कि शिव जब अपना तीसरा नेत्र खोलते हैं तो तबाही आती है। भूकंप की तस्वीरें देख कर यही महसूस हो रहा है जैसे पशुपतिनाथ शिव ने अपना तीसरा नेत्र खोला हो और पूरा इलाका ही मानो शमशान बन गया।

नेपाल में दो हजार से ज्यादा और भारत में करीब 50 लोग मर चुके हैं, हजारों जख्मी हैं। मौत के इस सन्नाटे की गूंज पूरी दुनिया में है, लोग खौफ में हैं, दहशत में हैं और जीने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं।

सुना और पढा तो था कि शिव शमशान में रहते हैं, अकेले और सन्नाटे में रहना पसंद करते हैं, इसलिए वो हिमालय पर रहते थे और कैलाश पर स्थाई निवास बना लिया था। इंसानों ने शायद उनकी तपस्या भंग की, उनकी तपस्या में खलल डाला, जब उनकी आंखें खुली होंगी तो उन्होंने अपने आस पर भीड़ देखी होगी, मेला देखा होगा और शायद उनको गुस्सा आया हो।

या फिर शायद इंसान की और किसी गलती पर शमशान में रहने वाले शिव को इतना क्रोध आया होगा कि उन्होंने तांडव किया और चारों ओर सिर्फ मौत ही मौत दिखाई दी। लेकिन इंसान से ऐसी कौन सी गलती हुई कि शिव रुष्ट हो गए। गौर से सोचें तो पता चलता है कि इंसान गलती करता है और लगातार करता है, पछताता भी नहीं।

हमने पहाडों का सीना भेद सुरंगे बनाईं, जंगल काट दिए, नदियों के रास्ते मोड़ दिए। हम इंसानों ने अपने को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए या फिर अपनी सहूलियतों के लिए ऐसा किया। हमने इस बात कि कतई चिंता नहीं की कि हम अतिक्रमण कर रहे हैं।

हमने अतिक्रमण किया नदियों पर, जंगलों पर, पहाड़ों पर और हमें डर नहीं लगा। हमने सोचा कि भगवान हमें नहीं देख रहा, हमने उसके देखने की चिंता भी नहीं की। हमने प्राकृतिक संपदाओं और प्रकृति को बेदर्दी से लूटा।

प्रकृति ने यूं तो पहले भी अपनी ताकत का एहसास मनुष्य को कराया लेकिन मनुष्य ने इसकी चिन्ता ही नहीं की। केदारनाथ हादसे के वक्त भी बांध दी जाने वाली नदियों ने मनुष्य को अपनी ताकत का एहसास कराया। जिन नदियों को हम मृतप्राय बताते हैं और कहते हैं कि अब इसके आस्तित्व पर संकट है, उसने साबित कर दिया कि संकट किसके आस्तित्व पर है।

मानव कितना भी शक्तिशाली हो जाए लेकिन एक शक्ति के सामने वो हमेशा शक्तिहीन ही रहेगा। उसी शक्ति के सामने जिसने देवता, दानवों और इंसानों को बनाया। इंसान भूल गया कि वो सर्वशक्तिमान नहीं है, उसने चुनौती देना शुरू किया उस शक्ति को जिसने उसे बनाया।

हिंदू धर्म में माना जाता है कि मनुष्य का शरीर पंचतत्वों (आकाश, वायु, जल, अग्नि, पृथ्वी) से मिलकर बना है। मानव ने उस शक्ति को न सिर्फ चुनौती दी बल्कि उसके खिलाफ काम करना भी शुरू कर दिया। मानव ने प्रकृति के तमाम कानून तोड़े, तमाम चेतावनियों को नज़र अंदाज़ किया और एक नई कुदरत की रचना करने की कोशिश की। इंसान ने पहाड़ों को खोखला कर दिया, नदियों का पानी रोक दिया, जंगलों का सफाया कर दिया, और फिर आखिरकार इंसान को उसकी इस गलती का सिला मिल गया।

हिमालय पर अब संजीवनी नहीं मिलती, रुद्राक्ष भी फर्जी मिलते हैं, येति के बारे में तो सिर्फ कल्पना ही की जाती है। हम सब कुछ खत्म कर रहे हैं। प्रदूषण से, अतिक्रमण से। हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया होता है। हमने जो प्रकृति के साथ किया वही प्रकृति ने हमारे साथ किया।

आखें बंद कर अपने भीतर झांकिए। जिस चीज़ का जन्म होता है उसकी मृत्यु भी निश्चित है। रात के बाद सुबह, सुबह के बाद रात। जन्म के बाद मृत्यु, मृत्यु के बाद जन्म। प्रकृति सबसे बड़ी शक्ति है, उसी ने हमें बनाया है, उसी ने देवताओं और दानवों को रचा है। वही सबकी मां और पिता है। उसकी इज्जत कीजिए, उससे मत लड़िए।

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