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जीत-हार का वाकई भारत पर कोई फर्क पड़ता है...?

भारतीय क्रिकेट टीम इंग्लैंड से पांच टेस्ट मैचों की श्रृंखला गंवाकर आए या ड्रॉ कराकर लौटे, वास्तव में इससे भारतीय क्रिकेट के भविष्य पर कुछ खास फर्क नहीं पड़ने वाला। चार वर्षों के बाद हम फिर से इंग्लैंड...

जीत-हार का वाकई भारत पर कोई फर्क पड़ता है...?
एजेंसीFri, 15 Aug 2014 10:51 AM
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भारतीय क्रिकेट टीम इंग्लैंड से पांच टेस्ट मैचों की श्रृंखला गंवाकर आए या ड्रॉ कराकर लौटे, वास्तव में इससे भारतीय क्रिकेट के भविष्य पर कुछ खास फर्क नहीं पड़ने वाला। चार वर्षों के बाद हम फिर से इंग्लैंड में एक और पांच टेस्ट मैचों की श्रृंखला खेल रहे होंगे।

वास्तव में विश्व क्रिकेट में यह ताकत भारत ने अपनी अपार आर्थिक शक्ति के बल पर हासिल की है। भारत पिछले 55 वर्षों से इंग्लैंड में पांच टेस्ट मैचों की श्रृंखला खेलता आ रहा है और अब तक भारत सारी श्रृंखलाएं बुरी तरह हारता आया है। मौजूदा सीरीज में इंग्लैंड ने मैनचेस्टर और ओल्ड ट्राफोर्ड में लगातार दो मैचों में भारत को बुरी तरह हराकर सीरीज में अजेय बढ़त हासिल कर ली है।

भारत की 1952 या 1959 में इंग्लैंड का दौरा करने वाली टीम यदि मौजूदा दौरे पर रक्षात्मक रवैये के साथ उतरती तो वह भी लॉर्डस टेस्ट जरूर जीत लेती। दूसरी ओर इंग्लैंड की मौजूदा टीम निश्चित तौर पर 50 के दशक की टीम से कमजोर मानी जाएगी। इसके बावजूद वे आसानी से लगातार दो मैच जीत लेते हैं।

लॉर्डस टेस्ट से एक बात स्पष्ट हो चुकी है कि भारतीय गेंदबाज किसी भी अन्य इंग्लिश गेंदबाज की तरह इंग्लिश वातावरण में स्विंग और उछाल प्राप्त करने की क्षमता रखते हैं। लेकिन लॉर्डस टेस्ट के बाद अचानक सारे बल्लेबाज अपनी जिम्मेदारियों से भागते नजर आए।

भारतीय टीम को मौजूदा टेस्ट में निश्चित तौर पर दो मैचों के बीच दोस्ताना मैच खेलने का मौका नहीं मिला, जिससे कि वे अपने अतिरिक्त खिलाडियों को आंक सकते। हर सीरीज में भारत के लिए कुछ गिनती के खिलाड़ी ही निजी तौर पर शानदार प्रदर्शन करते नजर आते हैं और ऐसा ही कुछ इस सीरीज में भी देखने को मिला। हालांकि भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धौनी पूर्व कप्तानों की भांति अनर्गल बहाने बनाते नजर नहीं आए।

लगातार खराब प्रदर्शन कर रही टीम को बेहतर प्रदर्शन की और ले जाने का कारनामा बहुत कम कप्तान कर पाते हैं और धौनी भी इसमें अपवाद नहीं बन सके। दूसरी ओर सीरीज में 1-0 से पिछड़ने के बाद इंग्लिश कप्तान एलिस्टर कुक ने यह कारनामा कर दिखाया।

टेस्ट मैचों में पूर्वाभ्यास का क्या महत्व होता है, भारतीय टीम को देखकर समझा जा सकता है। लंबे अर्से के बाद वापसी करने वाले बल्लेबाज गौतम गंभीर इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में जिन शॉट्स पर विकेट के पीछे बाउंड्री पा रहे थे, वही शॉट यहां उन्हें पवेलियन भेजने के लिए काफी रहे।

दो महीने से किसी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में न खेलने वाले गंभीर की अपेक्षा निश्चित तौर पर रोहित शर्मा को बुलाना शायद धौनी के लिए फायदे वाला हो सकता था। भारत के भविष्य के कप्तान के तौर पर देखे जा रहे विराट कोहली और चेतेश्वर पुजारा से काफी उम्मीदें थीं, लेकिन दोनों ही बल्लेबाजों ने काफी निराश किया।

सबसे आश्चर्यजनक रहा स्पिन खेलने में महारथी समझी जाने वाली भारतीय टीम का मोइन अली जैसे पार्ट टाइम स्पिन गेंदबाज के आगे घुटने टेक बैठना। दूसरी ओर भारतीय गेंदबाजों ने अपनी बल्लेबाजी से विशेषज्ञ बल्लेबाजों को कड़वा सबक दिया है। सिर्फ अजिंक्य रहाणे ने थोड़ा संघर्ष करने का जज्बा दिखाया है।

खिलाडियों के चयन सहित कई फैसलों को लेकर कप्तान धौनी के निर्णयों पर भी सवाल उठे हैं। इन सबके बावजूद भारतीय टीम के लिए सबकुछ खत्म नहीं हुआ है। जो टीम लॉर्डस में जीत हासिल कर सकती है, वही द ओवल में भी जीत सकती है। बस जरूरत है विदेशी धरती पर बीते प्रदर्शन का दबाव अपने दिमाग से निकाला जाए।

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