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हिन्दुस्तान विशेष: पढ़िए रेल बजट पर विशेषज्ञों की राय

रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने गुरुवार को अनोखा बजट पेश किया। ऐसा बजट कि जिसमें न तो बढ़ा किराया था और न कोई नई ट्रेन। हैरत तो यह है कि प्रभु की लीला में बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे उन राज्यों के लिए भी कुछ...

हिन्दुस्तान विशेष: पढ़िए रेल बजट पर विशेषज्ञों की राय
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 27 Feb 2015 01:01 PM
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रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने गुरुवार को अनोखा बजट पेश किया। ऐसा बजट कि जिसमें न तो बढ़ा किराया था और न कोई नई ट्रेन। हैरत तो यह है कि प्रभु की लीला में बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे उन राज्यों के लिए भी कुछ नहीं था, जहां चुनाव होने हैं। रेलवे को हाईटेक बनाने की तमाम घोषणाएं जरूर थीं लेकिन लोकलुभावने फैसले नदारद थे। हां! सुविधा सुरक्षा, स्पीड और सफाई के लिए घोषणाओं की फेहरिस्त जरूर लंबी थी। कुल मिलाकर एक ऐसा बजट जिसने जानकारों को भी हैरत में डाल दिया।

बजट कम और विजन ज्यादा
विवेक सहाय, पूर्व अध्यक्ष, रेलवे बोर्ड
रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने पेश तो रेल बजट किया है लेकिन यह बजट कम और विजन ज्यादा प्रतीत होता है। फिर भी इसे एक अच्छे प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए। बजट के साथ विजन पेश करने की मनाही नहीं है, लेकिन इसे कुछ और बेहतर किया जा सकता था। रेल मंत्री इसमें कुछ स्पष्टता ला सकते थे। नई ट्रेन, नई परियोजनाओं की घोषणा करने से सरकार बची है। अच्छा ही है कि तात्कालिक लोकप्रियता हासिल करने से तो बेहतर है कि सरकार पहले ठोस बुनियाद तैयार करे। इसलिए यह भी ठीक है। लेकिन संसाधन जुटाने के लिए कुछ उपाय कर सकते थे।

यात्री किराये में थोड़ी बढ़ोतरी करने से सरकार को घबराने की जरूरत नहीं थी। आजकल लोग इतना अर्थशास्त्र समझते हैं। दूसरे, रेलवे के राजस्व का मुख्य जरिया मालभाड़ा होता है। लेकिन मालभाड़े में जरूरत के मुताबिक बढ़ोतरी नहीं की गई है। मेरा मानना है कि मालभाड़े की वृद्धि दर को बढ़ाए जाने की जरूरत है, क्योंकि रेलवे को अपनी बाजार हिस्सेदारी बढ़ाना है। दरअसल, काफी समय से मालभाड़े से होने वाली आय की वृद्धि दर साढ़े चार फीसदी के आसपास स्थिर है। इसे कम से कम आठ फीसदी तक ले जाने की जरूरत है। यूरिया आदि जरूरी सामानों के भाड़े को छोड़कर बाकी वस्तुओं के भाड़े में बढ़ोतरी करके इस वृद्धि को और बढ़ाया जा सकता था।

बजट को लेकर दो बातों में स्पष्टता नहीं आ रही है। यह ठीक है कि सरकार ने नई रेल परियोजनाओं को मंजूरी नहीं दी है, लेकिन पहले से लंबित साढ़े तीन सौ परियोजनाओं के लिए आवंटन बढ़ाने का ऐलान भी रेलमंत्री ने नहीं किया है। इसलिए क्या गारंटी है कि लंबित परियोजनाओं को जल्द पूरा किया जाएगा? इस बाबत स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए। नई ट्रेनें बिल्कुल शुरू नहीं करना भी समझ से परे है। यह ठीक है कि सबकुछ राजनीतिक वाहवाही के लिए नहीं होना चाहिए। लेकिन रेलवे की फैक्टरियों में हर साल साढ़े तीन सौ डिब्बे बनकर तैयार होते हैं। जो नई ट्रेनों में खप जाते थे।

रेलमंत्री ने लाइन क्षमता की समीक्षा की बात कही है। यह समीक्षा पहले भी हो सकती थी। इस बार के बजट में घोषित की गई नई तकनीकों और वाई-फाई जैसी योजानाएं आकर्षक हैं। ये आज के वक्त की जरूरत भी हैं। यही कह सकते हैं रेलवे वक्त के साथ चल रहा है। उम्मीद है कि आने वाले समय में इसमें और सुधार होंगे और यात्रियों का सफर पहले के मुकाबले काफी आरामदायक होगा।

उत्साह नहीं जगाता प्रभु का बजट
पवन बंसल, पूर्व रेल मंत्री
भाजपा सरकार की तरफ से पेश किया गया है यह रेल बजट औसत दर्जे का है और किसी भी तरह से इससे यह जाहिर नहीं होता कि यह अच्छे दिनों की शुरुआत है। बजट में कुछ भी नया नहीं है। भले ही केंद्रीय रेल मंत्री सुरेश प्रभु यह दावा करते हैं कि यह बजट गरीबी को दूर करेगा और रोजगार के नए अवसर पैदा करेगा, लेकिन सच्चई में यह बिल्कुल ही उलट बजट है। इसमें किसी तरह का उत्साह पैदा नहीं होता है। उन्होंने जनता को कुछ भी नया नहीं दिया है और बहुत ही चतुराई से नए ट्रेनों या और नई घोषणाओं से भी बचकर निकल गए हैं। ऐसा लगता है कि बजट को आधा अधूरा पेश किया गया है और बाकी के हिस्से अभी बाकी है।

इस सरकार ने बजट में कुछ भी नया नहीं दिया है। यदि केंद्रीय मंत्री बजट में किराये को नहीं बढ़ाने को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं, तो उनका यह बयान गुमराह करने वाला है, क्योंकि यह बात बहुत पहले ही तय हो गई थी कि किराये को भविष्य में फ्यूल कंपोनेंट के साथ जोड़ा जाएगा। हर छह महीने के बाद समीक्षा होगी और यदि डीजल के रेट बढ़ते हैं, तो किराये को बढ़ा दिया जाएगा। यदि दाम कम होते हैं, तो इसका फायदा जनता को किराये में कमी लाकर दिया जाएगा। लेकिन असल में हुआ इसके उलट है। पिछले साल जब डीजल के दाम बढ़े, तो इसी सरकार ने किराये को 14 फीसदी बढ़ा दिया। लेकिन पिछले नौ महीने में कई बार डीजल के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार में कम हुए पर जनता को इसका फायदा नहीं दिया गया।

यह बजट बेहतर भविष्य की भी आस नहीं जगाता है। न तो अलग से डेडिकेटेड कॉरीडोर के बारे में कुछ बात कही गई है और न ही बुलेट ट्रेन के बारे में है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाने का फैसला सही है, लेकिन उनकी सुरक्षा के कई और आधुनिक इंतजाम किए जा सकते थे। हेल्पलाइन नंबर, सफाई व्यवस्था के इंतजाम और स्टेशनों के रख रखाव में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी)का प्रयोग सकारात्मक कदम है, लेकिन खाने की गुण्वत्ता को किस तरह से सुनिश्चित करेंगे इसके बारे में पुख्ता इंतजामों के बारे में नहीं बताया गया है।

बजट में वित्तीय संसाधन जुटाने के बारे में विस्तार से नहीं बताया गया है। दो महीने के बजाए अब सीटों की अग्रिम बुकिंग पहले की तरह से चार महीने करने का फैसला भी ठीक नहीं हैं। उन्होंने इस समय सीमा को इसलिए कम किया था क्योंकि उन्हें फीडबैक यह मिला था कि दलाल पहले ही बड़ी संख्या में टिक टों को बुक करा लेते हैं और फिर कालाबाजारी करते हैं। लेकिन इस फैसले को पलटने के पीछे के कारण समझ में नहीं आते।

जनता को ‘अच्छे दिनों’ का अहसास नहीं करा पाए
दिनेश त्रिवेदी, पूर्व रेल मंत्री
रेल मंत्री सुरेश प्रभु से काफी उम्मीदें थी। पर उन्होंने सभी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी के बाद उम्मीद जगी थी कि रेल मंत्री रेल किराये में कमी को ऐलान करेंगे। उनके पास जनता को ‘अच्छे दिन’ का अहसास कराने का मौका था। पर ‘प्रभु’ ने आर्शिवाद नहीं दिया।यह कोई बजट नहीं है। सपने और ख्याली पुलाव है। रेल मंत्री ने पूरे बजट में यह नही बताया कि यह ख्याली पुलाव कब तक प्लेट में आएंगे या यूं कहे कि हकीकत बनेंगे। उनका पूरा फोकस शौचालय और सफाई पर रहा। साफ-सफाई अच्छी बात है, पर यह रेलवे की जिम्मेदारी है।

ट्रेन सेट एक अच्छा विचार है। ट्रेन सेट में जल्द ब्रेक लगाए जा सकते और वह जल्द स्पीड पकड़ सकती है। इससे एक्सिडेंट में भी कमी आएंगे। पर ट्रेन सेट काफी मंहगी है, बजट में यह नहीं बताया कि इसके लिए पैसा कहां आएगा। यह विचार कब तक हकीकत में बदल जाएगा। जहां तक बुलेट ट्रेन की बात है, इसे हकीकत में बदलना आसान नहीं है। पहली बात यह कि इसको तैयार करने पर तीन करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर का खर्च आएगा। यदि व्यावहारिकता अध्यन पूरा हो गया, तब भी तीन साल टेंडर आदि की प्रक्रिया पूरी और सात साल बनने में लगेंगे।

रेल मंत्री ने किराये में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं किया। उन्हें यात्री किराये के साथ माल भाड़े में कटौती करनी चाहिए थी। क्योंकि, पेट्रोल-डीजल के दाम कम होने से सड़क से माल भेजना सस्ता हुआ है। ऐसे में लोग रेलवे के बजाए ट्रकों से माल भेजना ज्यादा पसंद करेंगे।कुल मिलाकर इस बजट को बजट नहीं कहा जा सकता। क्योंकि, बजट में आंकड़े, कुछ वादे और भविष्य की रणनीति का खाका होता है। अफसोस की बात है कि इस बजट में विचार और सपनों के अलावा कुछ नहीं है। विचार और सपनों को बजट नहीं कहा जा सकता।

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