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प्लास्टिक वेस्ट से बने ईंधन से चलेगी रेल

भारतीय रेलवे अपनी ईंधन की जरूरतों को प्लास्टिक वेस्ट से बने ईंधन (डीजल) के जरिये पूरा करेगा। इसके लिये वह देश में तीन स्थानों पर बड़े प्लांट लगाने की योजना पर काम कर रहा है। खास बात ये है कि ईंधन...

प्लास्टिक वेस्ट से बने ईंधन से चलेगी रेल
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 17 Apr 2015 10:39 PM
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भारतीय रेलवे अपनी ईंधन की जरूरतों को प्लास्टिक वेस्ट से बने ईंधन (डीजल) के जरिये पूरा करेगा। इसके लिये वह देश में तीन स्थानों पर बड़े प्लांट लगाने की योजना पर काम कर रहा है। खास बात ये है कि ईंधन बनाने की ये तकनीक दून के सीएसआईआर-आईआईपी(वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद-इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ पेट्रोलियम)के वैज्ञानिकों ने करीब नौ साल की मेहनत से तैयार की है।

आईआईपी में इसकी घोषणा करते हुये केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री और उपाध्यक्ष सीएसआईआर डॉ. हर्षवर्धन ने वैकल्पिक ईंधन स्रोत के अवसर और अधिक दोहन का खाका प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि हाइड्रोकार्बन के क्षेत्र में देश के अग्रणी अनुसंधान संस्थान ने जीवाश्म ईंधन पर राष्ट्र निर्भरता को कम करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। उन्होंने बताया कि प्रदूषण व प्लास्टिक के अत्याधिक इस्तेमाल के विरोध में उन्होंने एक समय में दिल्ली की सडम्कों पर व्यापक अभियान चलाया था। लिहाजा उन्हें ये खुशी है कि नये ईंधन की घोषणा उनकी ओर से हुई हैं। इस ईंधन का प्रयोग देश को प्लास्टिक कचरे से मुक्ति तो दिलायेगा ही, प्रदूषण की मात्रा में भी कमी आयेगी। इससे देश को आर्थिक फायदा होगा। इससे पहले उन्होंने एडवांस ट्राइबॉलॉजी रिसर्च सेंटर का उद्घाटन किया और कहा कि आईआईपी के 55 साल के कार्यों पर देश को गर्व है।

मौके पर आईआईपी के निदेशक डा.एमओ गर्ग, वरिष्ठ वैज्ञानिक डा.एसके शर्मा, डा. श्रीकांत मधुसूदन नानूप्ती, डा. सुदीप कुमार, डा.सनेत कुमार, यूकॉस्ट महानिदेशक डा.राजेन्द्र डोभाल, डा. उमेश चमोला, शैलेश और आईआईपी के वैज्ञानिक भी मौजूद थे।

नये युग की ओर बढ़ा कदम

विश्व के सबसे बड़े नेटवर्क वाले भारतीय रेल में इस प्रौद्योगिकी को अपनाने से ईंधन के नये युग का सूत्रपात होगा। रेलवे इस नये ऊर्जा स्रोत को अपनाने के लिये तैयार है और संभवत: नई दिल्ली या कानपुर में पहला प्लांट डेमो यूनिट के रूप में बनेगा। इस बार के रेलवे बजट में इसकी अलग से व्यवस्था की गई है। गेल (गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया) ने प्रोजेक्ट में सहयोग दिया है।

ऐसे बनता है ईंधन
आईआईपी के वैज्ञानिक एक टन टूटी प्लास्टिक की बाल्टी, मग, टूथपेस्ट की टय़ूब, शीशियों के ढक्कन और अन्य पॉलीऑलोफिन उत्पाद को 850 लीटर स्वच्छतम श्रेणी के डीजल में बदलने में कामयाब रहे। ईंधन को बनाने के लिये वातावरण को गर्म करते हैं पर उत्पाद को हवा के सम्पर्क से दूर रखा जाता है। इसके लिये परिसर में ही एक छोटा सा प्लांट लगाया गया है। विज्ञानियों को उम्मीद है कि जो प्लास्टिक कचरा अब तक आंखों को चुभ रहा था, वह अब संसाधन के रूप में देखा जायेगा।

पहले बना चुके जेट्रोफा से जेट ईंधन
सीएसआईआर-आईआईपी इससे पहले सूखा प्रतिरोधी माने जाने वाले जेट्रोफा के पौधे से कम कार्बन वाला जेट ईंधन बना चुका है।

बड़े पैमाने पर उत्पादन से पता चलेगी लागत
डीजल का नया स्वरूप सामान्य प्रचरित ईंधन से कितना महंगा या सस्ता होगा, इसका आकलन तभी संभव होगा जब यह व्यवसायिक रूप से उत्पादित होगा। डीजल इंजनों पर किये गये प्रयोग में यह सामान्य डीजल के मुकाबले अधिक शक्तिशाली साबित हुआ है। चूंकि यह प्लास्टिक वेस्ट से तैयार होता है, इसलिये डीजल का सारा खर्च इस कचरे की उपलब्धता पर निर्भर है। 

इनसे बनेगा ईंधन
प्लास्टिक की बाल्टी, प्लास्टिक कप, ढक्कन, पॉलीथिन कैरी बैग आदि से ईंधन बनेगा। हालांकि कोल्ड ड्रिंक की प्लास्टिक बॉटल और पीवीसी पाइप ईंधन बनाने में इस्तेमाल नहीं हो पाएंगी।

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