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चेते नहीं तो बूंद-बूंद को तरस जाएंगे

हने को पूरी धरती में तीन चौथाई हिस्सा जल है, लेकिन दिक्कत यह है कि इस विशाल जल भंडार में से महा तीन फीसदी ही उपयोगी है। तपती धरती में जल संकट विकराल रूप धारण करने जा रहा है। भविष्य में यह संकट इतना...

 चेते नहीं तो बूंद-बूंद को तरस जाएंगे
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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हने को पूरी धरती में तीन चौथाई हिस्सा जल है, लेकिन दिक्कत यह है कि इस विशाल जल भंडार में से महा तीन फीसदी ही उपयोगी है। तपती धरती में जल संकट विकराल रूप धारण करने जा रहा है। भविष्य में यह संकट इतना भयावह होगा कि धरती के समूचे आम जन-ाीवन पर इसका असर दिखेगा। हैरानी व चिंता की बात ये है कि इतना अहम मुद्दा भी राजनैतिक दलों के एजेंडे व नेताओं की जुबान से पूरी तरह गायब है। इस मामले में पॉपुलर एजुकेशन एंड एक्शन सेंटर के निदेशक अनिल चौधरी कुछ अलग ही राय रखते हैं। वह कहते हैं, ‘हमार देश में प्यासे को पानी पिलाना आज भी पुण्य का काम माना जाता है। यानी पानी को लेकर व्यवस्था हमेशा सार्वजनिक तौर पर परान हिताय की रही है, लेकिन इसके विपरीत अब इस देश में प्यासे को बोतल में पानी बेचने के व्यापार की नई विडंबना साकार हो रही है।’ उनके मुताबिक जब गांव की नदियों व शहरों में पानी की व्यवस्था करने के नाम पर ठेके उठने लगे हैं तो जनता के पास संघर्ष के अलावा रास्ता ही क्या बचा है? जीन कैम्पैन की निदेशक डॉ सुमन सहाय धरती से जुड़ी इस चिंता के विभिन्न आयामों से चर्चा करते हुए कहती हैं कि ग्लोबल वार्मिग के कारण पानी का संकट दिनों दिन गंभीर रूप धारण कर रहा है। आलम यह है कि किसानों के प्यासे खेत आज भी पूरी तरह से बारिश पर निर्भर हैं। वह कहती हैं, ‘हमार यहां एक मानसून फेल कर जाए तो भयंकर संकट खड़ा हो जाएगा। हम यूरोप नहीं हैं, जहां साल भर पानी बरसता है। हमार यहां पानी के स्रेतों का ठीक ढंग से रखरखाव न किए जाने से संकट गंभीर हुआ है।’ ग्रीन लाइफ के संपादक जव विशेषज्ञ डॉ जी एस रावार इस मामले को अलग तरीके से देखते हुए कहते हैं कि पानी प्रकृति की देन है और वह इंसान की भलाई के काम न आई तो बेकार है । वे कहते हैं कि हमें जल्द से जल्द जागरूक होना पड़ेगा।ं

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