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काले धन के मकड़चााल में उलझी सरकार

विदेशी बैंकों में जमा काले धन की वापसी को लेकर भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी और कांग्रेसी नेताओं के बीच चल रही राजनीतिक उठापटक के बावजूद आने वाले दिनों में स्थिति में बहुत बदलाव...

 काले धन के मकड़चााल में उलझी सरकार
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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विदेशी बैंकों में जमा काले धन की वापसी को लेकर भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी और कांग्रेसी नेताओं के बीच चल रही राजनीतिक उठापटक के बावजूद आने वाले दिनों में स्थिति में बहुत बदलाव नामुमकिन नजर आ रहा है। वैसे इस बीच सरकार ने विभिन्न देशों के साथ टैक्स संधियों में बदलाव के जरिए काले धन के विदेश जाने और मुनाफाखोर कंपनियों पर लगाम लगाने की कवायद शुरू कर दी है। लेकिन माना जा रहा है कि मौजूदा समय में विदेशी बैंकों में जमा काले धन का पता लगा पाना काफी असंभव है। यहां तक आडवाणी खुद पीएम भी बन गये तो काले धन के कारोबार में लिप्त महारथी अपने घपले का रास्ता जरूर निकाल लेंगे। सरकार द्विपक्षीय स्तर पर किसी भी संधि के जरिए सूचना के आदान-प्रदान के प्रावधान के तहत विदेशी बैंकों में खाताधारियों के नाम मांग सकती है। लेकिन अभी तक तकनीकी उलझनों के चलते ऐसा संभव नहीं हुआ। वहीं खाताधारियों के पास फर्ाी नामों के आधार पर खाता खोलने और कंट्री ऑफ ओरिािन यानी मूल देश भारत के अलावा कोई और दर्शाने का विकल्प खुला है। उदाहरण के तौर पर भारतीय नागरिक मारिशस की कंपनी या उसके किसी अधिकारी के नाम विदेश में पैसा जमा कर सकता है। हवाला के जरिए वह अन्य ऐसे ही देशों का चुनाव कर सकता है। अभी भी बहुत से खाते ऐसे ही होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। इस बीच सरकार ने दोहर टैक्स से बचाव के सिलसिले में हो रही द्विपक्षीय टैक्स संधियों में ऐसे प्रावधान शामिल करने शुरू किये हैं जिनके जरिए घपलेबाज कंपनियां या नागरिक नाजायज फायदा न उठा सकें। इसे एंटी एब्यूज प्रावधान कहा जा रहा है। लेकिन चिंताजनक बात यह है कि मारिशस ने ऐसी टैक्स संधि में ऐसे प्रावधान को शामिल करने संबंधी भारत के प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया है। उसके मुताबिक यह द्विपक्षीय संधि टैक्स एवायडेंस की अनुमति देती है, टैक्स इवैजन यानी टैक्स चोरी की नहीं। अभी तक संधि में टैक्स चोरी का कोई मामला सामने ही नहीं आया है। भारत सरकार चाहे तो संप्रभु अधिकारों का उपयोग करते हुये संधि को समाप्त कर सकती है। लेकिन मामला विदेशी निवेश यानी एफडीआई और मुनाफाखोर कंपनियों के बीच संतुलन को लेकर बुरी तरह से उलझ गया है। मौजूदा समय में देश में आ रहे कुल एफडीआई का आधा से ज्यादा मारिशस के रास्ते आ रहा है। दूसरी ओर राजस्व विभाग ऐसी कंपनियों को भी पसंद नहीं कर रहा है जो यहां पोर्टफोलियो अथवा एफडीआई निवेश के जरिए सिर्फ मुनाफा कमायें कमायें और टैक्स अदा किये बगैर पूरा मुनाफा विदेश भेज दें जिसकी अनुमति ऐसी संधि में है ही। ऐसी किसी भी कंपनी के पास एसईोड में निवेश करने के साथ ही सीधे सीधे मुनाफा कमाने के अलावा अपनी इक्िवटी बेचने का भी रास्ता खुला है।

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