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बेफिक्र सरकार, बेबस लोग

सिस्टम ध्वस्त, धधक रही भूख, जमाखोरों की चांदी, आम उपयोग की वस्तुओं की कीमतें जेब से बाहर, पर लगातार गिरता महंगाई का सरकारी ग्राफ। यह झारखंड का मजाक है। गरीबों का निवाला छिन रहा है, पिछले एक महीने से...

 बेफिक्र सरकार, बेबस लोग
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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सिस्टम ध्वस्त, धधक रही भूख, जमाखोरों की चांदी, आम उपयोग की वस्तुओं की कीमतें जेब से बाहर, पर लगातार गिरता महंगाई का सरकारी ग्राफ। यह झारखंड का मजाक है। गरीबों का निवाला छिन रहा है, पिछले एक महीने से कभी बंदी, तो कभी बढ़ती कीमतों से हाशिए पर खड़ा आम आदमी को कुछ सूझ नहीं रहा-क्या करं। और सरकार, प्रशासन व नेता? उनका क्या, इधर महीने भर से वे लोकसत्ता की लड़ाई में गला फाड़-फाड़ कर जनता को अपने पक्ष में करने के लिए गांव-गिरांव की धूल फांक रहे थे, पर आठ सालों में इन्होंने क्या किया? सिर्फ अपना हितसाधन। ये कान में तेल डाल सोये रहे, इनके पास न विजन है, न कुछ करने की इच्छा। ये मिट्टी के माधो हैं। ये गरीबों के दुश्मन हैं।ड्ढr 3 से 11 रु तक चढ़ीं कीमतेंड्ढr महंगाई का आलम यह है कि आम जरूरत की चीजें जसे नमक, सरसों तेल, चीनी, आलू, दाल और आटे की कीमतें तीन से 11 रुपये तक बढ़ गयी हैं। गरीब उपभोक्ता 25 से 30 रुपये लीटर केरोसिन खरीद रहे हैं। राज्य को मिलनेवाले केरोसिन के कोटे का 70 फीसदी से ज्यादा कालाबाजारियों के हत्थे चढ़ जाता है। ये कालाबाजारी प्रतिमाह केरोसिन से लगभग 34 करोड़ रुपये कमा रहे हैं।ड्ढr प्राइस कंट्रोल की कोई अथॉरिटी नहींड्ढr संपन्न लोगों को इसका एहसास शायद न हो, क्योंकि वे अपने महंगे डिनर में जितना जूठन छोड़ते हैं, उससे हाारों गरीबों का पेट भर सकता है। पर गरीब और मध्यम वर्ग के लोग क्या करं। दो जून की रोटी के लिए सुबह से रात तक हाड़ तोड़ने के बाद सामान खरीदने के लिए उनका जेब हल्का पड़ जाता है। उनके बच्चे बिलट रहे हैं। उनकी पढ़ाई छूट रही है। कैसे कहें- झारखंड में लोक कल्याणकारी सरकार चल रही है। यहां प्राइस कंट्रोल की कोई अथॉरिटी काम नहीं करती, नतीजतन कालाबाजारियों के पौ बारह हैं।ड्ढr कालाबाजारियों ने इतने दिनों तक गाड़ियां नहीं चलने का बहाना बनाकर कीमतें बढ़ा दीं, पर क्या ये गारंटी देंगे कि गाड़ियों का परिचालन सामान्य होने पर कीमतें घटायेंगे। न पहले ऐसा हुआ, न अब होगा।ड्ढr दाम बढ़ता है10, घटाते हैं 5 रुड्ढr सच यह है कि कालाबाजारियों ने अपने गोदाम में माल का भरपूर स्टॉक पहले ही कर लिया था। गाड़ियां ठप हो जाने के कारण उनकी मनमानी हो गयी। अगर दाम घटाना भी हुआ, तो बढ़ता है 10 रुपये, घटाये जाते हैं पांच रुपये। मतलब हर हाल में चांदी। चूंकि कालाबाजारियों ने चंदे और अन्य मद में धन देकर सरकार के पूर तंत्र को ऑब्लाइज कर दिया है, फिर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई कैसे हो सकती है? हाल यह है कि एक अप्रैल से वैट लागू है, पर 24 अप्रैल तक सरकार के खाते में एक पैसा नहीं गया। यह पैसा कहां जा रहा है, इसे समझना मुश्किल नहीं।ड्ढr चैंबर भी कम गुनहगार नहींड्ढr और कम गुनहगार चैंबर भी नहीं है। व्यापारियों की इस संस्था ने सिर्फ व्यापारियों का हित देखा है। ये चीख-चीखकर जनता की बात करते हैं, पर चैंबर ने कभी कालाबाजारियों के खिलाफ अभियान नहीं चलाया। बड़े व्यापारी घर बैठकर सामानों की खरीदारी नेट पर कर लेते हैं। जसे ही कीमतें बढ़ती हैं, सामानों को ब्रोकर के माध्यम से बेच दिया जाता है। मुनाफा बिना किसी झंझट के उन तक पहुंच जाता है।ड्ढr

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